पटना : अकेले दम पर राज करने वाली कांग्रेस आज है बैसाखी के सहारे, अल्पसंख्यक, ओबीसी और महादलित हुए दूर
कृष्ण कुमार पटना : बिहार में कभी अकेले दम पर चुनावों में बहुमत हासिल कर राज करने वाली कांग्रेस को आज बैसाखी के सहारे की जरूरत होने लगी है. हालत यह है कि किसी मजबूत पार्टी से गठबंधन किये बिना बिहार विधानसभा की किसी भी सीट पर जीत को लेकर संशय की स्थिति बनी रहती […]
कृष्ण कुमार
पटना : बिहार में कभी अकेले दम पर चुनावों में बहुमत हासिल कर राज करने वाली कांग्रेस को आज बैसाखी के सहारे की जरूरत होने लगी है. हालत यह है कि किसी मजबूत पार्टी से गठबंधन किये बिना बिहार विधानसभा की किसी भी सीट पर जीत को लेकर संशय की स्थिति बनी रहती है.
खासकर वर्ष 1990 में हुए विधानसभा चुनावों के बाद तो यह स्पष्ट हो गया है. राजनीति के जानकारों ने इसके लिए मूल रूप से कांग्रेस की नीतियां और इसे लागू करने वाले नेताओं को ही दोषी बताया है. उनके अनुसार कांग्रेस के नेता और कार्यकर्ता कागजी कामों से ही अपने को बेहतर बताने की कोशिश करते हैं. बहुत कम मौकों में जनता के बीच जाकर जन सरोकार के मुद्दों पर काम करते हैं. ऐसे में आमलोगों में पार्टी की पकड़ कमजोर होती गयी और परिणाम सामने दिख रहा है.
अविभाजित बिहार में कांग्रेस का प्रदर्शन
वर्ष सीट
1951 239
1957 250
1962 185
वर्ष सीट
1967 128
1969 118
1972 167
वर्ष सीट
1977 57
1980 169
1985 196
वर्ष सीट
1990 71
1995 29
2000 23
क्या कहते हैं कांग्रेस के पूर्व नेता
प्रदेश कांग्रेस के एक पूर्व नेता ने कहा कि कांग्रेस संगठन में लोकतांत्रिक व्यवस्था नहीं है. उन्होंने अपने कार्यकाल में बड़ी संख्या में लोगों को सदस्य बनाया, लेकिन कांग्रेस में उन्हें डेलीगेट नहीं बनाया गया. उनकी जगह बाहरी लोगों को डेलीगेट बनाया गया. उन्होंने कांग्रेस में महासचिव के कल्चर पर विरोध जताया और कहा कि दरअसल महासचिव ही राष्ट्रीय अध्यक्ष को हर गतिविधियों की जानकारी देते हैं. उन्हीं जानकारियों के आधार पर कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष कोई भी निर्णय लेते हैं.
ऊंची जाति और पढ़े-लिखे लोग भी हुए दूर
विश्लेषकों की मानें तो 1990 में मंडल कमीशन की रिपोर्ट लागू होने और आरक्षण की राजनीति में राजद के साथ महागठबंधन में कांग्रेस के शामिल होने पर ऊंची जाति के लोगों ने भी इससे दूरी बना ली. ऐसे में ऊंची जाति बहुल आबादी वाले इलाकों में भी पार्टी के जनाधार को धक्का लगा. वे भी पार्टी से दूर होते चले गये. वहीं, शहरी इलाकों की भी हालत खराब है.
अल्पसंख्यक, ओबीसी और महादलित हुए दूर
कांग्रेस के लिए अल्पसंख्यक वोट बैंक का काम करते थे, लेकिन पार्टी ने प्रदेश स्तर पर किसी अल्पसंख्यक, ओबीसी या महादलित नेता को भी तैयार नहीं किया. इस कारण कांग्रेस का जनाधार खिसक कर अन्य दलों के पास चला गया.