पटना : बामेती परिसर में आयोजित ‘कृषि व मनरेगा के बीच समन्वय हेतु पूर्वोत्तर राज्यों के क्षेत्रीय कार्यशाला’ के उद्घाटन सत्र को संबोधित करते हुए उपमुख्यमंत्री सुशील कुमार मोदी ने कहा कि मनरेगा मजदूर केंद्रित योजना है. जिसके तहत लघु व सीमांत किसानों की निजी जमीन पर काम कराने का प्रावधान है. इसलिए किसानों की आमदनी को दोगुना करने में मनरेगा का सर्वाधिक लाभ बिहार जैसे राज्य को मिलेगा. क्योंकि, यहां लघु व सीमांत किसान 97 प्रतिशत हैं तथा खेतों का होल्डिंग मात्र 0.64 हेक्टेयर है. बिहार में कृषि क्षेत्र का राज्य सकल घरेलु उत्पाद में योगदान 18 प्रतिशत और कुल कार्यबल का 70 प्रतिशत खेती पर आधारित हैं.
मनरेगा के मजदूरों का इस्तेमाल लघु व सीमांत किसानों की जमीन पर पौधारोपण, सिंचाई के लिए चैनल, मछली पालन के लिए पोखर-तालाब, पशुपालन, अनाज के भंडारण के लिए गोदाम तथा ग्रामीण हाट आदि का निर्माण व नील गाय तथा अन्य जंगली जानवरों से किसानों की फसल की सुरक्षा के लिए खेतों की घेराबंदी आदि में किया जा सकता है.
भारत सरकार ने मनरेगा के तहत 2017-18 में 48 हजार करोड़ का प्रावधान किया था, जिसे 2018-19 में बढ़ा कर 55 हजार करोड़ कर दिया गया है. बिहार सरकार ने भी 2018-19 के बजट में 2,181 करोड़ का प्रावधान किया है. प्रधानमंत्री 2022 तक किसानों की आमदनी को दोगुना करना चाहते हैं. मनरेगा के मजदूरों का लाभ उठा कर उन्हें रोजगार की गारंटी देते हुए किसानों की आमदनी को कैसे बढ़ाया जाय, इस पर विचार करने की जरूरत है.
बिहार में मार्च, 2019 के बाद किसान डीजल की जगह बिजली से खेती करेंगे। इससे उन्हें काफी बचत होगी. प्रधानमंत्री की नीम कोटेड यूरिया की पहल से किसानों की आमदनी बढ़ी है. 10 दिवसीय वन महोत्सव के दौरान मनरेगा के तहत राज्य में 50 लाख पौधारोपण किया गया है. निजी जमीन पर लगाये गये पौधों की रखवाली की जिम्मेदारी भी किसानों की है. इसके लिए उन्हें मनरेगा के तहत मजदूरी देने का प्रावधान है. मनरेगा की पूर्व से चल रही अनेक ऐसी योजनाएं हैं जिनका लाभ लघु व सीमांत किसानों को मिल सकता है. इसके लिए व्यापक प्रचार-प्रसार की जरूरत है.