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पटना : निजी मेडिकल कॉलेजों में फीस महंगी, एमबीबीएस करना है तो जेब में रख लें एक करोड़
अनुराग प्रधान सालाना वसूल रहे 25-30 लाख रुपये पटना : राज्य के निजी मेडिकल कॉलेजों में महंगी फीस के कारण स्टूडेंट्स काफी परेशान है. पटना हाईकोर्ट के निर्देश के बाद स्वास्थ्य विभाग की ओर से शुल्क निर्धारण किया जा रहा है. राज्य में तीन प्राइवेट मेडिकल कॉलेज कटिहार मेडिकल कॉलेज, नारायणा मेडिकल कॉलेज, रोहतास, माता […]
अनुराग प्रधान
सालाना वसूल रहे 25-30 लाख रुपये
पटना : राज्य के निजी मेडिकल कॉलेजों में महंगी फीस के कारण स्टूडेंट्स काफी परेशान है. पटना हाईकोर्ट के निर्देश के बाद स्वास्थ्य विभाग की ओर से शुल्क निर्धारण किया जा रहा है.
राज्य में तीन प्राइवेट मेडिकल कॉलेज कटिहार मेडिकल कॉलेज, नारायणा मेडिकल कॉलेज, रोहतास, माता गुजरी मेडिकल कॉलेज, किशनगंज संचालित हैं. इसके अलावा दर्जन भर निजी डेंटल कॉलेज भी संचालित हो रहे हैं.
डॉक्टर बनने का सपना देखनेवाले कम आय वर्ग के छात्रों का सपना तब टूट जाता है, जब नीट क्वालिफाई करने के बावजूद रैंक में पीछे रह जाते हैं. क्योंकि, ऐसे में उनके सामने उन डीम्ड यूनिवर्सिटी और प्राइवेट कॉलेजों में एडमिशन का ऑप्शन बचता है, जिनकी फीस साठ लाख से एक करोड़ तक होती है और कमजोर आर्थिक स्थिति की वजह से वे इन कॉलेजों में एडमिशन लेने की हिम्मत नहीं जुटा पाते.
लिहाजा वे फिर से तैयारियों में जुट जाते हैं और उन सीटों पर नीट की रैंकिंग में चार लाख और उससे पीछे के संपन्न तबके के छात्रों का एडमिशन हो जाता है.
दरअसल मेडिकल की फीस में बड़ा विरोधाभास है. सरकारी मेडिकल कॉलेजों में जहां पूरी पढ़ाई की फीस 50 से 60 हजार रहती है, वहीं डीम्ड यूनिवर्सिटी और प्राइवेट कॉलेजों में कोर्स पूरा होने में 60 लाख से एक करोड़ रुपये तक खर्च आता है. नीट में 500 के अंदर रैंकिंग लानेवाले छात्रों को तो सरकारी मेडिकल कॉलेजों में एडमिशन मिल जाता है.
मगर इससे अधिक रैंकिंग वाले छात्रों के सामने करोड़ों अदा करने की चुनौती रहती है. ऐसे में रैंक में पीछे रहनेवाले आर्थिक स्थिति से कमजोर स्टूडेंट्स फीस अधिक होने के कारण डीम्ड यूनिवर्सिटी की काउंसेलिंग प्रक्रिया में शामिल नहीं होते हैं. छह जुलाई से शुरू हुए सेकेंड काउंसेलिंग में भी आर्थिक तौर पर कमजोर स्टूडेंट्स शामिल नहीं होने के मूड में हैं. वे अभी से अगले साल बेहतर रैंक लाने में जुट गये हैं.
नीट की वजह से बढ़ी है फीस
सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद देश में मेडिकल की पढ़ाई
के लिए केवल एक प्रवेश परीक्षा (नीट) का नियम लागू होने से निजी कॉलेजों ने अपनी फीस में भारी इजाफा कर दिया है. कई निजी कॉलेजों में एमबीबीएस की फीस 40 लाख रुपये से बढ़ कर एक करोड़ हो गयी है.
तमिलनाडु के एसआरएम मेडिकल कॉलेज की यही कहानी है. बिहार के कटिहार मेडिकल कॉलेज में फीस आठ लाख रुपये से बढ़ कर 12.5 लाख रुपये सालाना हो गयी. माता गुजरी मेडिकल कॉलेज, किशनगंज की सालाना फीस 14.50
लाख, नारायणा मेडिकल कॉलेज, सासाराम की 12.50
लाख रुपये है. इसमें किताब और प्रैक्टिकल के अन्य
खर्चे शामिल नहीं हैं. मुंबई के डॉ डीवाई पाटील
मेडिकल कॉलेज ने भी सालाना
फीस बढ़ा दी है.
डीम्ड यूनिवर्सिटी की फीस
– कस्तूरबा मेडिकल
कॉलेज, मणिपाल :
फीस 11 लाख 24 हजार
रुपये सालाना, हॉस्टल
फीस नौ हजार आठ सौ रुपये हर माह
– डॉ डीवाई पाटील मेडिकल कॉलेज एंड हॉस्पिटल:
26 लाख रुपये सालाना, 17125 रुपये हॉस्टल फीस
– भारती विद्यापीठ,
पुणे : 18 लाख 43 हजार रुपये सालाना, हॉस्टल फीस 18416 रुपये हर माह
– श्रीराम चंद्र मेडिकल कॉलेज एंड रिसर्च
इंस्टीट्यूट, चेन्नई: 22 लाख रुपये सालाना, हॉस्टल फीस 16 हजार रुपये हर माह.
– अमृता इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंस एंड हॉस्पिटल: 18 लाख रुपये सालाना, हॉस्टल फीस 5584 रुपये हर माह.
नीट में बेहतर रैंक पाने पर शुल्क
-मौलाना आजाद मेडिकल कॉलेज, दिल्ली 3405 रुपये के आसपास वार्षिक
-लेडी हार्डिंग मेडिकल कॉलेज, दिल्ली 600 रुपये के आसपास वार्षिक (हॉस्टल शुल्क 250 रुपये मासिक)
-आर्म्ड फोर्स मेडिकल कॉलेज, पुणे 7000 रुपये सालाना हॉस्टल फीस (ट्यूशन फीस नहीं)
-ग्रांट मेडिकल कॉलेज, मुंबई 20 हजार रुपये वार्षिक
-पीएमसीएच 9600 रुपये वार्षिक, (हॉस्टल शुल्क 250 रुपये मासिक)
बिहार के निजी मेडिकल कॉलेजों की फीस
-कटिहार मेडिकल कॉलेज 12.5 लाख सालाना
-मात गुजरी मेडिकल कॉलेज, किशनगंज 14.50 पहले साल, दूसरे साल से 13.5 लाख रुपये सालाना
-नारायणा मेडिकल
कॉलेज, सासाराम 12.5 लाख रुपये सालाना
निजी मेडिकल कॉलेजों की फीस ज्यादा है. फीस कम होना चाहिए. सरकार को इस ओर ध्यान देना चाहिए. एडमिशन मेरिट पर होने चाहिए. सरकार फीस के कुछ हिस्से को सपोर्ट कर सकती है, जिससे मेरिट में आनेवाले स्टूडेंट्स को राहत मिल सके.
-डॉ राजीव रंजन प्रसाद, अधीक्षक, पीएमसीएच
निजी कॉलेज में फीस अधिक
रहने के कई कारण है. सरकार से कोई मदद नहीं मिलती. यूपी में सरकार सभी निजी कॉलेजों के साल भर का वित्तीय लेखा-जोखा देखती है और उसे अपने स्तर से जांच कराती है.
जांच के बाद कुछ पैसे देती है. इसी तरह बिहार में भी हो सकता है. निजी मेडिकल कॉलेजों में 50-50 प्रतिशत का खर्च सरकार और
कॉलेज बांट सकती है. इसके साथ अगर सामाजिक स्तर पर बड़ा काम करना है तो बिहार के तीनों मेडिकल कॉलेजों और उसमें एडमिशन लेने वाले स्टूडेंट्स से अनुबंध करा करके सरकारी फीस पर एडमिशन हो सकता है. इसका खर्च सरकार निजी कॉलेजों को भुगतान कर दें.
डॉ अरुण कुमार, पूर्व निदेशक, आईजीआईएमएस
काउंसेलिंग फीस में भी काफी अंतर
भारत में एमबीबीएस की केवल 67,218 सीटें हैं. मगर क्या आपने सोचा है कि चार लाख या उससे अधिक रैंक लाने वालों को मेडिकल में एडमिशन मिल जाता है. क्या वे सही मायनों में योग्य होते हैं?
इसका जवाब है नहीं, यदि सभी कॉलेज नीट रैंकिंग को लागू करेंगे तो 4 लाख या उससे ज्यादा की रैकिंग वाले बच्चों को एडमिशन मिलना असंभव हो जायेगा, लेकिन निजी कॉलेजों की महंगी फीस ने इसे संभव कर दिया है. महंगी फीस की वजह से कम अंक लाने वालों को निजी मेडिकल सीटें मिल जाती है.
अच्छी रैंक हासिल करने वाले मेधावी स्टूडेंट्स निजी मेडिकल कॉलेजों में काउंसेलिंग तक कराने से डरते हैं. क्योंकि सरकारी मेडिकल कॉलेजों में काउंसेलिंग कराने के लिए 11 हजार रुपये फीस चुकानी पड़ती है. वहीं डीम्ड यूनिवर्सिटी में काउंसेलिंग के लिए दो लाख पांच हजार रुपये चुकाने पड़ते हैं. काउंसेलिंग के समय ही इतनी मोटी रकम अच्छी रैंक लाने वाले गरीब स्टूडेंट्स नहीं जुटा पाते हैं.
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