मसौढ़ी : पितृपक्ष मेला शुरू, पिंडदान व तर्पण के लिए पहुंचे श्रद्धालु

मसौढ़ी : पुनपुन अंतरराष्ट्रीय पितृपक्ष मेले का अपना ऐतिहासिक व धार्मिक महत्व रहा है. अभी भी इसके स्वरूप को और विस्तारित करने की आवश्यकता है. 20 वर्ष पहले का पुनपुन व आज के पुनपुन में काफी बदलाव देखने को मिल रहा है और यह संभव हुआ है सूबे के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के पर्यटन के […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | September 24, 2018 8:29 AM
मसौढ़ी : पुनपुन अंतरराष्ट्रीय पितृपक्ष मेले का अपना ऐतिहासिक व धार्मिक महत्व रहा है. अभी भी इसके स्वरूप को और विस्तारित करने की आवश्यकता है.
20 वर्ष पहले का पुनपुन व आज के पुनपुन में काफी बदलाव देखने को मिल रहा है और यह संभव हुआ है सूबे के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के पर्यटन के क्षेत्र में बढ़ावा देने की सोच की वजह से. उक्त बातें पर्यटन मंत्री प्रमोद कुमार ने रविवार को पुनपुन नदी घाट पर आयोजित बिहार राज्य मेला प्राधिकार अंतर्गत अंतरराष्ट्रीय पितृपक्ष मेले के उद्घाटन पर कहीं.
उन्होंने कहा कि पुनपुन नदी पर संस्पेंशन ब्रिज का निर्माण शीघ्र शुरू होने वाला है. केंद्रीय मंत्री रामकृपाल यादव ने कहा कि पिंडदान से हम अपने पूर्वजों को याद रखते हैं. प्रखंड प्रमुख गुड़िया देवी ने अतिथि गृह निर्माण कराने की मांग की. मौके पर जिलाधिकारी कुमार रवि, सिटी एसपी राजेंद्र कुमार भील, अनुमंडल पदाधिकारी संजय कुमार, सीओ संजय कुमार, बीडीओ निवेदिता व मुखिया सतगुरु प्रसाद समेत अन्य लोग
मौजूद थे. इधर, मेला शुरू होते ही हैदराबाद, कोलकाता, राजस्थान और नेपाल से सैकड़ों श्रद्धालुओं का जत्था पुनपुन नदी घाट पर पहुंचा. इसके बाद पूरे िवधि-िवधान से पंिडतों ने उनसे पूजा-अर्चना कराने के बाद पिंडदान व तर्पण कराया.
पुनपुन में तर्पण के बाद ही गया जाते हैं श्रद्धालु
पुनपुन पिंडदानियों के लिए प्रथम द्वार माना जाता है. अपने पितरों की आत्मा की शांति के लिए पिंडदान करने की परंपरा पौराणिक युगों से चली आ रही है. सर्वप्रथम पुनपुन नदी घाट पर पिंडदान तर्पण करने के बाद ही श्रद्धालु गया स्थित फाल्गु नदी के तट पर पिंडदान करते हैं. पुनपुन नदी में तर्पण करने से आत्मा को शांति प्राप्त होती है.
ऐसा लोगों का मानना है. पुनपुन घाट जहां तर्पण करने का काफी महत्व गरुड़ पुराण में वर्णित है. पुनपुना अर्थात च्वन ऋषि तपस्या करने के उपरांत जल का पात्र बार-बार गिर जाने को लेकर पुनः पुनः शब्द निकलने से पुनपुन का महत्व है.

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