Jet Airways की बड़ी लापरवाही: विशेषज्ञों ने कहा- अधिक ऊंचाई पर होता विमान तो चटक सकता था केबिन
पटना : जेट एयरवेज की मुंबई जयपुर उड़ान 9W697 में एयरप्रेशर कम होने की घटना को बेहद खतरनाक बताते हुए कई विमानन विशेषज्ञों ने कहा कि यदि अधिक ऊंचाई पर विमान होता तो केबिन के अंदर का एयरप्रेशर न केवल और अधिक घट जाता बल्कि बाहर और भीतर के एयरप्रेशर में अत्यधिक अंतर होने के […]
पटना : जेट एयरवेज की मुंबई जयपुर उड़ान 9W697 में एयरप्रेशर कम होने की घटना को बेहद खतरनाक बताते हुए कई विमानन विशेषज्ञों ने कहा कि यदि अधिक ऊंचाई पर विमान होता तो केबिन के अंदर का एयरप्रेशर न केवल और अधिक घट जाता बल्कि बाहर और भीतर के एयरप्रेशर में अत्यधिक अंतर होने के कारण केबिन चटक भी सकता था. वैसी स्थिति में नुकसान और भी अधिक होता और सभी हवाई यात्रियों की जान जा सकती थी.
10-12 हजार फुट से अधिक ऊंचाई पर होता इस्तेमाल : विमान ऊंचाई पर जाते ही, हवा हल्की होने से केबिन के भीतर का स्वभाविक एयरप्रेशर कम होने लगता है. इसके कारण विमान में बैठे लोगों को विमान के पांच-छह हजार फुट पर पहुंचने के साथ ही घुटन व महसूस होने लगती है, सहनशक्ति के भीतर होने के कारण लोग उसे आसानी से सह लेते हैं. 10-12 हजार फुट की ऊंचाई तक पर एयर प्रेशर का अंतर सहन शक्ति से अधिक हो जाता है. तब एयर प्रेशराईजेशन डिवाइस का प्रयोग होता है.
कंट्रोल के लिए होते हैं डिवाइस
विमान के भीतर के एयरप्रेशर को निर्धारित सीमा से ऊपर बनाये रखने के लिए उसके भीतर एक प्रेशराईजेशन डिवाइस लगा होता है. यह डिवाईस बाहर की हवा को जरूरत के अनुसार विमान के भीतर पंप करती है, जिससे भीतर की हवा विरल नहीें हो पाती है. विमान में दो प्रेशराईजेशन डिवाइस लगे होते हैं. एक केबिन में और दूसरा कॉकपिट में. इनका काम क्रमश: केबिन और कॉकपिट के एयरप्रेशर को कंट्रोल करना होता है. विमान के 10 से 12 हजार फीट की ऊंचाई पर पहुंचते ही दोनों प्रेशराईजेशन डिवाईस को ऑन कर दिया जाता है.
पायलट के सामने होता है स्वीच
दोनों प्रेशराईजेशन डिवाइस को ऑन करने के लिए स्वीच कॉकपिट में पायलट के सामने ही लगा होता है. अब तक मिली जानकारी से ज्ञात हुआ है कि क्रू ने कॉकपिट का प्रेशराईजेशन स्वीच ऑन कर दिया पर केबिन का स्वीच ऑन करना भूल गयी. कॉकपिट का एयरप्रेशर कंट्रोल होने की वजह से उन्हें खुद कोई परेशानी नहीं महसूस हो रहा था, भूल का अहसास भी उन्हें तब तक नहीं हुआ, जब तक 30 से अधिक लोगों की तबीयत बिगड़ गयी और नाक-कान से खून नहीं निकलने लगेगा.
लो प्रेशर से नहीं मिली राहत
ऑक्सीजन की कमी से होने वाली परेशानी से हवाई यात्रियों को बचाने के लिए केबिन और कॉकपिट में हर सीट के ऊपरी पैनल में ऑक्सीजन मास्क लगा होता है, जो विमान का प्रेशर कम होने पर अपने आप निकल जाता है. मुंबई जयपुर उड़ान में ऑक्सीजन मास्क निकला पर राहत नहीं मिली.
बैटरी के पावर से चल सकती है डिवाइस
प्रेशराईजेशन डिवाइस इंजन की ताकत से काम करती है, लेकिन इसकी उपयोगिता को देखते हुए इसके लिए विमान में एक ऑक्जीलियरी पावर यूनिट (एपीयू) भी लगा होता है, जो इंजन के सीज कर जाने की स्थिति में इसे पावर देता है. विमान में बैटरी की भी व्यवस्था होती है.
दिल के मरीजों के लिए बेहद खतरनाक
शरीर के अंदर सभी अंगों को रक्त पहुंचाने के लिए हार्ट से एक दबाव बनता है जो सभी अंगों तक खून पहुंचता है. इससे सभी अंग विशेष काम करता है. सामान्य व्यक्ति में 120/ 80 मिली मीटर एचजी ब्लड प्रेशर रहता है. इसी प्रेशर से सभी प्रेशर से रक्त पहुंचता है. इससे सभी अंग सुचारु रूप से काम है. यह प्रेशर वायुमंडलीय दबाव के अनुकूल काम करता है. लेकिन 30 हजार वर्ग फूट पर जो विमान रहता है.
वहां पर वायुमंडल का दबाव बहुत कम रहता है. उस दबाव को मेंटेनेंस करने के लिए एक विमान के अंदर प्रेशर कंट्रोल डिवाइस होता है. जिसको ऑन करना जरूरी होता. लेकिन विमान में प्रेशर को ऑन करना कर्मचारी भूल गये थे. इससे एकाएक हवा का दबाव कम हो गया. नतीजा शरीर के अंदर जहां कमजोर पतली रक्त नलिकाएं हैं वह फट जाने के चलते यात्रियों का खून निकलने लगा.