आइजीआइएमएस में इलाज कराने में बिगड़ रही तबीयत
सुविधाओं का अभाव, रजिस्ट्रेशन के लिए घंटों लाइन में खड़े रहते हैं रोगी आइसीयू में बेड की कमी फिलहाल परिसर में 19 बेड का ही आइसीयू है. यहां भरती होने के लिए मरीज के परिजनों को पैरवी करनी पड़ती है. स्थिति ऐसी है कि गंभीर मरीज आइसीयू के लिए तड़पते रह जाते हैं. इसका लाभ […]
सुविधाओं का अभाव, रजिस्ट्रेशन के लिए घंटों लाइन में खड़े रहते हैं रोगी
आइसीयू में बेड की कमी
फिलहाल परिसर में 19 बेड का ही आइसीयू है. यहां भरती होने के लिए मरीज के परिजनों को पैरवी करनी पड़ती है. स्थिति ऐसी है कि गंभीर मरीज आइसीयू के लिए तड़पते रह जाते हैं. इसका लाभ दलाल उठाते हैं. वह व्यवस्था की खामियां बता मरीज को निजी अस्पताल ले जाते हैं. दलालों की तो जेब गरम हो जाती है, लेकिन मरीज की जेब खाली. प्रसव के लिए ओटी बना. स्त्री विभाग में महज दो-चार महिलाएं सिर्फ जांच के लिए आती हैं. ओटी में अब तक एक भी डिलेवरी नहीं हुई. वजह ओटी में मशीन नहीं है, जबकि मशीन खरीद के लिए निविदा भी हुई.
रजिस्ट्रेशन में परेशानी
आइजीआइएमएस में एक छोटे से काम के लिए घंटों इंतजार करना पड़ता है. चाहे वह रजिस्ट्रेशन कराना हो या जांच के लिए रसीद लेना. काम में विलंब की वजह पूछने पर कर्मियों का जवाब होता है सुबह से काम कर रहे हैं. क्या नजर नहीं आ रहा है.
सीटी स्कैन खराब
सीटी स्कैन मशीन दो साल से खराब है. मशीन खराब होने के कारण मरीजों को परेशानी हो रही है. जांच के लिए बाहर जाने वाले मरीज के परिजनों को दलाल कम कीमत में जांच कराने का झांसा देते हैं. वे ऐसे सेंटर में जांच के लिए ले जा रहे हैं, जहां की रिपोर्ट काम की नहीं है. अल्ट्रासाउंड मशीन चार हैं, जिनमें तीन खराब हैं. इस कारण मरीजों को आठ दिन पहले नंबर लगाना पड़ता है. जांच में विलंब होने पर मरीज दलालों के चक्कर में पड़ जाते हैं. दलालों की डील इमरजेंसी के समीप चाय की दुकान पर होती है. वे सुबह में एक-दूसरे से मिलते हैं और बोली लगाते हैं. घंटे के आधार पर बोली लगती है.
गंदगी से मच्छरों का प्रकोप
अस्पतालों में गंदगी का अंबार है. वार्ड से लेकर परिसर में जहां-तहां कचरा फेंका हुआ रहता है. बची कसर नाले का पानी व गंदा बाथरूम पूरी कर देता है. इस कारण मच्छरों का प्रकोप ज्यादा है.
बंद हो गयी धर्मशाला
नर्सिग कॉलेज खोलने के नाम पर मरीज के परिजनों का ठिकाना उजड़ गया. धर्मशाला बंद करते समय संस्थान प्रशासन ने छह माह में नया धर्मशाला तैयार करने की बात कही थी, जिसके लिए डॉ सीपी ठाकुर ने एमपी फंड से 60 लाख रुपये देने का वादा भी किया, लेकिन अब तक धर्मशाला नहीं बनी. बताया गया कि एक साल पहले ही योजना विभाग के इंजीनियरिंग सेल में पैसा आवंटित कर दिया गया था. अस्पताल में एक साल से कैंटीन बंद है. इस कारण परिजनों को खाने के लिए बाहर जाना पड़ता है. परिजनों के लिए परिसर में रैन बसेरा है, लेकिन यहां बिजली,पानी व शौचालय की व्यवस्था नहीं है. समीप ही गंदगी भी है. मच्छरों का प्रकोप अधिक है.
ओपीडी का बाथरूम गंदा
इमरजेंसी में मरीजों के लिए बाथरूम नहीं है.ओपीडी में बाथरूम ऐसा है कि जहां जाने के बाद दोबारा जाने की हिम्मत नहीं करेंगे. सभी यूरेनल टूटे हुए हैं. मरम्मत के नाम पर संस्थान प्रशासन सिर्फ आश्वासन देता है.
बाथरूम का सामान गायब : राजधानी के विभिन्न इलाकों में पुल निर्माण निगम ने शौचालय बनवाये थे. एक शौचालय मरीज के परिजनों के लिए परिसर में भी बनाया, लेकिन बनने के बाद वह आज तक शुरू नहीं हो पाया. स्थिति ऐसी है कि सारा सामान चोर ले गये. बस नाम का शौचालय रह गया है.
लिफ्ट डेढ़ साल से खराब
मधेपुरा के भूपेंद्र नारायण यादव (70) को इमरजेंसी में भरती कराया गया था. दूसरे दिन जेनरल वार्ड में शिफ्ट करना था. जब स्ट्रेचर के जरिये चौथी मंजिल स्थित जेनरल वार्ड में ले जाने की बात हुई तो परिजन के हाथ-पांव फूलने लगे. पता चला कि चौथी मंजिल के लिए कोई लिफ्ट नहीं है और उसे सीढ़ी के सहारे जाना पड़ेगा. किसी तरह मरीज को चौथी मंजिल पर शिफ्ट किया गया.