वर्तमान एनडीए सरकार का एक साल: क्राइम, करप्शन और कम्युनिलिज्म से समझौता नहीं
मिथिलेश एनडीए के साथ दोबारा सरकार चला रहे मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की सरकार 27 जुलाई को पहला साल पूरा कर रही है. निरंतरता में देखें, तो उनकी सरकार का यह तेरहवां साल होगा. प्रभात खबर ने पिछले एक साल के कार्यकाल पर नजर डालने की कोशिश की है. 2015 में महागठबंधन की सरकार के अगुवा […]
मिथिलेश
एनडीए के साथ दोबारा सरकार चला रहे मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की सरकार 27 जुलाई को पहला साल पूरा कर रही है. निरंतरता में देखें, तो उनकी सरकार का यह तेरहवां साल होगा. प्रभात खबर ने पिछले एक साल के कार्यकाल पर नजर डालने की कोशिश की है. 2015 में महागठबंधन की सरकार के अगुवा नीतीश थे, तो एनडीए के साथ भी उनकी यही भूमिका बनी रही. सत्ता समीकरण तो बदले पर उसके केंद्र में नीतीश कुमार ही रहे.
पटना : तीन साल पहले 2015 में बिहार विधानसभा के चुनाव में भाजपा को परास्त कर जब जदयू अध्यक्ष नीतीश कुमार महागठबंधन के मुखिया के तौर पर 20 नवंबर, 2015 को ऐतिहासिक गांधी मैदान में पांचवीं बार मुख्यमंत्री पद की शपथ ले रहे थे तो किसी ने नहीं सोचा था कि यह सरकार अपनी आधी उम्र भी पार नहीं कर पायेगी़ महज 20 महीनों में राजनीति ने ऐसी करवट बदली कि जदयू को महागठबंधन से अलग हो जाने का निर्णय लेना पड़ा.
मुख्यमंत्री ने इस्तीफे का फैसला लिया़ भाजपा ने बिना शर्त नीतीश कुमार की सरकार को समर्थन देने की घोषणा की़ भाजपा और जदयू विधायक दल की संयुक्त बैठक हुई और आधी रात को नीतीश कुमार ने राजभवन पहुंच कर नयी सरकार के गठन के लिए अपना दावा पेश किया़
243 सदस्यों वाले बिहार विधानसभा में महज 52 विधायकों वाली भाजपा सरकार में बराबर की भागीदार बन गयी़ प्रदेश भाजपा के वरिष्ठ नेता सुशील कुमार मोदी के सिर फिर से उपमुख्यमंत्री का ताज आया़ पर इन सबके बावजूद सत्ता के केंद्र में नीतीश कुमार ही बने रहे़ एनडीए की दूसरी पारी की सरकार के एक वर्ष पूरे हो गये़ इस दौरान सरकार चलाने में दोनों दलों के बीच समन्वय बना रहा.
बेशक, बिहार का सत्ता समीकरण बदल गया पर उसके केंद्र में नीतीश कुमार ही रहे. महागठबंधन की सरकार हो या एनडीए की- दोनों ही सरकारों के केंद्र में उनकी छवि बनी रही. दरअसल, नीतीश कुमार का गवर्नेंस के प्रति कठोर रुख बना रहा. उनका एक जुमला चर्चा में रहता है: हम न किसी को फंसाते हैं, न बचाते हैं. लोगों ने सत्ता दी है सेवा के लिए.
महागठबंधन में टूट और नये समीकरण गढ़े जाने की प्रक्रिया भले ही अचानक होती हुई दिखी हो, पर इसकी पृष्ठभूमि तो पहले से ही तैयार होने लगी थी.
महागठबंधन में होते हुए नीतीश कुमार ने नोटबंदी और सर्जिकल स्ट्राइक जैसे राष्ट्रीय मसलों और बिहार के राज्यपाल रामनाथ कोविंद को राष्ट्रपति पद के लिए उम्मीदवार बनाये जाने के केंद्र सरकार के फैसलों का समर्थन किया था़ उन्होंने सहयोगी दल राजद और कांग्रेस को यह जता दिया था कि पद पर बने रहने के लिए वह अपनी नीतियों और सिद्धांत व प्राथमिकताओं से कोई समझौता नहीं करने वाले़
नवंबर, 2015 में हुए विधानसभा चुनाव के आंकड़े बताते हैं कि महागठबंधन को मिली बड़ी जीत में नीतीश कुमार के चेहरे व छवि की बड़ी भूमिका रही थी. यही नहीं, उनके महागठबंधन में आने से सामाजिक स्तर पर हुई गोलबंदी में नयी जान आ गयी थी. 2010 के विधानसभा चुनाव में राजद के 22 सदस्य थे़ कांग्रेस तो मात्र चार विधायकों वाली पार्टी बन कर सदन के भीतर बैठने को मजबूर थी़ पर जब महागठबंधन बना और यह स्पष्ट हो गया कि बहुमत मिलने पर सरकार की अगुवाई नीतीश कुमार ही करेंगे तो, नजारा बदल गया. जदयू, राजद और कांग्रेस के महागठबंधन को 173 सीटें मिलीं. कई राज्यों में विजय पताका फहराने वाली भाजपा को बिहार में चारो खाने चित होना पड़ा.
उसके केवल 53 विधायक ही विधानसभा पहुंच सके. लेकिन, जब लगा कि अब महागठबंधन की सरकार चलाना संभव नहीं होगा तो नीतीश कुमार रुके नहीं. वह राजद अध्यक्ष लालू प्रसाद और कांग्रेस के नेताओं को अपने फैसले के बारे में जानकारी देकर अलग हो गये़
छवि के कारण ही भाजपा ने बिना एक पल गंवाये नीतीश कुमार को अपना समर्थन देने का फैसला कर लिया़ नयी सरकार में भाजपा व जदयू के पास वे सारे विभाग रहे जो पूर्व की एनडीए सरकार के वक्त था. फर्क इतना भर था कि भाजपा अब सत्ता में बराबर की भागीदार थी और जदयू के तेवर केंद्र के प्रति नरम पड़ गये.
समीकरण बदला, पर केंद्र में रहा विकास का एजेंडा
महागठबंधन से बाहर निकलने पर आलोचनाओं को दरकिनार करते हुए मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने सार्वजनिक तौर पर कहा कि जनता ने उन्हें एक परिवार की खिदमत के लिए वोट नहीं दिया था़
वह अपने उसूलों से कभी समझौता नहीं कर सकते़ दरअसल, महागठबंधन के सबसे बड़े धड़े राजद के नेता लालू प्रसाद, उनके पुत्र और तत्कालीन उप मुख्यमंत्री तेजस्वी प्रसाद यादव के खिलाफ सीबीआइ ने आर्थिक भ्रष्टाचार का मुकदमा दायर किया़ लालू-राबड़ी के पटना और दिल्ली स्थित आवास पर सीबीआइ ने घंटों डेरा डाले रखा और आवास पर मौजूद पूर्व सीएम राबड़ी देवी तथा तेजस्वी प्रसाद यादव से पूछताछ भी की़
इन घटनाओं के बाद सरकार पर भ्रष्टाचार पर दोहरी नीति अपनाने के आरोप लगने लगे. सरकार का मुखिया होने के नाते नीतीश कुमार ने उप मुख्यमंत्री को अपने ऊपर लगे आरोपों का जनता के बीच सफाई देने की सलाह दी थी़ आखिरकार नीतीश कुमार ने मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा दे दिया़ इस तरह 20 महीने पूर्व बनी महागठबंधन की सरकार बीच में ही धराशायी हो गयी़
26 जुलाई को क्या हुआ़़
26 जुलाई, गुरुवार . मुख्यमंत्री आवास पर जदयू के वरिष्ठ नेताओं की बैठक चली रही थी़ बाहर मीडिया की निगाहें सीएम आवास की ओर से हर आने-जानेवाली गाड़ियों पर टिकी थीं. देर शाम सीएम आवास से अचानक गाड़ियों का काफिला निकला़ जब तक सब कुछ समझ पाते गाड़ियां राजभवन की ओर बढ़ चलीं. उसी वक्त किसी के मोबाइल पर यह खबर आयी कि सीएम ने इस्तीफा देने का फैसला लिया है और राजभवन इस्तीफा सौंपने गये हैं. तब तक शाम के सात बज चुके थे़ आधे घंटे बाद नीतीश कुमार राजभवन से बाहर आये तो उनके चेहरे पर संतोष के भाव थे़ गाड़ी से उतर उन्होंने मीडिया से अपने इस्तीफे की पुष्टि की़
उनके इस्तीफे की खबर फैलते ही सीएम आवास के बाहर जदयू नेताओं का जमावड़ा लगना शुरू हो गया़ उधर, भाजपा विधायक दल की बैठक हुई और नीतीश कुमार को समर्थन देने का फैसला लेकर दल के वरिष्ठ नेताओं की एक टीम सीएम आवास पहुंची़ थोड़ी देर बाद जदयू-भाजपा विधायक दल की संयुक्त बैठक बुलायी गयी और नीतीश कुमार को विधायक दल का नेता चुन लिया गया़ आधी रात 12 बजे नीतीश कुमार राजभवन गये और सरकार बनाने का दावा पेश किया़ राज्यपाल केसरी नाथ त्रिपाठी ने उन्हें सरकार बनाने का न्योता दिया़ अगले दिन नयी सरकार बनने वाली थी़ इस बीच खबर आयी कि देर रात एक बजे के बाद राजद विधायक दल के नेता तेजस्वी यादव ने भी राजभवन मार्च किया पर तब तक देर हो चुकी थी़ अगले दिन 27 जुलाई, 2017 को नीतीश कुमार छठी बार राज्य के मुख्यमंत्री बने़
सिर्फ रूटीन के सीएम रह गये नीतीश : रामचंद्र पूर्वे
पूर्वे का क हना है कि दरअसल, 27 जुलाई, 2017 की तारीख को संसदीय लोकतंत्र के काले दिन के रूप में याद किया जायेगा. इस दिन महागठबंधन का मैंडेट न सिर्फ किनारे हुआ बल्कि सांप्रदायिक और फासीवादी ताकतों के बल पर नीतीश फिर सीएम बन गये़
चूंकि लोकतांत्रितक गठबंधन में तीन दलों के महागठबंधन को बहुमत मिला था और लालू प्रसाद ने ऐलान किया था कि यदि राजद को जदयू से अधिक सीटें मिलेंगी, तब भी मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ही बनेंगे़ ऐसे में न सिर्फ जनता के मैंडेट के साथ धोखा हुआ बल्कि राजद अध्यक्ष लालू प्रसाद के भरोसे के साथ भी विश्वासघात हुआ है़ जनादेश से मुंह मोड़ेने की सजा उन्हें मिलेगी़
इस घटना से मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की राजनीतक और सामाजिक साख भी गिरी है. वह सिर्फ कुर्सी के लिए मुख्यमंत्री बने हुए हैं. सरकार और कानून व्यवस्था एक दूसरे का पर्याय रहा है़ लेकिन, मौजूदा सरकार में अपराध पर काबू नहीं रह गया है़ आये दिन भष्टाचार के नये-नये मामले उजागर हो रहे हैं. महिलाओं के साथ अपराध की घटनाएं बढ़ रही हैं. सरकार का इकबाल खत्म हो गया है़ गरीबों के हित में कोई काम नहीं हो रहा़
शिक्षा व्यवस्था चौपट हो गयी है
शिक्षा व्यवस्था चौपट हो गयी है़ सरकारी स्कूलों में गरीबों के बच्चे पढ़ रहे हैं, लेकिन उनकी सुविधाओं का कोई ख्याल नहीं है़ बच्चों को गुणवत्ता पूर्ण शिक्षा नहीं मिल रही़ शराबबंदी कानून में संशोधन तो कर दिया गया लेकिन, वही शराब अब होम डेलेवरी से बेड डिलेवरी तक पहुंच गयी है़ सीमावर्ती इलाके चाहे यूपी से सटा हो या बंगाल और नेपाल व यूपी का, सभी जगहों से शराब की आवाजाही बनी हुई है़ इसके तार पटना तक जुड़े हुए हैं. कुल मिलाकर सरकार पूरी तरह फेल है़