पटना : भाजपा अध्यक्ष कल सुबह रांची से पहुंचेंगे पटना, नीतीश से मिलेंगे, इन मुद्दों पर होगी बातचीत, जानें कार्यक्रम के बारे में
लोस चुनाव : भाजपा अध्यक्ष कल सुबह रांची से पहुंचेंगे पटना पटना : बिहार में एनडीए में लोकसभा चुनाव के लिए सीटों पर अपने-अपने दावों के बीच गुरुवार को भाजपा अध्यक्ष अमित शाह पटना पहुंच रहे हैं. अपनी यात्रा के दौरान अमित शाह दो बार जदयू के राष्ट्रीय अध्यक्ष व मुख्यमंत्री नीतीश कुमार से मिलेंगे. […]
लोस चुनाव : भाजपा अध्यक्ष कल सुबह रांची से पहुंचेंगे पटना
पटना : बिहार में एनडीए में लोकसभा चुनाव के लिए सीटों पर अपने-अपने दावों के बीच गुरुवार को भाजपा अध्यक्ष अमित शाह पटना पहुंच रहे हैं.
अपनी यात्रा के दौरान अमित शाह दो बार जदयू के राष्ट्रीय अध्यक्ष व मुख्यमंत्री नीतीश कुमार से मिलेंगे. सूत्रों के अनुसार दोनों नेता कई मुद्दों पर बातचीत करेंगे. लोकसभा चुनाव में सीट शेयरिंग को लेकर भी वे विचार-विमर्श कर सकते हैं. हालांिक दोनों दलों ने सीट बंटवारे पर चर्चा होने की बात से इन्कार िकया है.
रविवार को दिल्ली में जदयू की कार्यकारिणी की बैठक और फिर सोमवार को पटना में प्रेस कॉन्फ्रेंस में नीतीश कुमार ने कहा था कि जदयू एनडीए को नहीं छोड़ने जा रहा है. समय आने पर सीटों का बंटवारा हो जायेगा.
अब शाह की यात्रा में सीटों पर फंसे पेच पर चर्चा होने की उम्मीद है. पार्टी सूत्रों का कहना है कि अमित शाह और नीतीश कुमार ब्रेकफास्ट और डिनर साझा करेंगे. गुरुवार की सुबह 10 बजे रांची से पटना पहुंचने के बाद अमित शाह सीधे राजकीय अतिथिशाला जायेंगे, जहां सीएम के साथ वे जलपान करेंगे. अमित शाह का लंच ज्ञान भवन में होगा, जहां उनके साथ भाजपा नेता और कार्यकर्ता भी होंगे.
इसके बाद वह रात में सीएम हाउस में नीतीश कुमार के साथ डिनर करेंगे. दरअसल, 2019 लोकसभा चुनाव में जदयू ने प्रदेश की 40 लोकसभा सीटों में से 25 पर दावा जताया है. यही नहीं, जदयू ने यह भी कहा है कि बिहार में एनडीए का चेहरा नीतीश कुमार है और उनकी अगुआई में ही राज्य में चुनाव लड़ा जाये. इस पर भाजपा के कुछ स्थानीय और अन्य सहयोगी दलों के नेताओं ने सवाल खड़े हैं.
भाजपा के सूत्रों के अनुसार नीतीश कुमार के अलावा अमित शाह एनडीए के अन्य सहयोगियों लोजपा और रालोसपा के नेताओं से भी मुलाकात करेंगे और इसके जरिये यह संदेश देने की कोशिश भी है कि बिहार एनडीए में सब कुछ ठीक चल रहा है. 2019 चुनाव को लेकर पार्टी नेताओं के साथ बैठक
भाजपा अध्यक्ष का कार्यक्रम
– बापू सभागार में 11:30-12:30 बजे तक सोशल मीडिया वालेंटियर्स की बैठक
– ज्ञान भवन में 12:45-1:45 बजे तक विस्तारकों की बैठक
– ज्ञान भवन परिसर में ही दोपहर का भोजन
– बापू सभागार में दोपहर 2:30 बजे से 3:30 बजे तक शक्ति केंद्र के प्रभारियों की बैठक
– राजकीय अतिथिशाला में शाम चार से सात बजे तक तक चुनाव तैयारी समिति की बैठक
– 13 जुलाई की सुबह दिल्ली रवाना
पटना : मुख्यमंत्री के साथ अमित शाह करेंगे ब्रेकफास्ट और डिनर
साफ-सुथरे लोकतंत्र के लिए राज्य उठाये चुनाव खर्च
पटना : दिल्ली में संपन्न जदयू की राष्ट्रीय कार्यकारिणी के संकल्प में उसकी भावी रणनीति के संदेश साफ हैं. पार्टी का साफ मानना है कि ‘एक देश, एक चुनाव’ के व्यावहारिक पहलुओं का समाधान आवश्यक है.
मसलन बेतहाशा बढ़ चुके चुनाव खर्च राज्य वहन करे. देश को लगातार चुनावों की स्थिति में नहीं रखा जा सकता. ऐसे में चुनाव आयोग के पास वह सिस्टम है कि सभी चुनाव एक साथ करा सके.
राज्यों की विधानसभाओं को भंग करने और चुनाव कराने की मांग के प्रावधानों के बारे में भी विचार करना होगा. जिन राज्यों में राजनीतिक अस्थिरता के कारण सरकारें अपना कार्यकाल पूरा नहीं करतीं, वहां ऐसी परिस्थिति आने पर भविष्य में क्या समाधान होगा? इस संदर्भ में जदयू की कार्यकारिणी ने केंद्र सरकार से मांग की कि एक साथ चुनावों के रास्ते में जो भी व्यावहारिक कठिनाइयां हैं, उन पर सभी दलों से बातचीत कर आम सहमति से उनका समाधान निकाला जाये.
जदयू ने स्पष्ट कर दिया कि वह पहले से ही एक साथ सभी चुनाव कराने का समर्थक रहा है. राष्ट्रपति के अभिभाषण में इसका उल्लेख हुआ. विधि आयोग और नीति आयोग की ओर से कानून दिवस पर आयोजित कार्यक्रम में प्रधानमंत्री ने इस चर्चा को आगे बढ़ाया. पार्लियामेंट्री स्टैंडिंग कमेटी की रिपोर्ट (दिसंबर, 2015) में भी इसकी अनुशंसा की गयी. इसके पहले से ही 1999 में विधि आयोग की 170वीं रिपोर्ट और राज्यसभा कमेटी की 79वीं रिपोर्ट के बाद इस विषय की चर्चा पूरे देश में होती रही है. यह सच है कि बार-बार चुनावों से खर्च में बढ़ोतरी होती है. बंदोबस्त (लॉजिस्टिक) की अलग चुनौतियां हैं.
सुरक्षा बलों की तैनाती, केंद्र और राज्य के अफसरों की व्यवस्था, बड़ी संख्या में चुनाव कराने वाले लोगों का इंतजाम करना आसान काम नहीं है. बार-बार चुनावों का सीधा असर गवर्नेंस और विकास कार्यों पर पड़ता है. इस तरह यह सही है कि देश लगातार चुनावों की स्थिति में नहीं रह सकता.
व्यावहारिक चुनौतियां बरकरार
एक साथ चुनाव की सबसे बड़ी चुनौती इसके व्यावहारिक क्रियान्वयन को लेकर है. मार्च, 2014 से मई, 2016 के बीच लोकसभा और 15 राज्य विधानसभाओं के चुनाव हुए. कुछ ही समय में राजस्थान, मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़, मिजोरम , फिर मार्च-मई 2019 के बीच लोकसभा, आंध्र प्रदेश, अरुणाचल प्रदेश, ओड़िशा, सिक्किम, तेलंगाना, और इसके करीब पांच-आठ माह बाद हरियाणा, झारखंड, महाराष्ट्र व दिल्ली में चुनाव होंगे. अगर एक साथ चुनाव कराने हैं, तो लोकसभा चुनाव के पहले जिन राज्यों में चुनाव होने हैं, उनके लिए क्या रास्ता होगा?
क्या लोकसभा चुनाव पहले कराकर इन विधानसभाओं के चुनाव एक साथ कराये जायेंगे या इन विधानसभाओं के चुनाव किस रास्ते या कैसे लोकसभा चुनाव के साथ कराये जा सकते हैं? मई 2019 में अगर लोकसभा के चुनाव होते हैं, तो इसके कुछ ही महीनों बाद कई राज्यों में चुनाव होने हैं, क्या उन्हें पहले कराया जायेगा? क्या यह संभव होगा कि कुछेक विधानसभाओं का कार्यकाल घटाया जाये और कुछेक का बढ़ाया जाये, ताकि एक साथ चुनाव हो सकें.
सत्ता पक्ष अपना बहुमत खो देता है तो रास्ता क्या होगा
लोकसभा या विधानसभाओं में, बीच में ही सत्ता पक्ष अगर अपना बहुमत खो देता है, तब क्या रास्ता होगा ? क्या चुनाव आयोग एक साथ सुरक्षा, मानव संसाधन सहित अन्य चीजों के बंदोबस्त (लॉजिस्टिक) की स्थिति में होगा? ऐसे अनेक जटिल प्रश्न हैं, जिनका जवाब ढूढ़ना होगा.
इस तरह एक साथ चुनाव कराने के लिए मौजूदा कानूनों में बदलाव की जरूरत होगी. संविधान व जनप्रतिनिधि अधिनियम 1950 और 1951 में बदलाव करना होगा. इस बात की भी समीक्षा होनी चाहिए कि क्या चुनाव आयोग पूरे देश में लोकसभा और विधानसभा चुनावों को एक साथ करा सकने में सक्षम व तैयार है?
उसका अंदरूनी प्रबंधन इसे संभालने की स्थिति में है? चुनाव आयोग को और अधिक संसाधनों की जरूरत पड़ेगी. एक साथ चुनावों की स्थिति में वोट देने में एक मतदाता को कितना समय लगेगा? चूंकि लोकसभा व विधानसभा के ईवीएम अलग-अलग होंगे, इसलिए मतदाता को अलग-अलग वोट देने होंगे. इस तरह कितनी ईवीएम चाहिए? साथ में वीवीपैट व प्रशिक्षित मतदानकर्मी चाहिए.
साथ-साथ चुनाव कराने का यह अर्थ भी नहीं है कि चुनाव एक दिन ही में संपन्न होंगे. ये फेजवाइज ही होंगे. ऐसे अनेक पहलू हैं, जिनका अध्ययन करा लेना बेहतर होगा. सभी दलों की आम सहमति बनायी जाये और व्यावहारिक हल निकालकर इस मकसद को पूरा किया जा सकता है. इस समस्या का समाधान समग्रता से किया जाना चाहिए.
राज्य को विधानसभा भंग करने और चुनाव कराने की मांग का क्या होगा
इस क्रम में यह सवाल भी खड़ा होगा कि राजनीतिक अस्थिरता की स्थिति में एक राज्य के पास यह अधिकार होता है कि वह विधानसभा को भंग करने और चुनाव कराने की मांग संविधान की धारा 172(1)के तहत राज्यपाल से कर सकता है. ऐसे प्रावधानों के बारे में भी विचार करना होगा. साथ ही यह समाधान भी निकालना होगा कि जिन राज्यों में राजनीतिक अस्थिरता के कारण सरकारें अपना कार्यकाल पूरा नहीं करतीं, वहां ऐसी परिस्थिति आने पर भविष्य में क्या करना होगा.
पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्त डॉ एसवाई कुरैशी ने कहा है कि चुनाव देश में भ्रष्टाचार की जड़ बन गये हैं. सार्वजनिक जीवन में पहले से जदयू की यह मांग रही है कि चुनावों में होने वाले बेतहाशा खर्च साफ-सुथरे लोकतंत्र के लिए गंभीर खतरा है. इसका हल निकालना जरूरी है.
बेहतर होता कि इसके साथ ही व्यापक विमर्श द्वारा चुनाव खर्च की स्टेट फंडिंग पर विचार होता. चुनाव खर्च राज्य वहन करे. इससे छोटे और बड़े दलों के बीच प्लेइंग लेवल फील्ड निर्माण होता. यानी संसाधनों की दृष्टि से एक हद तक राजनीतिक दलों के बीच व्याप्त मौजूदा घोर असमानता कम होती. अंतत: कह सकते हैं कि मकसद बेहतर है, पर मौजूदा परिस्थितियों में इसके व्यावहारिक हल आसान नहीं हैं.
एनडीए में सीट शेयरिंग
2014 का लोस चुनाव
दल लड़ा जीत
भाजपा 30 22
लोजपा 07 06
रालोसपा 03 03
नोट : उस समय जदयू एनडीए से अलग होकर अकेले चुनाव लड़ा था.
2009 का लोस चुनाव
दल लड़ा जीत
जदयू 25 20
भाजपा 15 12
नोट: उस समय लोजपा और रालोसपा एनडीए में नहीं थीं. लोजपा ने राजद के साथ चुनाव लड़ा था.
िबहार में एनडीए सरकार बनने के बाद पहली बार आयेंगे शाह
राज्य में नीतीश कुमार के नेतृत्व में जुलाई, 2017 में एक बार फिर एनडीए सरकार बनने के बाद भाजपा अध्यक्ष अमित शाह पहली बार बिहार के दौरे पर आ रहे हैं. उनके स्वागत में भाजपा ने अपनी पूरी ताकत लगा दी है. पूरे पटना शहर को होर्डिंग और झंडों से पाट दिया गया है. भाजपा कार्यालय को मिथिला पेंटिंग से सजाया गया है. पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष नित्यानंद राय पूरी व्यवस्था की निगरानी कर रहे हैं. बताया जा रहा है कि उनके पार्टी कार्यालय भी आने की भी संभावना हैं. यहां वे पार्टी नेताओं व प्रदेश पदाधिकारियों से मुलाकात कर सकते हैं. इसको लेकर भी पार्टी कार्यालय में तैयारी की गयी है.