दम तोड़तीं संवेदनाएं हड़ताल के दौरान हुईं मौतों का आखिर कौन है जिम्मेदार
पटना : बिहार में डॉक्टरों की हड़ताल के कारण पिछले 11 सालों से अब तक करीब सात सौ मरीजों की मौत हो चुकी है. ये आंकड़े चौंकाने वाले हैं. संभव है इनमें कई मौतें रोग की गंभीरता से हुई हों, लेकिन तथ्य यह है कि हड़ताल के दौरान अस्पताल में होने वाली मौतों का आंकड़ा […]
पटना : बिहार में डॉक्टरों की हड़ताल के कारण पिछले 11 सालों से अब तक करीब सात सौ मरीजों की मौत हो चुकी है. ये आंकड़े चौंकाने वाले हैं. संभव है इनमें कई मौतें रोग की गंभीरता से हुई हों, लेकिन तथ्य यह है कि हड़ताल के दौरान अस्पताल में होने वाली मौतों का आंकड़ा बढ़ जाता है, क्योंकि इलाज बाधित होता है.
ऐसे परिदृश्य में हैरत की बात यह है कि अस्पताल प्रशासन ने इसेंसियल सर्विसेज मेंटेनेंस एक्ट(एस्मा) जैसा अहम कानून प्रभावी करने का प्रयास नहीं किया. परिणाम यह रहा कि असंख्य मरीजों को बिना इलाज के लौटना पड़ा. लाठी डंडे खाने पड़े. जान बचाने अस्पताल से पलायन कर महंगे अस्पतालों में जाना पड़ा. यह मामला मानवाधिकार के उल्लंघन से भी जुड़ा है.
आधिकारिक जानकारी के मुताबिक ये स्ट्राइक बेहद असंवेदनशील रही. हालांकि कई ऐसे कानून हैं, जिनमें आवश्यक सेवाओं को बाधित नहीं किया जा सकता है. हालांकि सरकारी एजेंसियां उन कानूनों के इस्तेमाल से बचती रही हैं. ऐसा ही पीएमसीएच और एनएमसीएच में बीते रोज हुई हड़ताल के दौरान देखा गया.
सुप्रीम कोर्ट ने भी अपने तमाम फैसलों में अस्पताल में इलाज ठप करने वाली हड़तालों को गैर कानून करार दिया है. जानकारों के मुताबिक डॉक्टर सरकारी कार्यालय जैसे जिलाधिकारी दफ्तर आदि व अन्य जगहों पर नारेबाजी कर अपना विरोध प्रदर्शन कर सकते हैं, लेकिन डॉक्टर्स को इमरजेंसी चिकित्सा को बाधित करने का अधिकार नहीं है.
जवाबदेही तय होनी चाहिए : हड़ताल के दौरान मरीजों की मौत की जवाबदेही तय होनी चाहिए. क्योंकि यह पूरी तरह से मानवाधिकार का उल्लंघन भी है. यह कहना है इंदिरा गांधी आयुर्विज्ञान संस्थान के डॉक्टर रत्नेश चौधरी का. बार-बार हड़ताल और उस दौरान मरीजों की मौत की वजह और उसकी जिम्मेदारी तय होनी चाहिए. हड़ताल में मरीजों की परेशानी और मौत की जवाबदेही तय हो जायेगी तो डॉक्टर हड़ताल पर जाने से पहले जरूर सोचेंगे.
हड़ताल के खिलाफ है सुप्रीम कोर्ट
पटना हाईकोर्ट के अधिवक्ता अरुण कुमार ने बताया कि अस्पताल का काम बाधित कर हड़ताल नहीं किया जा सकता. सुप्रीम कोर्ट हड़ताल के खिलाफ कई राज्य सरकारों को आदेश भी जारी कर चुका है. अरुण ने बताया कि इसेंसियल सर्विसेज मेंटेनेंस एक्ट (ईएसएमए) 1981 के तहत सरकार से डिमांड किया गया था डॉक्टर हड़ताल नहीं करे, अगर उनको अपनी बात रखनी है तो वह सरकार के सामने अपनी बात रखें. सुप्रीम कोर्ट का कामेश्वर प्रसाद व अन्य बनाम बिहार सरकार एवं अन्य 1962 में आदेश आ चुका है. 1962 में भी कोर्ट ने स्ट्राइक को गैर कानूनी बताया था.
एस्मा का नहीं लिया गया सहारा : बिहार सरकार ने 2007 में एनएमसीएच और दूसरे मेडिकल कॉलेज में नर्सों की हड़ताल को खत्म कराने के लिए एस्मा का उपयोग किया था. हैरत की बात यह है कि अबकी बार इस कानून का इस्तेमाल नहीं किया गया. एस्मा के तहत आवश्यक सेवाओं को चाहे वह पब्लिक ट्रांसपोर्ट हो या चिकित्सा सुविधा, इसको बाधित नहीं किया जा सकता है. जानकारी हो कि दिल्ली सरकार ने वर्ष 2015 में सरकारी चिकित्सकों पर एस्मा प्रयोग की चेतावनी दी थी, तब हड़ताल कुछ घंटों में खत्म हो गयी थी. भारत सरकार ने एस्मा को 1968 में प्रभावी किया था.
एस्मा पर इकतरफा नहीं लिया जा सकता निर्णय: पीएमसीएच, एनएमसीएच में जूनियर डॉक्टरों की हड़ताल पर जिलाधिकारी कुमार रवि ने कहा कि एक दिन के हड़ताल पर एस्मा लागू नहीं किया जा सकता है. उनकी मांग को भी देखना होता है. एकतरफा निर्णय नहीं लिया जा सकता है. हड़ताल के दौरान सीनियर डॉक्टरों की तैनाती की गयी थी. जहां तक इमरजेंसी में मौत का सवाल है तो ये जांच का विषय है कि किन परिस्थितियों में मरीजों की मृत्यु हुई है. हमलोग इसकी रिपोर्ट मांग रहे हैं. हड़ताल अगर आगे चलती तो और निर्णय लिया जाता.
एक नजर
संविधान का अनुच्छेद 19 (1 ए) कहता है कि स्ट्राइक मौलिक अधिकार नहीं है. इससे संबंधित जो भी नियम है वह भी स्ट्राइक को गलत बताता है.
सुप्रीम कोर्ट फॉर जस्ट और अन्य जस्ट कारण के लिए हड़ताल को गलत कहता है
सुप्रीम कोर्ट ने 1998 में केरल हाईकोर्ट के फैसले को बरकरार रखते हुए हड़ताल को रोक लगा दी है
सुप्रीम कोर्ट ने 2003 में तमिलनाडु हाईकोर्ट को सही करार देते हुए हड़ताल को रोक लगा दिया है
कोर्ड ऑफ एथिक रेगुलेशन, एएमसीआई एक्ट भी कहता है कि डॉक्टर इमरजेंसी वार्ड को बाधित नहीं कर सकते
एक्सपर्ट व्यू
समूचा मामला मानवाधिकार से जुड़ा है. चिकित्सा सेवा आवश्यक सेवा है. संवेदनशील है. अगर डाॅक्टरों की लापरवाही से मरीजों का इलाज बाधित होता है तो इस मामले को मानवाधिकार आयोग की संज्ञान में लाया जाना चाहिए. इसके लिए पीड़ितों को भी आगे आना चाहिए. आयोग इस मामले में संवेदनशीलता के साथ सुनेगा. उसके पास इस मामले में दखल देने का अधिकार है. आयोग इस मामले में संवेदनशीलता के साथ सुनेगा और एक्शन भी लेगा.
नीलमणि, रिटायर्ड डीजीपी एवं पूर्व सदस्य बिहार मानवाधिकार आयोग
कब और कितने मरीजों की हुई मौत
वर्ष हड़ताल मौत
2008 07 300
2009 04 157
2010 03 135
2011 01 45
2012 02 09
2013 01 00
2014 00 00
2015 01 14
2016 01 15
2017 02 54
2018 01 08
यहां भी ध्यान दें
हड़ताल करने से कई बेगुनाहों की मौत हो जाती है, किसी और की गलती की सजा निर्दोष लोगों को क्यों दी जाये?
बिहार बड़ा राज्य है, उस हिसाब से देखा जाये तो यहां डॉक्टरों की संख्या कम है. इसलिए छुटपुट घटनाओं के कारण इतना बड़ा कदम उठाना गलत है
बिहार में पहले ही डॉक्टरों की बड़ी कमी है. 2000 लोगों पर मात्र 1 डॉक्टर होता है. ऐसे में ये भी स्ट्राइक पे जाने लगे तो जनता का क्या होगा?
यदि उन्हें अपनी कोई बात बतानी है या अपनी मांग रखनी है तो वे इसके लिए कोई और तरिका अपना सकते है जैसे हाथ पर काली पट्टी बांध कर काम करना
लोगो के लिए डॉक्टर भगवान के समान है और वे विश्वास लेकर आते है उनके भरोसे को नहीं तोड़ना चाहिए.
एस्मा पर इकतरफा नहीं लिया जा सकता निर्णय: पीएमसीएच, एनएमसीएच में जूनियर डॉक्टरों की हड़ताल पर जिलाधिकारी कुमार रवि ने कहा कि एक दिन के हड़ताल पर एस्मा लागू नहीं किया जा सकता है. उनकी मांग को भी देखना होता है. एकतरफा निर्णय नहीं लिया जा सकता है. हड़ताल के दौरान सीनियर डॉक्टरों की तैनाती की गयी थी. जहां तक इमरजेंसी में मौत का सवाल है तो ये जांच का विषय है कि किन परिस्थितियों में मरीजों की मृत्यु हुई है. हमलोग इसकी रिपोर्ट मांग रहे हैं. हड़ताल अगर आगे चलती तो और निर्णय लिया जाता.