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बालू माफियाओं ने हिला दी 156 साल पुराने कोइलवर पुल की नींव, खतरे में जिंदगी

156 साल पुराने पुल के ऊपर हर रोज हजारों वाहनों व 200 ट्रेनों का बोझ बालू माफियाओं ने ऐतिहासिक कोइलवर पुल की नींव हिला दी है. सरकार की मशीनरी को चुनौती देते हुए इतना खनन किया गया है कि पुल के पिलर का प्लेटफाॅर्म (चबूतरा) टुकड़ों में बिखर गया है. प्लेटफॉर्म के नीचे करीब 12 […]

156 साल पुराने पुल के ऊपर हर रोज हजारों वाहनों व 200 ट्रेनों का बोझ
बालू माफियाओं ने ऐतिहासिक कोइलवर पुल की नींव हिला दी है. सरकार की मशीनरी को चुनौती देते हुए इतना खनन किया गया है कि पुल के पिलर का प्लेटफाॅर्म (चबूतरा) टुकड़ों में बिखर गया है. प्लेटफॉर्म के नीचे करीब 12 फुट तक खुदाई ने खतरे की घंटी बजा दी है. आशंका है कि सोन नदी की तेज धार कहीं कोइलवर पुल के पिलर के नीचे की जमीन ही न खिसका दे.
शाहाबाद का प्रवेश द्वार और आरा-पटना की लाइफलाइन है यह पुल : शाहाबाद का प्रवेश द्वार और आरा-पटना की लाइफ लाइन सोन नदी पर 156 साल पुराने रेल सह सड़क पुल पर खतरा मंडराने लगा है. पटना-दिल्ली मुख्य रेल मार्ग से लगभग 200 यात्री ट्रेनें हर दिन गुजरती हैं.
वहीं पुल के निचले भाग एनएच 30 से हजारों वाहन आते-जाते हैं. हर दिन करीब पांच लाख लोग पुल से सफर करते हैं. बालू माफियाओं की सक्रियता व प्रशासन की निष्क्रियता ने इस पुल की सुरक्षा पर संकट खड़ा कर दिया है.
जिस कोइलवर पुल के प्लेटफॉर्म तक बालू की रेत उभरी रहती थी, वहां 12 फीट से अधिक गड्ढे होने के कारण प्लेटफॉर्म की ईंटे बिखर गयी हैं. इससे साफ है कि सरकारी मशीनरी गंभीर नहीं है. रेल प्रशासन से लेकर जिला प्रशासन तक के बीच समन्वय की कमी दिखती है.
व्यवस्थित नहीं हैं पिलर
पिलर की सुरक्षा के लिए प्लेटफॉर्म का निर्माण पानी की तेज धार से बचाव के लिए किया गया है. लेकिन पुल के 28 पिलरों में से किसी का प्लेटफाॅर्म व्यवस्थित नहीं है. कुछ प्लेटफॉर्म तो इतने क्षतिग्रस्त हो गये हैं कि जमीन के तल में गड़े पिलर स्पष्ट दिखाई दे रहे हैं.
स्थानीय लोगों ने बताया कि बालू जमा रहने से पहले प्लेटफॉर्म का केवल ऊपरी हिस्सा दिखता था. अवैध रूप से बालू का खनन इतना कर लिया गया कि आसपास की जमीन खाली होने से प्लेटफॉर्म दरकने लगा. पानी कम होने से चार से पांच पिलर के बीच नदी बहती है. जलस्तर बढ़ने पर पानी का फैलाव होता है. लेकिन जिस एरिया में अधिक खनन हुआ है, उसी एरिया से पानी का बहाव होता है.
नियम को ताक पर रख किया गया खनन
बालू खनन करनेवालों ने नियम को ताक पर रख कर पुल वाले
हिस्से को भी नहीं बख्शा है. पुल के अपस्ट्रीम में दो सौ मीटर व पुल के डाउन स्ट्रीम में सौ मीटर तक खनन नहीं करने के नियम को दरकिनार कर दिया गया.
पिलर के समीप हुई खुदाई ने प्लेटफॉर्म की दुर्गति की है. प्लेटफॉर्म के बगल की बालू खुदाई से पिलर के पास गड्ढा हो गया है. सोन नदी में जलस्तर बढ़ने के बाद बालू की अवैध खुदाई का नजारा अलग होता है. छपरा की तरफ से हजारों नावें नदी में जहां-तहां बालू खुदाई करती हैं.
रेलवे ने कहा : पूर्व मध्य
रेल के जनसंपर्क पदाधिकारी राजेश कुमार ने बताया कि कोइलवर ब्रिज पूरी तरह दुरुस्त है. ब्रिज का हाल में मरम्मत हुआ है. पुल पर पूरी रफ्तार से ट्रेन गुजर रही है. समय-समय पर रूटीन चेक होता रहता है. सड़क का मेंटेनेंस बिहार सरकार के जिम्मे है.
पुल के प्लेटफॉर्म के नीचे करीब 12 फुट तक बालू माफियाओं ने खुदाई कर पुल को खतरे में डाल दिया है. इस कारण इस पुल की नींव दरकने लगी है. कई खंभों के पत्थर नींव से सरकने लगे हैं.
विशेषज्ञ की राय सेवानिवृत्तअभियंता विजय शंकर ने
बताया कि पिलर की सुरक्षा के लिए प्लेटफॉर्म बनाये जाते हैं. ताकि पानी के बहाव को डायवर्ट किया जा सके. प्लेटफॉर्म के क्षतिग्रस्त होने पर धीरे-धीरे वह और क्षतिग्रस्त होगा. इससे पानी के बहाव का सीधा असर पिलर पर पड़ेगा. नदी के पानी के फैलाव को ध्यान में रखकर व्यवस्था करनी चाहिए.
स्थापत्य कला का अद्‍भुत नमूना है यह पुल
यह पुल अंग्रेजी हुकूमत की स्थापत्य कला व प्राचीन समय की इंजीनियरिंग का अद्‍भुत नमूना है. 1440 मीटर लंबे दोमंजिले रेल सह सड़क पुल का निर्माण लैटिक गडर तकनीक से हुआ है. इसमें कंक्रीट व स्टील का प्रयोग हुआ है.
पुल का दक्षिणी लेन 4़ 12 मीटर चौड़ा व उत्तरी लेन 3़ 03 मीटर चौड़ा है. इसमें लगभग 5683 टन लोहा इस्तेमाल हुआ. 1862 में इस पुल का निर्माण काम पूरा हुआ था. ऐतिहासिक पुल में रेल का परिचालन ऊपर से व वाहनों का परिचालन नीचे से होता है. बाद में आजादी के बाद पुल का नामकरण कोइलवर निवासी प्रखर स्वतंत्रता सेनानी व मजदूर नेता अब्दुल बारी के नाम पर हुआ.

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