पटना : अब भी नहीं ले रहे सीईटी-बीएड चयनित छात्रों का नामांकन

राजभवन का आदेश भी नहीं मान रहे कॉलेज पटना : राज्यस्तरीय बीएड नामांकन प्रक्रिया के तहत जिन छात्रों का चयन अल्पसंख्यक कॉलेजों के लिए हुआ था, वे आज भी भटक रहे हैं. विश्वविद्यालय की कौन पूछे, अल्पसंख्यक कॉलेज राजभवन के आदेश को भी मान रहे हैं. इनके खिलाफ कार्रवाई के लिए कार्डिनेटिंग यूनिवर्सिटी एनओयू ने […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | August 27, 2018 9:09 AM
राजभवन का आदेश भी नहीं मान रहे कॉलेज
पटना : राज्यस्तरीय बीएड नामांकन प्रक्रिया के तहत जिन छात्रों का चयन अल्पसंख्यक कॉलेजों के लिए हुआ था, वे आज भी भटक रहे हैं. विश्वविद्यालय की कौन पूछे, अल्पसंख्यक कॉलेज राजभवन के आदेश को भी मान रहे हैं. इनके खिलाफ कार्रवाई के लिए कार्डिनेटिंग यूनिवर्सिटी एनओयू ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया है. विश्वविद्यालय व छात्र सबकी निगाह अब कोर्ट के फैसले पर ही है, जो निर्णय कोर्ट की ओर से दिया जायेगा, वहीं मान्य होगा.
दोनों ही सूरत में छात्रों का ही नुकसान : यहां गौर करनेवाली बात यह है कि राज्यपाल, विश्वविद्यालय व कॉलेज की आपसी खींचतान में सुप्रीम कोर्ट का निर्णय चाहे जो भी लेकिन हर हाल में नुकसान छात्र-छात्राओं का ही होनेवाला है.
कारण यह है कि अल्पसंख्यक कॉलेजों ने न सिर्फ सीईटी-बीएड 2018 के चयनित छात्रों का नामांकन लेने से मना कर दिया, बल्कि उतनी सीटों पर अपने मनमुताबिक छात्रों का चयन भी कर लिया है. अब समस्या यह है कि ये छात्र कॉलेज की ओर से चुने गये हैं. वहीं, जिनको कॉर्डिनेटिंग यूनिवर्सिटी एनओयू चुनी थी, वे सड़कों पर भटक रहे हैं.
अगर कोर्ट का निर्णय नामांकन के लिए भटक रहे छात्रों के पक्ष में आता है, तब फिर सवाल यह उठता है कि फिर उन छात्रों का क्या होगा जिनका अल्पसंख्यक कॉलेजों ने अपनी मर्जी से नामांकन ले लिया है. अगर फैसला इनके विपरीत आता है, तो फिर वे भी सड़कों पर आंदोलन व हंगामा करेंगे. अगर अल्पसंख्यक कॉलेजों के पक्ष में निर्णय हुआ, तो ये छात्र जो सड़कों पर भटक रहे हैं, वे कहीं के नहीं रहेंगे और मेधा सूची में आने के बाद भी उनका नामांकन नहीं हो पायेगा.
कॉलेज कर रहे अनुशासनहीनता
हालांकि एनओयू यह भी कह रही है कि उनके लिए भी कोई रास्ता निकाला जायेगा और उन्हें अल्पसंख्यक कॉलेज की जगह उन बीएड कॉलेजों में सीट दिया जा सकता है, जहां सीटें खाली रह गयी हैं. हालांकि, यह भी एनओयू सीधे तौर पर नहीं कर सकती है. इसके लिए भी उसे सुप्रीम कोर्ट से ही अनुमति लेनी होगी. लेकिन, यहां एक सवाल बार-बार उठ रहा है कि आखिर यह स्थिति उत्पन्न ही क्यों होने दी गयी.
जो कुछ भी था वह पहले ही तय क्यों नहीं किया गया. दूसरा कि उन अल्पसंख्यक कॉलेजों को अगर नामांकन लेने का अधिकार ही नहीं था और राजभवन की ओर से भी लिखित रोक लगायी गयी थी, तो उक्त कॉलेजों ने अनुशासनहीनता कैसे कर दी. डिग्री तो विश्वविद्यालयों को जारी करनी है और विवि पूरी तरह से राजभवन के अधीन है. कॉलेज अगर राजभवन का आदेश नहीं मान रहे, तो यह तो समझ से परे हैं. यह अनुशासनहीनता आखिर क्यों की जा रही है. अनुशासनहीनता के लिए सीधे तौर पर कोई एक्शन क्यों नहीं हुआ.
कोर्ट का आदेश मान्य
कॉर्डिनेटिंग यूनिवर्सिटी ने इसके खिलाफ सुप्रीम कोर्ट के समक्ष मामले को रखा है. कोर्ट का इस मामले में जो आदेश देगा, वहीं मान्य होगा.
एसपी सिन्हा, नोडल पदाधिकारी

Next Article

Exit mobile version