– 21वीं सदी में भी देह से परे नहीं हो पाया स्त्रियों का अस्तित्व: उषा किरण खान
– रेप की शिकार बालिका गृह की बच्चियों के मन की उलझने कौन सुलझायेगा: डॉ बिंदा सिंह, क्लीनिकल साइकोलॉजिस्ट
– सोचती हूं,अगर उस बालिका गृह में मैं होती तो क्या करती: प्रियस्वरा भारती, किलकारी की किशोरी
– कस्टोडियल रेप की तरह देखें मुजफ्फरपुर की घटना को: मीना तिवारी, एपवा की अध्यक्ष
-मुजफ्फरपुर तक सीमित कर देने से नहीं होगा यौन हिंसा का समाधान: शाहिना परवीन, सामाजिक कार्यकर्ता
– ठेके की तरह बंटता है बाल गृहों का काम, इसलिए एनजीओ अपना फायदा देखते हैं: प्रमोद कुमार शर्मा
पटना : बिहार में मुज्जफरपुरस्थित बालिका गृह में घटित वीभत्स घटना को लेकर उद्देलित पटना का बौद्धिक समाज आज बारिश और जाम के बीच बीआईए हॉल में जुटा. बिहार डायलॉग के इस आयोजन में लोगों के सवाल खत्म होने का नाम नहीं ले रहे थे. चिंताएं जो मन में दबी थी वो फूट निकली. पहले महिलाओं ने अपने मन के भावों को व्यक्त किया. बाद में विशेषज्ञों ने बिहार के बाल गृहों की स्थिति का अवलोकन प्रस्तुत किया. चार घंटे चले इस आयोजन में वक्ता और श्रोता का भेद मिट गया और एक सुर में कहा गया कि यह घटना सभ्य समाज के माथे पर कलंक है. अब समाज और सरकार दोनों को मिलकर तत्काल इसका समाधान तलाशना होगा.
पहला सत्र महिलाओं का था, जिसमें सोलह वर्ष की प्रियस्वरा से लेकर हिंदी और मैथिली की बुजुर्ग कथाकार उषा किरण खान तक मंच पर उपस्थित थीं. पद्मश्री उषा किरण खान ने कहा कि यह बहुत ही दुखदायी है कि अब रक्षक ही भक्षक बन बैठे हैं.अब समाज को ही आगे आकर प्रतिकार करना होगा.30साल पहले मैंने पटना के एक बालिका गृह में देखा था, वहां की संचालिका तो सजधज कर बैठी हैं, लेकिन अंदर8-10किशोरियां एक साड़ी में ही लिपटी पड़ी हैं. आज भी हालात बहुत नहीं बदले. यह तभी बदलेंगे जब स्त्रियां खुद अपना अधिकार मांगेंगी.
बहस में हस्तक्षेप करते हुए जानी-मानी क्लीनिकल साइकोलॉजिस्ट डॉ. बिंदा सिंह ने कहा कि मुज्जफरपुर में हुई घटना बाद क्या किसी मनोवैज्ञानिक ने उन लड़कियों से मुलाकात की?खबरों से पता चलता है कि वहां15लड़कियों ने अपने हाथ तक काट लिए है, वे कितनी मानसिक दबाव में होंगी इसका अंदाजा भी नहीं लगाया जा सकता.
11वीं की छात्रा प्रियस्वरा भारती ने कहा किमिनिस्ट्री ऑफ वीमेन एंड चाइल्ड डिपार्टमेंट ने बिहार को महिलाओं के लिए असुरक्षित राज्य माना है. हर घंटे बिहार के किसी कोने में कोई लड़की छेड़खानी का शिकार होती है. वैसी घटनाओं का क्या, जिनकी चीख हमतक नहीं पहुंच पाती, जिसकी संख्या दर्ज आंकड़ों से कहीं ज्यादा है. मैं सोचती हूं कि अगर उस जगह पर मैं होती तो क्या करती या आप लोगों में होते तो क्या करते.
ऐपवा की अध्यक्ष मीना तिवारी ने सवाल उठाया कि सरकार आज भीटिसकी रिपोर्ट को सार्वजनिक क्यों नहीं कर रही. ऐसा लगता है कि इस मामले को सीमित करने का प्रयास किया जा रहा है. सीबीआई जांच एक छलावा है, यह रूपम पाठक के केस में हमलोगों ने देखा है. इस सत्र का संचालन करते हुए सामाजिक कार्यकर्ता शाहीना परवीन ने अपने विचार से पूरी बहस को एक सार्थक हस्तक्षेप में बदल दिया.
दूसरे सत्र में बिहार में बाल गृह संचालन की परेशानियों पर बातचीत हुई. इस सत्र को अधिवक्ता केडी मिश्र, सेंटर डायरेक्ट के सचिव प्रमोद कुमार शर्मा और ह्यूमन लिबर्टी नेटवर्क के सचिन कुमार ने संबोधित किया. प्रमोद कुमार शर्मा ने कहा कि बाल गृहों में काम करने वाले अक्सर अप्रशिक्षित होते हैं, उन्हें प्रशिक्षित किये जाने की जरूरत है. बाल गृहों का काम भी सरकारी ठेके की तरह बंटता है, इसलिए एनजीओ भी मुनाफा देखने लगे हैं.
सचिन कुमार ने हाल ही में पारित ह्यूमन ट्रैफिकिंग बिल की तारीफ की और कहा कि इससे ट्रैकिंग और पुनर्वास का काम ज्यादा सुचारु हो सकेगा. उन्होंने उन मसलों पर बात की जिससे स्थितियां सुधर सकती हैं. मुजफ्फरपुर मामले के उजागर होने पर जनहित याचिका दायर करने वाले वकील केडी मिश्रा ने कहा कि इस पूरे मामले में पॉस्को एक्ट का उल्लंघन हुआ है. टिस की जिस रिपोर्ट से यह सब उजागर हुआ उसे अब तक क्यों छिपाकर रखा गया है. सत्र का संचालन बाल श्रम के मुद्दे पर लंबे समय से काम करने वाले सुरेश कुमार ने किया और उन्होंने कई मसलों पर सार्थक हस्तक्षेप किया.