कोर्ट और जजों का टोटा, स्पीडी ट्रायल नहीं पकड़ पा रही स्पीड

पटना : राज्य में हत्या, रेप समेत अन्य जघन्य और संगीन मामलों में स्पीडी ट्रायल कराने की व्यवस्था है. परंतु कोर्ट और जज की कमी से स्पीडी ट्रायल उतनी स्पीड नहीं पकड़ पा रही है. सूबे के 38 जिलों में मौजूद 68 से ज्यादा फास्ट ट्रैक कोर्ट में न्यायाधीश के करीब आधे पद खाली पड़े […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | July 8, 2018 5:09 AM

पटना : राज्य में हत्या, रेप समेत अन्य जघन्य और संगीन मामलों में स्पीडी ट्रायल कराने की व्यवस्था है. परंतु कोर्ट और जज की कमी से स्पीडी ट्रायल उतनी स्पीड नहीं पकड़ पा रही है. सूबे के 38 जिलों में मौजूद 68 से ज्यादा फास्ट ट्रैक कोर्ट में न्यायाधीश के करीब आधे पद खाली पड़े हैं. इससे मामलों का निबटारा तेजी से नहीं हो पा रहा है. जिन मामलों का निबटारा चार या अधिकतम छह महीने में हो जाना चाहिए था, उनमें वर्षों का समय लग जा रहा है.

हालांकि बावजूद इसके संगीन मामलों में सजा दिलाने की संख्या में लगातार बढ़ोतरी हो रही है. जजों की कमी के कारण लंबित मामलों की संख्या में बढ़ोतरी हो रही है. पुलिस महकमे की रिपोर्ट के अनुसार, बड़े या संगीन मामलों में प्रत्येक वर्ष औसतन करीब 30 फीसदी की बढ़ोतरी होती है. इस आधार पर कोर्ट की संख्या में भी बढ़ोतरी होनी चाहिए.
कोर्ट में लोक अभियोजक या पब्लिक प्रोसिक्यूटर(पीपी), एपीपी (एडिशनल पीपी) की भी काफी कमी है. इन कारणों से भी स्पीडी ट्रायल की सुनवाई में समय ज्यादा लग जाता है. कुछ मामलों में तो स्पीडी ट्रायल से अधिक तेजी से मजिस्ट्रेट कोर्ट में ही सुनवाई हो जाती है. अगर स्पीडी ट्रायल की रफ्तार बढ़ जाये, तो इसके जरिये सजा दिलाने की संख्या कई गुणा बढ़ जायेगी. प्रत्येक जिले में औसतन 50 मामले स्पीडी ट्रायल में चलाये जाते हैं. कुछ जिलों में इनकी संख्या विशेष परिस्थिति में अधिक भी हो सकती है.
इसमें मुख्य रूप से हत्या के बड़े या संगीन मामले, रेप के साथ हत्या, रेप, दहेज हत्या, फिरौती के लिए अपहरण और डकैती के मामलों की सुनवाई स्पीडी ट्रायल के जरिये होती है. कुछ विशेष मामलों की सुनवाई ही स्पीडी ट्रायल के जरिये की जाती है. वर्ष 2000 से 2011 के बीच एक केंद्रीय योजना के तहत सभी जिलों में पांच फास्ट ट्रैक कोर्ट का गठन कर इनमें अधिकांश रिटायर्ड जज की तैनाती करके बड़ी संख्या मामले का निबटारा किया गया था. सामान्य के अलावा 178 कोर्ट चलाये जाते थे. परंतु 2011 के बाद योजना समाप्त होते ही सभी कोर्ट बंद कर दिये गये.
इन अपराधों में इस वर्ष हुई इतनी सजा
संगीन मामलों में हो रही है बढ़ोतरी
n रेप के
साथ हत्या
2014984
20151166
20161430
20171570
2018
(अप्रैल तक) 457
n फिरौती के लिए अपहरण
201415
201511
201636
201749
2018
(अप्रैल तक)18
n रेप के
मामले
2014131
2015125
2016201
2017204
2018
(अप्रैल तक)69
n दहेज हत्या
2014229
2015220
2016292
2017383
2018
(अप्रैल तक)69
n डकैती
के मामले
201450
201543
201680
201752
2018
(अप्रैल तक)28

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