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राजनीतिक सवालों से घबरा गये उपेंद्र कुशवाहा, पत्रकारों से बोले- कहिए तो आपके पांव पकड़ लूं

पटना : आज गुरू पूर्णिमा के एकदिवसीय उपवास में भाग लेने पहुंचे आरएलएसपी अध्यक्ष और केंद्रीय मंत्री उपेंद्र कुशवाहा पर पत्रकारों ने सवालों की बौछार कर दी. वहीं, कुशवाहा सवालों से बचते दिखे. उन्होंने खुद का बचाव करते हुए कहा कि आज के दिन यहां शिक्षकों के आदर लिए शिक्षकों से संबंधित सवाल ही पूछें. […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | July 27, 2018 10:14 PM

पटना : आज गुरू पूर्णिमा के एकदिवसीय उपवास में भाग लेने पहुंचे आरएलएसपी अध्यक्ष और केंद्रीय मंत्री उपेंद्र कुशवाहा पर पत्रकारों ने सवालों की बौछार कर दी. वहीं, कुशवाहा सवालों से बचते दिखे. उन्होंने खुद का बचाव करते हुए कहा कि आज के दिन यहां शिक्षकों के आदर लिए शिक्षकों से संबंधित सवाल ही पूछें. लेकिन, पत्रकार कहां मानने वाले थे. इतना के बावजूद भी पत्रकारों ने कुशवाहा के सामने राजनीतिक सवालों की झड़ी लगा दी. यह देख कुशवाहा ने पत्रकारों से कहा कि हम यहां राजनीति करने नहीं आये हैं. कहिए तो मैं आपके हाथ जोड़ लूं या पैर पकड़ लूं. गौरतलब हो कि हाल ही में कुशवाहा ने कहा था कि अब नीतीश कुमार को मुख्यमंत्री का पद छोड़ देना चाहिए और दूसरों को भी मौका देना चाहिए. उनके इसी बयान को लेकर सवाल किये जा रहे थे.

उपेंद्र कुशवाहा ने कहा कि आज के दिन पूरे बिहार में पार्टी की ओर से सभी जिला मुख्यालयों पर ‘शिक्षा सुधार, शिक्षक सत्कार’ का कार्यक्रम आयोजित है. इस कार्यक्रम के माध्यम से समाज में यह मैसेज देना चाहते हैं कि शिक्षकों के प्रति सम्मान का भाव आदर का भाव बनाकर रखना जरूरी है. जब तक शिक्षकों के प्रति समाज में आदर और सम्मान का भाव नहीं होगा तब तक शिक्षा का स्तर ऊंचा नहीं उठ सकता.

कुशवाहा ने कहा कि गांधी मैदान के कार्यक्रम में हमने शिक्षा के प्रति सुधार का संकल्प लिया था. शिक्षा राजनीति का विषय नहीं राष्ट्रनीति का विषय है. इसको दलीय भावना से अलग उठ कर सोचना चाहिए. मैं आग्रह करता हूं कि शिक्षक को रसोइया, ठेकेदार आदि नहीं बनाया जाये बल्कि शिक्षक को शिक्षक ही रहने दें. शिक्षको के प्रति नारा हे कि ‘जब तक शिक्षक भूखा है, ज्ञान का मंदिर सूखा है. आरएलएसपी अध्यक्ष ने कह कि हमारे देश में गुरुओं को सबसे ज्यादा सम्मान दिया जाता है. बिहार का नाम शिक्षा के गौरवशाली रहा है. लेकिन, आज देखने से लगता है कि वो परंपरा दिन प्रति दिन खत्म होती जा रही है.

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