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मुजफ्फरपुर बालिका गृह कांड : सुप्रीम कोर्ट ने दिया केंद्र व बिहार सरकार को नोटिस, मांगी रिपोर्ट

नयी दिल्ली : बिहार के मुजफ्फरपुर में बालिका गृह की बच्चियों से दुष्कर्म के मामले में अब सुप्रीम कोर्ट ने स्वतः संज्ञान लिया है. गुरुवार को सुप्रीम कोर्ट ने मीडिया द्वारा पीड़ित बच्चियों के इंटरव्यू और फोटो प्रकाशित करने पर रोक लगा दी. जस्टिस मदन बी लोकुर और जस्टिस दीपक गुप्ता की पीठ ने कहा […]

नयी दिल्ली : बिहार के मुजफ्फरपुर में बालिका गृह की बच्चियों से दुष्कर्म के मामले में अब सुप्रीम कोर्ट ने स्वतः संज्ञान लिया है. गुरुवार को सुप्रीम कोर्ट ने मीडिया द्वारा पीड़ित बच्चियों के इंटरव्यू और फोटो प्रकाशित करने पर रोक लगा दी.
जस्टिस मदन बी लोकुर और जस्टिस दीपक गुप्ता की पीठ ने कहा कि आश्रय गृह में दुष्कर्म और यौन शोषण की कथित पीड़िताओं की तस्वीरें और इंटरव्यू इलेक्ट्रॉनिक मीडिया पर प्रसारित नहीं किया जाये. पीठ ने पीड़िताओं की तस्वीरों का रूप बदलकर भी इन्हें इलेक्ट्रॉनिक मीडिया पर प्रसारित करने पर रोक लगा दी. पीठ ने कहा कि इन पीड़िताओं को इस अमानवीय अपमान को बार-बार दोहराने के लिए बाध्य नहीं किया जा सकता.
इसके अलावा पीठ ने बाल अधिकार संरक्षण आयोग, बिहार और केंद्र सरकार, टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ सोशल साइंस (टीआइएसएस) को नोटिस भेजा और इस संबंध में जवाब मांगा है. इस मामले में अब अगली सुनवाई सात अगस्त को होगी. पीठ ने पटना निवासी रणविजय कुमार के पत्र पर स्वत: संज्ञान लिया. टीआइएसएस, मुंबई द्वारा अप्रैल में राज्य के समाज कल्याण विभाग को सौंपी गयी एक ऑडिट रिपोर्ट में लड़कियों के कथित यौन शोषण के बारे में बताया गया था.
पीठ ने थाईलैंड गुफा का किया जिक्र
वकील अपर्णा भट को इस मामले में न्याय मित्र नियुक्त किया गया है. उन्होंने न्यायालय से यह निर्देश देने का अनुरोध किया कि कथित पीड़िताओं का कोई भी मीडिया इंटरव्यू नहीं होना चाहिए. इस पर पीठ ने सवाल किया कि बोलने और अभिव्यक्ति की आजादी का क्या होगा?
तब मीडिया कहेगा कि सुप्रीम कोर्ट हमारे ऊपर प्रतिबंध लगा रहा है. पीठ ने थाईलैंड की हाल की उस घटना का जिक्र किया, जिसमें एक गुफा में फुटबॉल टीम के बच्चे और उनका कोच कई दिन फंसे रहे. पीठ ने कहा कि गुफा से सुरक्षित बाहर निकाले जाने के बाद 15 से 20 दिन तक उनसे इंटरव्यू की अनुमति नहीं दी गयी थी. उन सभी का एक संयुक्त इंटरव्यू ही हुआ था.
सभी बाल संरक्षण संस्थाओं का करें निरीक्षण : डब्ल्यूसीडी
महिला एवं बाल विकास (डब्ल्यूसीडी) ने राज्यों को सभी बाल संरक्षण संस्थाओं के निरीक्षण का निर्देश दिया है. एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि संबंधित क्षेत्र के जिलाधिकारी को मामले में जांच करवाने और एक रिपोर्ट सौंपने को कहा गया है. हमने राज्यों से उनके जिलाधिकारियों को सभी बाल देखभाल संस्थाओं के निरीक्षण और मंत्रालय को एक रिपोर्ट भेजने को कहा है.
पीडि़त बच्चियों की फोटो व इंटरव्यू दिखाने पर लगायी रोक
बाल मनोचिकित्सकों की मदद ले जांच एजेंसी
पीठ ने कहा कि उसने पुलिस को जांच करने से नहीं रोका है. यदि वह कथित पीड़ित बच्चियों से सवाल करना चाहती है, तो उसे पेशेवर काउंसिलर और बेंगलुरु स्थिति राष्ट्रीय मानसिक स्वास्थ्य संस्था और तंत्रिका विज्ञान तथा टाटा सामाजिक विज्ञान संस्थान में योग्यता प्राप्त बाल मनोचिकित्सकों की मदद लेनी होगी. सुनवाई के दौरान अपर्णा भट ने कहा कि ऐसे मामलों के शिकार नाबालिग पीड़ितों का इंटरव्यू करने के लिए प्रोटोकॉल होना चाहिए.
ब्रजेश की जमानत पर हाईकोर्ट ने मांगी केस डायरी
पटना : मुजफ्फरपुर बालिका गृह मामले के मुख्य अभियुक्त ब्रजेश कुमार ठाकुर की नियमित जमानत याचिका पर सुनवाई करते हुए पटना हाईकोर्ट ने निचली अदालत से केस डायरी की मांग की है.
न्यायाधीश अरुण कुमार की एकलपीठ ने कहा कि निचली अदालत से केस डायरी आ जाने के बाद ही इस मामले पर आगे की सुनवाई की जायेगी . मालूम हो कि मुजफ्फरपुर में हुए बालिका गृह यौन उत्पीड़न कांड में ब्रजेश ठाकुर मुख्य अभियुक्त हैं.
पुलिस ने इन्हें गिरफ्तार कर जेल भेज दिया था. इस मामले को उजागर होने के बाद मुजफ्फरपुर के महिला थाना द्वारा प्राथमिकी दर्ज कर इस मामले की जांच शुरू की गयी. जांच में आये साक्ष्य के आधार पर इस मामले में 10 आरोपितों के खिलाफ पुलिस द्वारा आईपीसी की धारा 376, 354 और जेजे एक्ट की धारा 75 और 85 के तहत 10 अभियुक्तों के खिलाफ आरोपपत्र निचली अदालत में समर्पित किया जा चुका है.
इसी बीच राज्य सरकार ने इस मामले की जांच का जिम्मा केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई ) को सौंप दिया. सीबीआई ने इस मामले में प्राथमिकी दर्ज कर अनुसंधान भी शुरू कर दिया है. मुजफ्फरपुर बालिका गृह मामले में हुए यौन उत्पीड़न का खुलासा तब हुआ जब मुंबई की एक संस्था टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ सोशल साइंसेज ने बालिका गृह की सोशल ऑडिट रिपोर्ट में यौन शोषण का उल्लेख करते हुए राज्य सरकार को अपनी रिपोर्ट सौंपी थी.
मामले की सत्यता की जानकारी मिलने के बाद मुजफ्फरपुर महिला थाने में इस मामले की एक प्राथमिकी दर्ज करायी गयी. प्राथमिकी दर्ज कराये जाने के बाद लड़कियों की चिकित्सीय जांच में इस बात का खुलासा हुआ कि वहां रहने वाली 41 लड़कियों में से 29 लड़कियों के साथ दुष्कर्म हुआ है. प्राथमिकी के आरोपों की सत्यता की जांच और अनुसंधान में मिले साक्ष्यों के बाद मुजफ्फरपुर पुलिस द्वारा 55 दिनों के बाद इन अभियुक्तों के खिलाफ निचली अदालत में चार्जशीट दाखिल किया गया था.
उसमें ब्रजेश कुमार ठाकुर जो समिति के संरक्षक व संचालक हैं मुख्य अभियुक्त बताया गया है. ब्रजेश कुमार ठाकुर के साथ ही रवि कुमार रोशन (सीपीओ), विकास कुमार (एसीपी ओ), इंदु कुमारी (समिति की अध्यक्ष), मंजू देवी (आवास गृह की सुपरिटेंडेंट ) हेमा मसीह (काउंसलर) मीनू देवी, चंदा देवी( प्रोबेशन पदाधिकारी), नेहा कुमारी( गृह माता), किरण कुमारी (नर्स) शामिल हैं. जबकि इस केस में एक आरोपी दिलीप कुमार वर्मा फरार हैं.
पिछले दिनों मुजफ्फरपुर, छपरा, हाजीपुर के शेल्टर होम में 21 बच्चियों के साथ दुष्कर्म की घटना सामने आयी थी . इन सभी मामलों का मुख्य अभियुक्त ब्रजेश कुमार ठाकुर ही बताया जा रहा है. ब्रजेश कुमार ठाकुर की नियमित जमानत याचिका पर अब निचली अदालत से केस डायरी आने के बाद ही सुनवाई होगी.
सीबीआई ने निदेशक से लिये दस्तावेज
पटना : मुजफ्फरपुर बालिका गृह दुष्कर्म कांड में सीबीआई (केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो) ने गुरुवार को समाज कल्याण के निदेशक राजकुमार से संबंधित दस्तावेज हासिल कर लिये. सीबीआई ने निदेशक से कुछ पूछताछ भी की. सूत्रों के अनुसार सीबीआई की टीम ब्रजेश ठाकुर के बालिका गृह से जुड़े हर मामले के दस्तावेज अपने साथ ले गयी.
इससे पूर्व सीबीआई के अधिकारियों ने एक अगस्त को समाज कल्याण विभाग के प्रधान सचिव अतुल प्रसाद से भी पूछताछ की थी. विभागीय पूछताछ में सीबीआई विभिन्न बिंदुओं पर जानकारी हासिल कर रही है.सीबीआई यह जानने की कोशिश कर रही है कि समाज कल्याण विभाग से इतने बड़े पैमाने पर किस तरह ब्रजेश ठाकुर के एनजीओ को काम मिलता रहा. कभी जांच में यह बात सामने क्यों नहीं आयी. जांच करने कौन-कौन अधिकारी इन गृहों का भ्रमण किया है.
उनकी रिपोर्ट क्या है आदि बिंदुओं पर सीबीआई फोकस कर रही है. सीबीआई अब पीड़ित बच्चियों से मिलकर उनका बयान दर्ज करेगी. लड़कियों के बयान के आधार पर एजेंसी के अधिकारी संदेह के घेरे में आनेवाले कई सफेदपोशों की तस्वीर से पहचान कराने की कोशिश करेंगे. इसके अलावा समाज कल्याण विभाग के भी जिम्मेदार अधिकारियों से पूछताछ संभव है. गौरतलब है कि हाईकोर्ट के साथ सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले पर संज्ञान ले लिया है.
सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र और बिहार सरकार को नोटिस भी जारी किया है. कोर्ट की नजर इस मामले पर है, इसलिए सीबीआई तेजी से जांच के काम को आगे बढ़ा रही है. सुप्रीम कोर्ट ने पीड़ित लड़कियों की तस्वीरें और वीडियो दिखाने पर गंभीर आपत्ति जतायी और साफ किया कि पहचान छिपाने की कोशिश करते हुए संपादित तस्वीर या वीडियो किसी भी हाल में नहीं दिखाया जा सकता. उधर, सुप्रीम कोर्ट की प्रतिक्रिया के बाद मुख्य सचिव दीपक कुमार से गुरुवार शाम चार बजे बात की गयी.
उन्होंने स्पष्ट किया कि फिलहाल मीडिया से जानकारी मिली है. सुप्रीम कोर्ट के दिशा-निर्देशों के अनुसार सरकार काम करेगी. दूसरी ओर, छह अगस्त को राज्य सरकार को हाईकोर्ट में जवाब देना है. सूत्रों ने बताया कि छह अगस्त को राज्य सरकार खुद गुजारिश करेगी कि मुजफ्फरपुर कांड की निगरानी कोर्ट के स्तर से हो. बता दें कि मुजफ्फरपुर के महिला थाने में दर्ज कांड संख्या 3/2018 की जांच शुरू हो गयी है.
कई सवालों का जवाब ढूंढ़ रही है सीबीआई
सीबीआई के रडार पर समाज कल्याण विभाग के अधिकारी और कर्मचारी भी हैं. सूत्रों के मुताबिक बालिका गृह से सीधे ताल्लुक रखने वाली स्वयंसेवी संस्था सेवा संकल्प एवं विकास समिति के साथ करारनामा समेत केस से जुड़े अन्य कागजात का सीबीआई अध्ययन करेगी.
इसके बाद आगे की कार्रवाई होगी. सीबीआई, समाज कल्याण विभाग से इस बात की भी तहकीकात कर सकती है कि घटना उजागर होने के एक महीने बाद एफआईआर क्यों करायी गयी. इस लेटलतीफी की वजह क्या है. इस दौरान विभाग ने क्या एक्शन लिया और नहीं लिया तो इसकी वजह क्या थी? इन सवालों से भी समाज कल्याण विभाग के अधिकारियों का वास्ता पड़ सकता है.
सीबीआई के सवाल-
-सेवा संकल्प एवं विकास समिति का चयन कैसे हुआ
-चयन के लिए क्या प्रक्रिया अपनायी गयी
-अब तक समिति को कब-कब कितना भुगतान किया गया
-कौन से अधिकारी जांच के लिए बालिका गृह जाते थे
-जांच के बाद उनकी ओर से विभाग को क्या रिपोर्ट सौंपी गयी
-ब्रजेश ठाकुर से जुड़े कौन-कौन से एनजीओ हैं
-बालिका गृह संचालन के लिए विभाग की क्या शर्तें हैं.
-बालिका गृह के संचालन के लिए क्या कायदे-कानून हैं

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