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नीति आयोग की चौथी गवर्निंग काउंसिल की बैठक में पीएम मोदी के सामने नीतीश ने मांगा विशेष राज्य का दर्जा
नयी दिल्ली\पटना : मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने रविवार को एक बार फिर केंद्र सरकार के सामने बिहार को विशेष राज्य का दर्जा देने का मुद्दा उठाया. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता में नीति आयोग की गवर्निंग काउंसिल की हुई चौथी बैठक में उन्होंने बिहार बंटवारे के बाद होने वाले वित्तीय नुकसान के लिए योजना आयोग […]
नयी दिल्ली\पटना : मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने रविवार को एक बार फिर केंद्र सरकार के सामने बिहार को विशेष राज्य का दर्जा देने का मुद्दा उठाया. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता में नीति आयोग की गवर्निंग काउंसिल की हुई चौथी बैठक में उन्होंने बिहार बंटवारे के बाद होने वाले वित्तीय नुकसान के लिए योजना आयोग के तहत एक विशेष कोष के गठन के प्रस्ताव को स्वीकार करने सहित विभिन्न मानव सूचकांकों के पैमाने पर बिहार की स्थिति से अवगत कराया.
उन्होंने बताया कि बिहार मानव सूचकांक के अलावा प्रति व्यक्ति आय, ऊर्जा खपत, शिक्षा, स्वास्थ्य के मामलों में भी राष्ट्रीय औसत से काफी पीछे है और इसमें सुधार के लिए बिहार को विशेष राज्य का दर्जा जरूरी है.
बैठक में नीतीश कुमार ने कहा कि 12वीं पंचवर्षीय योजना के तहत राज्य की जरूरतों को ध्यान में रखते हुए बैकवर्ड रीजन ग्रांट फंड के तहत 12 हजार करोड़ रुपये देने का प्रावधान किया गया था, लेकिन नीति आयोग ने सिर्फ 9597.92 करोड़ रुपये ही जारी किये हैं.
ऐसे में उन्होंने राज्य की जरूरतों को देखते हुए 1651.29 करोड़ तत्काल मुहैया कराये जाने की मांग की. उन्होंने 15वें वित्त आयोग को 2011 की जनगणना के आधार पर राज्यों की जरूरतों को ध्यान में रखकर सिफारिश करने की मांग की. कहा कि विशेष राज्य का दर्जा मिलने से राज्य में केंद्र प्रायोजित योजनाओं में राज्य की हिस्सेदारी कम होने के अलावा निजी निवेश में बढ़ोतरी होगी और राज्यों में उद्योग लगाने वालों को कई तरह की रियायतें हासिल होंगी.
वित्त आयोग की सिफारिश से बिहार को नहीं मिल रहा लाभ : मुख्यमंत्री ने कहा कि 14वें वित्त आयोग की सिफारिश के आधार पर केंद्रीय करों में राज्यों की हिस्सेदारी 32% से बढ़कार 42% कर दी गयी है. लेकिन इससे राज्य को खास फायदा नहीं हो रहा है, क्योंकि केंद्रीय योजनाओं में राज्यों की हिस्सेदारी बढ़ा दी गयी है.
केंद्र के इस फैसले से जहां बिहार को 13वें वित्त आयोग की सिफारिश से 10.9% कर में हिस्सेदारी मिलती थी, वह 14वें वित्त आयोग की सिफारिश के बाद घटकर 9.6% हो गयी है. बिहार में हर साल आने वाली बाढ़ का हवाला देते हुए मुख्यमंत्री ने कहा कि इससे राज्य को हर साल अरबों रुपये की हानि होती है. वित्त आयोग ने इन मानकों का ख्याल नहीं रखा.
विजन डॉक्यूमेंट में केंद्रीय सहायता का जिक्र हो
राज्य के लोगों को मूलभूत सुविधाएं पहुंचाने के लिए सात निश्चय का जिक्र करते हुए मुख्यमंत्री ने कहा कि सतत विकास का लक्ष्य हासिल करने के लिए 2030 का विजन डाॅक्यूमेंट नीति आयोग ने तैयार की है. समाज के कमजाेर वर्ग को मुख्यधारा में लाने के लिए इस विजन डाॅक्यूमेंट पर काम किया जाना चाहिए. सामाजिक और आर्थिक ताैर पर पिछड़े राज्यों ने हाल के वर्षों में काफी प्रगति की है, लेकिन कई मानकों पर वे राष्ट्रीय औसत से पीछे हैं. ऐसे में सतत विकास के लक्ष्य को हासिल करने के लिए केंद्र सरकार द्वारा दी जाने वाली विशेष सहायता का जिक्र इस विजन डाॅक्यूमेंट में किया जाना चाहिए.
गंगा में गाद की समस्या गंभीर
नेपाल की नदियों से होने वाली बाढ़ पर नियंत्रण नहीं होने का जिक्र करते हुए नीतीश कुमार ने कहा कि हर साल बाढ़ से होने वाले पुनर्निर्माण पर बड़े पैमाने पर पैसे खर्च होते हैं.
गंगा बेसिन के ऊपरी राज्यों में बने बांधों और बैराजों के कारण गंगा नदी के प्रवाह में कमी के कारण मैदानी क्षेत्रों में गाद एक बड़ी समस्या बन गयी है. इसके बाढ़ की तीव्रता बढ़ गयी है. मुख्यमंत्री ने 1973 के बाणसागर समझौते का जिक्र करते हुए कहा कि मध्यप्रदेश और उत्तर प्रदेश इसका पालन नहीं कर रहे हैं. ऐसे में अधिक बारिश होने के कारण सोन नदी में पानी का प्रवाह तेज हो जाता है और इसका नुकसान बिहार का उठाना पड़ता है.
मिड डे मील बंद कर इसकी राशि सीधे लाभािर्थयों के खातों में दी जाये
नीति आयोग की बैठक में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने सुझाव दिया कि मिड डे मील योजना और आंगनबाड़ी केंद्रों पर दिये जा रहे पोषाहार को बंद कर उसकी राशि सीधे लाभार्थी के खाते में दी जाये. लाभार्थियों को यह भरोसा दिलाना होगा कि वह इस राशि का उपयोग उसी कार्य के लिए करेंगे, जिसके लिए राशि दी गयी है. इससे ऐसी योजनाओं की कार्यप्रणाली बेहतर होगी. उन्होंने इसका उदाहरण देते हुए बताया कि बिहार सरकार ने पोशाक योजना और मुख्यमंत्री साइकिल योजना के तहत प्रत्यक्ष रूप से राशि सीधे लाभार्थी को दी. ये योजनाएं काफी सफल रहीं. उन्होंने कहा कि आंगनबाड़ी केंद्रों की व्यवस्था पर अनियमितता और भ्रष्टाचार के आरोप लगते हैं. आंगनबाड़ी केंद्र मूल उद्देश्य से हटकर खाना तैयार करने व उसके वितरण के केंद्र रह गये हैं. इसी तरह से मिड डे मील के तहत विद्यालयों में आधारभूत संरचना नहीं होने के कारण कम भुगतान वाले अकुशल रसोइये, राशन का अस्वच्छ भंडारण व प्रबंधन, गुणवत्तापूर्ण भोजन उपलब्ध कराने में बाधक हैं. भोजन की निम्न गुणवत्ता के कारण अक्सर बच्चे अस्वस्थ हो जाते हैं और अभिभावकों के आक्रोश के कारण विधि-व्यवस्था की समस्या उत्पन्न हो जाती है. यह सब विद्यालय के शैक्षणिक माहौल के अनुकूल नहीं है. शिक्षकों का ध्यान भी पठन-पाठन पर नहीं रहता है. विद्यार्थियों के लिए विद्यालय शिक्षा का केंद्र से अधिक भोजनशाला बनकर रह गया है.
इनपुट अनुदान मिले
कृषि व संबद्ध क्षेत्र में किसानों को उनकी उपज का उचित मूल्य के लिए इनपुट अनुदान के माध्यम से सहायता दी जानी चाहिए. इससे कृषि के उत्पादन लागत में कमी आयेगी. बिहार में जैविक सब्जी खेती के लिए एक पायलट प्रोजेक्ट शुरू किया गया है. बिहार में अनियमित मॉनसून के कारण कम बारिश को देखते हुए डीजल अनुदान दिया जाता है.
इसी तरह से राज्य सरकार ने कृषि इनपुट अनुदान और डीजल सब्सिडी के अलावा बिहार राज्य फसल सहायता योजना का निर्णय लिया है. इससे फसल की कटनी के प्रयोगों के आधार पर फसल उत्पादन दर में ह्रास की स्थिति में निर्धारित दर से पीड़ित किसानों (रैयत-गैर रैयत)को वित्तीय सहायता दी जायेगी.
आंगनबाड़ी सेविका, सहायिका और रसोइये के मानदेय में हो वृद्धि
मुख्यमंत्री ने केंद्र से आंगनबाड़ी सेविका और सहायिका और मिड डे मील के तहत रसोइयों का मानदेय बढ़ाने का अनुरोध किया. उन्होंने कहा कि केंद्र प्रायोजित योजनाओं के अनुसार आंगनबाड़ी सेविका और सहायिका और रसोइयों की आेर से मानदेय बढ़ाने की मांग की जाती है.
ऐसे कर्मी बड़ी संख्या में होने के कारण संगठित रूप से अपनी मांगों को रखते हैं और पूरा नहीं होने पर विरोध करते हैं. इससे योजनाओं के क्रियान्वयन पर विपरीत प्रभाव पड़ता है. केंद्र सरकार द्वारा लंबी अवधि से मानदेय में वृद्धि नहीं किया गया है. इससे मानदेय की अतिरिक्त राशि का भुगतान बिहार जैसे कम संसाधन वाले राज्य को अपने संसाधनों से भी करना पड़ रहा है. उन्होंने सुझाव दिया कि केंद्र प्रायोजित योजनाओं में ऐसे कर्मियों को संविदा पर लंबी अवधि तक बहाल रखा जाता है तो उनके मानदेय में एक निर्धारित समय पर उचित वृद्धि की जानी चाहिए. इसका पूर्ण वित्तीय भार भी केंद्र सरकार को वहन करना चाहिए.
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