पटना : रालोसपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष सह केंद्रीय मानव संसाधन विकास राज्यमंत्री उपेंद्र कुशवाहा अपनी ‘खीर पॉलिटिक्स’ को अब गांव-गांव तक ले जायेंगे. रालोसपा अध्यक्ष ने शुक्रवार कोकहा कि एनडीए में ही कुछ लोग ऐसे हैं, जो नरेंद्र मोदी को पीएम के रूप में देखना नहीं चाहते हैं. वही लोग सीट बंटवारे को लेकर भ्रम फैलाते रहते हैं. सीट बंटवारे पर अभी तक न तो कोई चर्चा हुई है और न ही विवाद है.
In NDA, there are some people who don't want Modi ji to become the prime minister again. Such people intentionally spread rumors to trigger conflicts within NDA: Union Minister & RLSP leader Upendra Kushwaha on NDA’s seat-sharing arrangement pic.twitter.com/oqtHe4z8Eg
— ANI (@ANI) August 31, 2018
‘पैगाम-ए-खीर’ में सभी वर्ग के लोग होंगे शामिल
उन्होंने कहा कि समाज के हर वर्ग के सहयोग से बननेवाली इस ‘खीर’ का संदेश गांव-गांव तक पहुंचाने के लिए हर जिले में ‘पैगाम-ए-खीर’ कार्यक्रम का आयोजन किया जायेगा. कृष्ण वंशियों के दूध और कुश वंशियों के चावल से बनी इस ‘खीर’ को खिलाने के लिए मुसलमान भाइयों का विशेष दस्तारखान सजेगा, जहां सभी वर्ग के लोग बैठ कर इसका स्वाद चखेंगे. खीर को मीठा करने के लिए ब्राह्मण या बह्मर्षि भाइयों की चीनी और पवित्र करने के लिए दलित भाई के हाथ से तुलसी का पत्ता भी डलवाया जायेगा.
25 को पटना से होगी शुरुआत
उपेंद्र कुशवाहा ने कहा कि ‘पैगाम-ए-खीर’ कार्यक्रम का उद्देश्य समाज में बराबरी और भाईचारा का संदेश देना है. इसकी शुरुआत 25 सितंबर को पटना से होगी. जिस तरह अंधेरे में हाथी को छू कर कोई सूप जैसा, तो कोई खंभे जैसा बताता है, ठीक वैसे ही लोग इसका अलग-अलग अर्थ निकाल रहे हैं. लेकिन, यह पूरी तरह से सामाजिक कार्यक्रम है.
पीएम मोदी को पसंद नहीं करनेवाले फैला रहे भ्रम
रालोसपा अध्यक्ष ने कहा कि एनडीए में ही कुछ लोग ऐसे हैं, जो नरेंद्र मोदी को पीएम के रूप में देखना नहीं चाहते हैं. वही लोग सीट बंटवारे को लेकर भ्रम फैलाते रहते हैं. सीट बंटवारे पर अभी तक न तो कोई चर्चा हुई है और न ही विवाद है. महागठबंधन में पांच सीट के साथ स्वागत के सवाल पर उन्होंने कहा कि हम खीर बनानेवाले लोग हैं, ख्याली पुलाव नहीं पकाते. उन्होंने कहा कि नीतीश जी के आने के बाद एनडीए ताकतवर हुआ है. गरीब सवर्णों के आरक्षण के सवाल पर कुशवाहा ने कहा कि वंचित जिस रूप में हों, उनको हक मिलना चाहिए. हालांकि, यह कैसे हो, यह विमर्श का विषय है.