सुप्रीम कोर्ट का सख्त निर्देश, सोशल मीडिया समेत कहीं भी प्रकाशित-प्रसारित ना हो यौन पीड़ित की तस्वीरें
नयी दिल्ली : उच्चतम न्यायालय ने देश में हर तरफ महिलाओं और बच्चियों के साथ बलात्कार की बढ़ती घटनाओं पर गहरी चिंता व्यक्त करते हुए प्रिंट, इलेक्ट्रानिक और सोशल मीडिया से कहा कि देश में यौन उत्पीड़न की घटना की पीड़ितों की तस्वीरें किसी भी रूप में प्रकाशित या प्रदर्शित नहीं की जाये. शीर्ष अदालत […]
नयी दिल्ली : उच्चतम न्यायालय ने देश में हर तरफ महिलाओं और बच्चियों के साथ बलात्कार की बढ़ती घटनाओं पर गहरी चिंता व्यक्त करते हुए प्रिंट, इलेक्ट्रानिक और सोशल मीडिया से कहा कि देश में यौन उत्पीड़न की घटना की पीड़ितों की तस्वीरें किसी भी रूप में प्रकाशित या प्रदर्शित नहीं की जाये. शीर्ष अदालत ने मंगलवार को राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) के आंकड़ों का हवाला देते हुए कहा कि हर दिन इस तरह की चार घटनाएं देश में रिपोर्ट हो रही हैं. अदालत ने इस तरह के अपराधों को रोकने के लिए कार्रवाई पर जोर दिया. शीर्ष अदालत ने यौन उत्पीड़न से पीड़ित नाबालिगों का इंटरव्यू नहीं करने की चेतावनी देते हुए कहा कि इसका दिमाग पर गंभीर असर पड़ता है.
शीर्ष अदालत ने कहा कि बाल यौन उत्पीड़न से पीड़ित बच्चों से सिर्फ राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग और राज्य बाल अधिकार संरक्षण आयोगों के सदस्य ही काउन्सिलर की मौजूदगी में इंटरव्यू कर सकते हैं. हालांकि, पीठ ने साफ कर दिया कि उसका आदेश जांच एजेंसियों को इस मामले की जांच करने से नहीं रोकेगा और कहा कि वे दो अगस्त के शीर्ष अदालत के निर्देश से बंधे रहेंगे. न्यायालय ने बिहार के मुजफ्फरपुर में एक एनजीओ द्वारा संचालित बालिका आश्रय गृह में लड़कियों के कथित यौन शोषण की घटना को ‘डरावना’ बताया और इस आश्रय गृह का संचालन करनेवाले गैर सरकारी संगठन को वित्तीय सहायता देने के लिए बिहार सरकार को आड़े हाथ लिया. इस आश्रय गृह की लड़कियों से कथित रूप से बलात्कार और उनके यौन शोषण की घटनाएं हुई हैं.
न्यायमूर्ति मदन बी लोकुर, न्यायमूर्ति दीपक गुप्ता और न्यायमूर्ति के एम जोसेफ की पीठ ने महिला एवं बाल विकास मंत्रालय से देशभर में आश्रय गृहों में नाबालिगों के यौन उत्पीड़न को रोकने के लिए प्रस्तावित कदमों के बारे में उसे जानकारी देने को कहा. पीठ ने कहा, ‘‘क्या किया जाना है. लड़कियों और महिलाओं से हर तरफ बलात्कार किया जा रहा है. एनसीआरबी के आंकड़ों के अनुसार, 2016 में भारत में महिलाओं के साथ बलात्कार की 38,947 बलात्कार घटनाएं हुईं. इसका मतलब है कि हर दिन चार महिलाओं से बलात्कार हुआ. ये रिपोर्ट किये गए आंकड़े हैं.’ पीठ ने कहा कि भारत में बलात्कार के रिपोर्ट होनेवाले मामलों की संख्या ‘परेशान’ करनेवाली है.
पीठ ने पटना के एक व्यक्ति के पत्र लिखने के बाद बिहार की घटना का संज्ञान लिया है. सुनवाई के दौरान पीठ ने उत्तर प्रदेश के देवरिया में एक आश्रय गृह में लड़कियों के कथित यौन शोषण, मध्य प्रदेश में लड़कियों को खुला बेचे जाने की खबरों का उल्लेख करते हुए कहा कि एनसीआरबी के आंकड़ों के अनुसार मध्य प्रदेश और उत्तर प्रदेश बलात्कार के मामले में दो शीर्ष राज्य हैं. पीठ ने कहा, ‘‘यह गंभीर चिंता का विषय है. किसी को इस तरह के अपराधों को रोकने के लिए कदम उठाना है. किसी को इसे करना है. भारत में हर छह घंटे में एक महिला से बलात्कार होता है.’ शीर्ष अदालत ने मुजफ्फरपुर में आश्रय गृह चलानेवाले एनजीओ का वित्तीय सहायता प्रदान करने के लिए बिहार सरकार को आड़े हाथ लेते हुए पूछा कि संगठन की पृष्ठभूमि की जांच क्यों नहीं की गई. पीठ ने कहा, ‘‘इन सबका मतलब है कि लोग कर का भुगतान कर रहे हैं और जनता के धन का इस तरह की गतिविधियों में इस्तेमाल हो रहा है. क्या आप इसकी कल्पना कर सकते हैं. क्यों राज्य ने ऐसा होने दिया. ऐसा लगता है कि राज्य ने इस तरह की गतिविधियों का वित्तपोषण करने के लिए धन दिया.’
बिहार सरकार की तरफ से वरिष्ठ अधिवक्ता रंजीत कुमार ने कहा कि राज्य ने घटना के प्रकाश में आने के बाद जरूरी कदम उठाये हैं. टीआईएसएस का प्रतिनिधित्व कर रहे वकील ने कहा कि मुजफ्फरपुर की घटना बिहार में अकेली नहीं है, क्योंकि राज्य में एनजीओ द्वारा संचालित इस तरह के 110 संस्थानों में से 15 संस्थानों के बारे में ‘गंभीर चिंता’ जतायी गयी है, जो सरकार द्वारा वित्तपोषित हैं. कुमार ने कहा कि इन 15 संस्थानों में से मुजफ्फरपुर आश्रय गृह मामले समेत नौ मामलों में प्राथमिकी दर्ज की गयी है और इन मामलों के सिलसिले में गिरफ्तारियां की गयी हैं. पीठ ने सुझाव दिया कि एनजीओ द्वारा संचालित आश्रय गृह की दैनिक आधार पर ‘उचित निगरानी’ की जानी चाहिए और इस तरह के संस्थानों में सीसीटीवी कैमरे लगाये जाने चाहिए, ताकि मुजफ्फरपुर जैसी घटनाओं की पुनरावृत्ति रोकी जा सके. पीठ ने इसके बाद मामले की अगली सुनवाई की तारीख 14 अगस्त को निर्धारित कर दी.
न्यायालय ने केंद्र से 3000 आश्रय गृहों के सोशल ऑडिट की जानकारी मांगी
उच्चतम न्यायालय ने महिला एवं बाल विकास मंत्रालय को निर्देश दिया कि वह देशभर के तकरीबन 3000 आश्रय गृहों के सोशल ऑडिट के आंकड़े और सर्वेक्षण उसके समक्ष पेश करे. न्यायमूर्ति मदन बी लोकुर, न्यायमूर्ति दीपक गुप्ता और न्यायमूर्ति के एम जोसफ की पीठ को बिहार के मुजफ्फरपुर में एक एनजीओ द्वारा संचालित आश्रय गृह में लड़कियों के कथित यौन शोषण मामले पर सुनवाई करने के दौरान केंद्र ने सूचित किया कि तकरीबन 3000 आश्रय गृहों में आधारभूत ढांचे, सुविधाओं और वहां कर्मचारियों के बारे में सर्वेक्षण कराया गया. केंद्र की तरफ से अतिरिक्त सॉलीसीटर जनरल पिंकी आनंद ने कहा कि राष्ट्रीय बाल संरक्षण आयोग (एनसीपीसीआर) ने सर्वेक्षण कराया है और अंतिम रिपोर्ट तैयार की जा रही है. पीठ ने कहा, ‘‘महिला एवं बाल विकास मंत्रालय के पास जो भी डेटा है उसे अदालत के समक्ष रखे.’