उद्योग नीति को लाइसेंस राज से कराया जाये मुक्त, तभी होगा बिहार में सुधार
व्यवसायियों और अर्थशास्त्रियों ने बतायी इज ऑफ डूइंग बिजनेस की रैंकिंग में पिछड़ने की वजह पटना : इज ऑफ डूइंग बिजनेस के मामले में इस बार भी बिहार का प्रदर्शन काफी खराब रहा है. डिपार्टमेंट ऑफ इंडस्ट्रियल पॉलिसी एंड प्रमोशंस (डीआईपीपी) बिजनेस रिफॉम एक्शन प्लान-2017 के थर्ड एडिशन के अनुसार इस मसले में पूरे देश […]
व्यवसायियों और अर्थशास्त्रियों ने बतायी इज ऑफ डूइंग बिजनेस की रैंकिंग में पिछड़ने की वजह
पटना : इज ऑफ डूइंग बिजनेस के मामले में इस बार भी बिहार का प्रदर्शन काफी खराब रहा है. डिपार्टमेंट ऑफ इंडस्ट्रियल पॉलिसी एंड प्रमोशंस (डीआईपीपी) बिजनेस रिफॉम एक्शन प्लान-2017 के थर्ड एडिशन के अनुसार इस मसले में पूरे देश में बिहार का स्थान 18वां हैं, जो बेशक चिंताजनक है.
बिहार चैंबर ऑफ काॅमर्स एंड इंडस्ट्रीज के अध्यक्ष पीके अग्रवाल ने इस रैंकिंग को बिहार के लिए असंतोषजनक बताया है. जानकारों के मुताबिक बिहार में उद्योग लगाने के लिए जरूरी लाइसेंस प्रक्रिया बेहद जटिल है. इसके चलते न तो उम्मीद के अनुरूप नये निवेश हुए और और न ही नये उद्योग लगे. प्रभात खबर ने इस मामले में जाने माने उद्यमियों एवं एक्सपर्ट से बातचीत की. बातचीत के दौरान कुछ सिस्टम में बदलाव सहित कई सुझाव आये.
उद्योगों का नमूने के अाधार पर होता है सर्वेक्षण
यह रैंकिंग विश्व बैंक और डीआईपीपी आयोग के अध्ययन पर आधारित है. नीति आयोग ने पूरे देश के संगठित क्षेत्र के उद्योगों का नमूने के अाधार पर सर्वेक्षण किया है. इसमें आठ बिंदु शामिल हैं, व्यवसाय की स्थापना, जमीन और निर्माण, पर्यावरण, श्रम, बिजली, कर, कानूनी विवाद और वित्तीय उपलब्धता.
इन्हीं मानकों के आधार पर इज ऑफ डूइंग बिजनेस का मूल्यांकन हुआ है. व्यवसाय के शुरू करने में जमीन का निबंधन, निर्माण की अनुमति, निवेशकों की सुरक्षा, व्यापार करने की सुविधा, मजदूर संबंधी कानून, साख प्राप्त करने की सुविधा आदि प्रमुख हैं. यह रैंकिंग विश्व बैंक और डीआईपपी मिलकर तैयार करती है. यह रिपोर्ट जुलाई 2016 से जुलाई 2018 के बीच 340 प्वाइंट बिजनेस रिफॉर्म प्लान के आधार पर तैयार की जाती है. इस रैंकिंग को शुरू करने की वजह यह है कि सरकार चाहती है कि बिजनेस के लिए बेहतर माहौल मुहैया कराने में राज्य एक दूसरे से होड़ करे.
सिस्टम को बनाया जाये पारदर्शी
बिहार चैंबर ऑफ काॅमर्स एंड इंडस्ट्रीज के अध्यक्ष पीके अग्रवाल ने कहा कि डीआइपीपी ने जो रैंकिंग जारी किया है वह बिहार के लिहाज से असंतोषजनक है. रैकिंग सुधारने के लिए पहले सिस्टम में बदलाव करना होगा. लाइसेंस सिस्टम के कुछ प्रावधानों को समाप्त करने की जरूरत है. यहां अभी भी मैन्युअल काम हो रहा है, इसे ऑनलाइन करने की जरूरत है. इससे पारदर्शिता आयेगी और व्यापारियों को दफ्तरों के चक्कर भी कम काटना पड़ेगा.
बैंकों का रवैया भी असहयोगात्मक
जानेमाने अर्थशास्त्री डीएम दिवाकर ने कहा कि खराब रैकिंग की कई वजहें हैं. जमीन की उपलब्धता और निर्माण की अनुमति में काफी समय लगता है. सरकार द्वारा बार-बार कहने पर भी बैंक साख जमा अनुपात में सुधार नहीं कर रहे. जबकि बिजली की उपलब्धता बढ़ी है, हालांकि अभी भी सुनिश्चित आपूर्ति एक चुनौती है. दिवाकर ने कहा कि कानून व्यवस्था के सवाल भी कम महत्व का नहीं है. यह निवेशकों में भरोसा नहीं जगा पा रहा है. विश्व बैंक और नीति आयोग के मानकों की दिशा में आगे बढ़ने की जरूरत है.
अफसरशाही बड़ा रोड़ा
अर्थशास्त्री एनके चौधरी ने कहा कि बिहार की रैंकिंग अफसरशाही के कारण पिछड़ी है. कुछ वर्ष पूर्व हुए फिक्की के सर्वे में भी बिहार के अफसरों के व्यवहार को अच्छा नहीं माना गया था. इसी कारण यहां निवेशक नहीं आ रहे हैं.
उद्योग लगाना महंगा
बिहार इंडस्ट्रीज एसोसिएशन के अध्यक्ष केपीएस केसरी ने बताया कि बियाडा की जमीन की कीमत कारखाना लगाने में लागत काफी अधिक है. अन्य राज्यों से भी जमीन काफी सस्ती रहती है. विभिन्न सरकारी मंजूरी के लिए सिंगल विंडो सिस्टम जैसे कदम उठाने की जरूरत है.