23.1 C
Ranchi

BREAKING NEWS

Advertisement

पुलिस पर हमले कम होंगे यदि वह अपना नैतिक बल बढ़ाये

सुरेंद्र किशोर राजनीतिक विश्लेषक मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने ठीक ही कहा है कि असामाजिक तत्वों द्वारा पुलिस पर हमला असहनीय है और हमलावरों के खिलाफ सख्त व त्वरित कार्रवाई होनी चाहिए. जब मुख्यमंत्री ने ऐसी चिंता जतायी है, तब कार्रवाई तो होगी ही. पर ऐसी कार्रवाई में स्थायित्व आये, इसके बारे में भी अलग से […]

सुरेंद्र किशोर
राजनीतिक विश्लेषक
मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने ठीक ही कहा है कि असामाजिक तत्वों द्वारा पुलिस पर हमला असहनीय है और हमलावरों के खिलाफ सख्त व त्वरित कार्रवाई होनी चाहिए. जब मुख्यमंत्री ने ऐसी चिंता जतायी है, तब कार्रवाई तो होगी ही. पर ऐसी कार्रवाई में स्थायित्व आये, इसके बारे में भी अलग से सोच-विचार होना चाहिए. दरअसल, पुलिस पर माफिया तत्व कभी-कभी दिन-दहाड़े भी हमला कर देते हैं. कई बार तो वे पुलिस बल को खदेड़ भी देते हैं. पर, जब वे ऐसा करते हैं तो अनेक शांतिप्रिय लोगों को यह लगता है कि माफिया ‘सत्ता के तख्त’ पर हमला कर रहे हैं.
क्योंकि गांव-गांव में तैनात चौकीदार से लेकर थानेदार तक को पटना सचिवालय से ताकत मिलती है. वे सरकार के ही तो प्रतिनिधि हैं. जब पुलिस का ही यह हाल हो जाता है तो जो निरीह जनता पुलिस को अपना रक्षक मानती है, उसका क्या हाल होता होगा! इस बात को वे लोग समझें जिन पर कानून-व्यवस्था कायम रखने का भार है. अन्यथा सत्ता का इकबाल समाप्त हो जायेगा. इसका असर दूसरे क्षेत्रों पर भी पड़ेगा. कई साल पहले की बात है.
आशियाना-दीघा रोड पर पुलिस अतिक्रमण हटाने गयी थी. अतिक्रमणकारियों ने पुलिस पार्टी पर हमला कर दिया. बाद में एक अतिक्रमणकारी से मैंने पूछा कि आपने ऐसा क्यों किया? उसने कहा कि इस पुलिस का चरित्र आप नहीं जानते. एक दिन तो वह रिश्वत वसूलने आती है और वही पुलिस दूसरे दिन अतिक्रमण हटाने आ धमकती है. हमारी धारणा बनती है कि रिश्वत की राशि बढ़ाने के लिए ही वह अतिक्रमण हटाने का नाटक करती है. इसलिए हमें गुस्सा आ जाता है. आशियाना-दीघा रोड के उस अतिक्रमणकारी की बात बालू माफिया, शराब माफिया तथा इस तरह के कुछ अन्य कानून तोड़कों पर भी लागू होती है. इस स्थिति को कैसे बदला जाये?
इसे बदलना तो कठिन है,पर इसकी गंभीर कोशिश तो होनी ही चाहिए. अक्सर अधूरी तैयारी के साथ ही पुलिस व प्रशासन के लोग माफियाओं पर धावा बोल देते हैं. इस स्थिति को बदलना पड़ेगा. क्योंकि जब-जब ऐसे माफियाओं द्वारा हमारी पुलिस खदेड़ दी जाती है तब-तब शांतिप्रिय लोगों का दिल बैठ जाता है.
माल्या और संसद की सदस्यता : केंद्रीय वित्त मंत्री अरुण जेटली ने कहा है कि ‘विजय माल्या ने राज्यसभा सदस्य के रूप में अपने विशेषाधिकार का गलत इस्तेमाल करके संसद भवन के गलियारे में मुझे रोक कर बात करने की कोशिश की थी.’
जेटली साहब को भी मालूम है कि दरअसल ये अरबपति लोग सांसद बनते ही हैं मुख्यतः इसी काम के लिए. संसद की सदस्यता का इस्तेमाल करके वे कभी अपने व्यापार को बढ़ाते हैं तो कभी अपने व्यापार पर आये संकट को दूर करने की कोशिश करते हैं. ऐसे अरबपतियों को सांसद बनाने में अधिकतर दल उन्हें समय-समय पर मदद करते हैं. जेटली जैसे नेताओं को यह बात पहले ही सोचनी चाहिए थी. इस मामले में माल्या अकेले नहीं हैं.
हां, अपने काम में अनोखा जरूर हैं. माल्या प्रकरण के बाद राजनीतिक दल सोच-विचार करे. अधिकतर दलों को इस प्रश्न पर विचार करना होगा कि व्यापारिक हितों के लिए पैसे के बल पर सांसद बनने वालों को राज्यसभा तक पहुंचने से कैसे रोका जाये? माल्या ने मनमोहन शासनकाल में ऐसा कुछ कर दिया था जैसा पहले नहीं हुआ. माल्या नागरिक उड्डयन मंत्रालय की संसदीय सलाहकार समिति के सदस्य बन गये थे. नियम है कि जिस सदस्य का जिस मंत्रालय से व्यापारिक हित जुड़ा हो, वह उस मंत्रालय की समिति का सदस्य नहीं बनेगा. उस समिति के अन्य सदस्यों में कुलदीप नैयर भी थे.
दिवंगत नैयर के अनुसार माल्या की पहल पर संसदीय समिति ने अभूतपूर्व प्रस्ताव पारित किया. समिति ने सरकार से सिफारिश की थी कि आंतरिक उड़ानों में भी विमानों में शराब परोसी जानी चाहिए. याद रहे कि माल्या का विमान और शराब दोनों मामलों में व्यापारिक हित निहित था. यह और बात है कि मनमोहन सरकार ने उस सिफारिश को नहीं माना.
बड़े नेताओं के स्वास्थ्य : जिन बड़े नेताओं की ओर लाखों-करोड़ों लोग उम्मीद भरी नजरों से देखते हैं, उन्हें खुद कोशिश करनी चाहिए कि वे दीर्घायु हों. खान-पान और आहार-विहार में संयम बरतने से दीर्घायु हुआ जा सकता है.
नेताओं के साथ दिक्कत यह होती है कि उनसे मिलने वाले अनेक समर्थक व सहकर्मी नेतागण अपने सर्वोच्च नेता के दैनिक रूटीन को भंग करने की कोशिश करते रहते हैं. कुछ बड़े नेता तो खुद ही भंग करते हैं. यदि प्रशंसक, समर्थक और सहकर्मी चाहते हैं कि हमारे नेता दीर्घायु हों तो वे उनके खाने-पीने और सोने के समय में उन्हें डिस्टर्व करने की कोशिश न करें. आजादी की लड़ाई में गांधी जी के साथ काम कर चुके अनेक नेता दीर्घायु हुए.
क्योंकि खुद गांधी की प्रेरणा से वे भरसक संयमित जीवन जीते थे. पर आजादी के बाद खासकर ‘अर्थ युग’ की शुरुआत के साथ स्थिति बदलने लगी. आम लोगों के बीच के भी अनेक धनी-मानी लोगों के आहार-विहार में बदलाव आया. शारीरिक श्रम कम होने लगे. नेताओं के लिए भी आर्थिक सुविधाएं बढ़ने लगीं. उसका असर भी खान पान पर पड़ा. देश के ऐसे कई नेताओं को हमने असमय दिवंगत होते देखा जिनकी अधिक जरूरत देश या फिर उनके समाज को थी. एक बड़े कम्युनिस्ट नेता से मिलने की मेरी बड़ी इच्छा रहती थी. पर जब जाओ तो वे सिगरेट पीते रहते थे. जब मैं अपनी नाक पर रूमाल रख लेता था तो वे बुझा देते थे. पर पांच मिनट के बाद फिर सुलगा लेते थे.
यानी चेन स्मोकर थे. वे असमय गुजर गये. यदि वे जीवित रहते तो कम्युनिस्ट आंदोलन को ढीला-ढाला नहीं होने देते. वे इस देश की कुछ बुनियादी समस्याओं को भी बेहतर ढंग से पहचानते थे. वैसी समझ कम ही कम्युनिस्टों में होती है.
भूली-बिसरी याद : अपनी जिंदगी के बारे में बताते हुए फिल्मों के हास्य अभिनेता महमूद ने हनीफ झवेरी से कहा था कि ‘अगर सिनेमा की दुनिया को स्वार्थों की दुनिया कहें तो गलत नहीं होगा. लोग आपके साथ तभी तक हैं, जब तक आप स्टार के रूप में चमक रहे हों. जैसे ही आपकी चमक खत्म हुई, आप अंधेरे में धकेल दिये जाते हैं.’ महमूद जिस क्षेत्र में थे, वहां के बारे में वे कह रहे थे. अन्य क्षेत्रों का भी कमोवेश वही हाल है. खैर, महमूद के मुंह से यह सब सुनना दिलचस्प है.
महमूद ने यह भी कहा कि ‘अगर इस उद्योग में कहीं मानवीयता होती तो किसी जमाने के मशहूर कैमरामैन राजेंद्र मलोनी और शकीला बानू भोपाली जैसे लोग दर्दभरी और दुखी मौत नहीं मरते. कई लोगों ने मेरा कैरियर बर्बाद कर देने की कोशिश की. स्टार कुछ और तरह से जीते हैं, पर मैंने वैसा कभी नहीं किया. कई स्टार्स ने मेरे साथ काम करने से इन्कार कर दिया था, पर इससे मुझे कोई फर्क नहीं पड़ा. मैंने अपना पूरा ध्यान अपने काम में लगाया. धर्मों की चर्चा करते हुए महमूद ने कहा था कि मैं सभी धर्मों का आदर करता हूं सिर्फ मेरे धर्म इस्लाम का ही नहीं. मैंने अपने मन में संकल्प लिया था कि मेरी फिल्म ‘कुंवारा बाप’ हिट हो गयी तो मैं वैष्णो देवी जाऊंगा और मैं गया भी.
और अंत में : खबर है कि पटना रेलवे स्टेशन के पास के न्यू मार्केट की भीतरी सड़क की चौड़ाई अब 40 फुट हो गयी है. अतिक्रमण हटाये जाने के बाद ऐसा संभव हुआ है. इसी सड़क पर मैंने 1972 में पूर्व मुख्यमंत्री भोला पासवान शास्त्री को रिक्शा पर चलते हुए देखा था. उस समय अतिक्रमण नहीं था. पर, बाद के वर्षों में पुलिस व नगर निगम के धन लोलुप लोगों ने अपनी नाजायज आय के लिए अतिक्रमण करवाना शुरू कर दिया.

Prabhat Khabar App :

देश, एजुकेशन, मनोरंजन, बिजनेस अपडेट, धर्म, क्रिकेट, राशिफल की ताजा खबरें पढ़ें यहां. रोजाना की ब्रेकिंग हिंदी न्यूज और लाइव न्यूज कवरेज के लिए डाउनलोड करिए

Advertisement

अन्य खबरें

ऐप पर पढें