पॉलीथिन से घुट रहा जल, जमीन व हवा का दम

हर जगह है पॉलीथिन का प्रदूषण अनिकेत त्रिवेदी पटना : प्लास्टिक उत्पाद और पॉलीथिन पर्यावरण को भारी नुकसान पहुंचा रहा है. मानव और जमीन पर इसके तरह-तरह के दुष्प्रभाव सामने आ रहे हैं. नदी और तालाबों का पानी, भू-जल से लेकर वायु तक प्रभावित हो रही है. पॉलीथिन का जहर हर जगह फैल रहा है. […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | August 28, 2018 1:37 AM
हर जगह है पॉलीथिन का प्रदूषण
अनिकेत त्रिवेदी
पटना : प्लास्टिक उत्पाद और पॉलीथिन पर्यावरण को भारी नुकसान पहुंचा रहा है. मानव और जमीन पर इसके तरह-तरह के दुष्प्रभाव सामने आ रहे हैं. नदी और तालाबों का पानी, भू-जल से लेकर वायु तक प्रभावित हो रही है. पॉलीथिन का जहर हर जगह फैल रहा है. वहीं पॉलीथिन के उपयोग के मामले में राज्य और राजधानी की स्थिति बेहद खराब है.
राज्य के शहरों से निकलने वाले कचरे में इसकी मात्रा बढ़ती जा रही है. इसके उलट राज्य के किसी भी शहर में प्लास्टिक के निस्तारण व दोबारा उपयोग की कोई कार्ययोजना जमीन पर नहीं उतरी है. ताजा आंकड़ा है कि राज्य में प्रतिदिन 2000 मीट्रिक टन से अधिक प्लास्टिक का कचरा निकल रहा है. इसमें राजधानी का प्रतिशत आधे से अधिक का है. पॉलीथिन का कचरा सबसे अधिक कचरा घरेलू उपयोग वाले प्लास्टिक बैग है.
रिचार्ज में आ रही परेशानी : भूजल को रिचार्ज करने में भी बड़ी परेशानी आ रही है. केंद्रीय भूगर्भ जल बोर्ड के वैज्ञानिक बताते हैं कि भूगर्भ जल बारिश के जल से रिचार्ज होता है. बीते पांच वर्षों में प्लास्टिक जमीन में काफी नीचे तक पाया जाने लगा है. पॉलीथिन पानी के रिसाव को ही रोक दे रहा है. इससे भूजल के रिचार्ज होने में समस्या खड़ी हो रही है. वैज्ञानिक बताते हैं कि अभी भी कुछ नहीं बिगड़ा है. अगर स्थिति ऐसी रही, तो आगे और विकट समस्या खड़ी हो सकती है.
प्रभावित हो रहा है नदियों का जल: पटना जिले में गंगा, सोन व पुनपुन नदी इससे अछूती नहीं है. शहर के सीवरेज व ड्रेनेज का पानी सीधे इन नदियों में गिराया जा रहा है. इसका परिणाम है कि नाले से होते हुए पॉलीथिन की भारी मात्रा इन नदियों में जा रही है. वैज्ञानिक बताते हैं कि पॉलीथिन पेट्रोकेमिकल उत्पाद हैं, जिनमें हानिकारक रसायनों का इस्तेमाल होता है. इसके घातक प्रभाव के कारण जलीय जीवों की संख्या लगातार घट रही है, जो पर्यावरण संतुलन के लिए ठीक नहीं है.
नगर निगम का अभियान असफल
पॉलीथिन को पर रोक लगाने को लेकर नगर निगम की ओर से अभियान चलाया जाता रहा है. 50 माइक्रोन से कम मोटाई के उत्पादन व बिक्री पर पूर्ण रूप से प्रतिबंध लगाया गया है. निगम के अफसर जब भी कार्रवाई करते हैं तो फुटपाथी दुकानदार से लेकर अन्य छोटे दुकानों पर छापा मार प्लास्टिक जब्त करने साथ जुर्माना लगाया जाता है, लेकिन आज तक पूरे शहर में एक साथ कोई व्यापक अभियान नहीं चला. सड़क दुकानदार से लेकर बड़े स्टॉकिस्टों के पास ऐसे प्लास्टिक का भंडार पड़ा है.
ऐसे प्रदूषित हो रहा है भूगर्भ जल
एनआईटी के प्रोफेसर विवेकानंद सिंह बताते हैं कि शहर में अधिकांश बड़े नाले खुले हुए हैं. शहर में कई जगहों पर पॉलीथिन युक्त कचरे का पहाड़ लगा हुआ है. बारिश के बाद पानी इससे रिस कर नाले में जाता है. प्रोफेसर बताते हैं कि इन स्रोतों से निकलने वाला पानी जमीन के फर्स्ट एक्यूफर (जलाेढ़, भूगर्भ जल का पहला लेयर) को प्रदूषित कर रहा है. इससे पानी में धातुओं (लेड, मैग्नीशियम, कैल्शियम व अन्य धातु) की मात्रा बढ़ जाती है. पानी में दुर्गंध भी होने लगता है. उन्होंने बताया कि अगर ऐसी स्थिति रही, तो दूसरा एक्यूफर भी इससे प्रभावित होगा. दूसरे एक्यूफर से ही बोरिंग कर पानी उपयोग के लिए लिया जाता है.
भू-जल पर भी पड़ रहा है असर
पॉलीथिन का दुष्प्रभाव भूजल पर भी पड़ रहा है. नदियां व अन्य जलस्रोत भी इसके प्रभाव से अछूते नहीं हैं. भले ही भूमिगत जल स्रोतों को सबसे शुद्ध माना जाता हो, लेकिन प्लास्टिक प्रदूषण के कारण अब भूमिगत जल में कार्बनिक रसायनों, भारी घातुओं व अन्य प्रदूषकों की उपस्थिति मिलने लगी है. प्रदूषण ने वहां भी अपना घर बना लिया है. जानकारी के अनुसार पटना जिले के पटना सिटी के कुछ इलाके, दीघा, दानापुर, नकटा दियारा से लेकर बिहटा तक ऐसे क्षेत्र हैं, जहां भूजल प्रदूषित है.
प्लास्टिक से होने वाले भारी नुकसान
पॉलीथिन अत्यधिक ज्वलनशील है, इसलिए इससे आग भड़कने की संभावना ज्यादा रहती है.पॉलीथिन में लिपटे खाद्यान्नों की वजह से मवेशी इसे खा लेते हैं. इससे उनका दम घुट जाता है और वे मर जाते हैं.पॉलीथिन के उपयोग से नदी नाले के साथ दूसरे जल स्रोतों का बहाव अवरुद्ध हो रहा है. इससे जलीय जीव-जंतु नष्ट होने के कगार पर पहुंच गये हैं. जमीन की उर्वरा शक्ति नष्ट हो रही है तथा भूगर्भीय जल स्रोत दूषित हो रहे हैं.
पॉलीथिन के नियमित संपर्क में रहने से खून में थेलेट्स की मात्रा बढ़ जाती है. इससे गर्भस्थ शिशु का विकास अवरुद्ध तथा प्रजनन अंगों को नुकसान पहुंचता है.
पॉलीथिन उत्पादन में प्रयोग होने वाला बिस्फेनॉल रसायन शरीर में डायबिटीज व लीवर एंजाइम को असामान्य कर देता है.
पॉलीथिन कचरा जलाने से उत्सर्जित कार्बन डाइऑक्साइड, कार्बन मोनोऑक्साइड तथा डायलॉग सीन डाईऑक्सिन गैस सांस, त्वचा आदि बीमारियों का कारण बनते हैं.
रंगीन पॉलीथिन को रिसाइकिल करने से पर्यावरण को खतरा है. रंगीन पॉलीथिन मुख्यतः लेड, ब्लैक कार्बन, क्रोमियम तथा कॉपर आदि के महीन कणों से बनता है जो मनुष्य के साथ सभी जीव जंतुओं के स्वास्थ्य के लिए बेहद घातक और खतरनाक है.
पॉलीथिन कचरे के जमीन में दबने से वर्षा जल का भूमिगत संचरण नहीं हो पाता.

Next Article

Exit mobile version