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अभिजीत मुहूर्त के मध्याह्न में होगी कलश की स्थापना, …जानें कैसे होती है देवी के नौ रूपों की आराधना

पटना : आश्विन शुक्ल पक्ष एवं शारदीय नवरात्र बुधवार, 10 अक्टूबर से प्रारंभ हो रहा है. चित्रा नक्षत्र एवं वैधृति योग में नवरात्र आरंभ होने के कारण कलश कर स्थापना अभिजीत मुहूर्त मध्याह्न 11:36 से लेकर 12:24 के बीच में की जायेगी. आदि शक्ति भगवती जगदंबा को समर्पित यह नवरात्रि मां दुर्गा के नौ रूपों […]

पटना : आश्विन शुक्ल पक्ष एवं शारदीय नवरात्र बुधवार, 10 अक्टूबर से प्रारंभ हो रहा है. चित्रा नक्षत्र एवं वैधृति योग में नवरात्र आरंभ होने के कारण कलश कर स्थापना अभिजीत मुहूर्त मध्याह्न 11:36 से लेकर 12:24 के बीच में की जायेगी. आदि शक्ति भगवती जगदंबा को समर्पित यह नवरात्रि मां दुर्गा के नौ रूपों को विभिन्न आयाम एवं मुद्राओं में पूजा किया जायेगा. पूजा पंडालों में स्थापित की जानेवाली दुर्गा प्रतिमाओं के त्रिदिवसीय शक्ति पूजा के क्रम में सप्तमी तिथि में देवी स्थापना की जाती है एवं सप्तमी तिथि से ही उनके आगमन के वाहन का विचार किया जाता है. तदनुसार, देवी का आगमन तुरंग (अश्व) पर होगा, जिसका फल नेष्ठ कारक है. दशमी तिथि से भगवती के गमन के विचार के अनुसार इस वर्ष देवी का प्रस्थान गज अर्थात् हाथी से हो रहा है, जो शुभ फल कारक है.

महाअष्टमी का व्रत 17 अक्टूबर को किया जायेगा. महानवमी 18 अक्टूबर गुरुवार को होगी. नवरात्रि से संबंधित अनुष्ठान की समाप्ति का हवन 18 अक्टूबर गुरुवार को दिन में 2:31 तक किया जायेगा. चूंकि दिन में ही नवमी समाप्त हो जा रही है. इसलिए नवरात्र व्रत का पारण भी दशमी तिथि में दिन में 2:31 बजे के बाद ही कर लिया जायेगा. विजयदशमी का प्रसिद्ध पर्व औदयिक दशमी 19 अक्टूबर शुक्रवार को मनाया जायेगा. दुर्गा प्रतिमाओं का विसर्जन परंपरानुसार होगा.

देवी के नौ रूपों की होती है आराधना

नवरात्रि एक संस्कृत शब्द है, जिसका अर्थ होता है ‘नौ रातें’. इन नौ रातों और दस दिनों के दौरान, शक्ति/देवी के नौ रूपों की पूजा की जाती है. दसवां दिन दशहरा के नाम से प्रसिद्ध है. नवरात्रि के नौ रातों में तीन देवियों- महालक्ष्मी, महासरस्वती या सरस्वती और दुर्गा के नौ स्वरूपों की पूजा होती है, जिन्हें नवदुर्गा कहते हैं. इन नौ रातों और दस दिनों के दौरान, शक्ति/देवी के नौ रूपों की पूजा की जाती है. दुर्गा का मतलब जीवन के दुख कॊ हटानेवाली होता है.

क्या है देवियों के रूपों का अर्थ

शैलपुत्री : पहाड़ों की पुत्री

ब्रह्मचारिणी : तप का आचरण करनेवाली

चंद्रघंटा : चांद की तरह चमकनेवाली

कूष्माण्डा : जिनके पैरों में है पूरा जगत

स्कंदमाता : कार्तिक स्वामी की माता

कात्यायनी : कात्यायन आश्रम में जन्म लेनेवाली

कालरात्रि : काल का नाश करनेवाली

महागौरी : सफेद रंग वाली मां

सिद्धिदात्री : सर्व सिद्धि देनेवाली

शक्ति की उपासना का पर्व है शारदीय नवरात्र

शक्ति की उपासना का पर्व शारदीय नवरात्र है. यह प्रतिपदा से नवमी तक निश्चित है. नौ तिथि, नौ नक्षत्र, नौ शक्तियों की नवधा भक्ति के साथ यह सनातन काल से मनाया जा रहा है. सर्वप्रथम श्रीरामचंद्रजी ने इस शारदीय नवरात्रि पूजा का प्रारंभ समुद्र तट पर किया था. उसके बाद दसवें दिन लंका विजय के लिए प्रस्थान किया और विजय प्राप्त की. उस समय से असत्य-अधर्म पर सत्य-धर्म की जीत का पर्व दशहरा मनाया जाने लगा. आदिशक्ति के हर रूप की नवरात्र के नौ दिनों में क्रमशः अलग-अलग पूजा की जाती है. मां दुर्गा की नौवीं शक्ति का नाम सिद्धिदात्री है. ये सभी प्रकार की सिद्धियां देनेवाली हैं. इनका वाहन सिंह है और कमल पुष्प पर ही आसीन होती हैं. नवरात्रि के नौवें दिन इनकी उपासना की जाती है.

नवदुर्गा और दस महाविद्याओं में काली ही प्रथम प्रमुख हैं. भगवान शिव की शक्तियों में उग्र और सौम्य, दो रूपों में अनेक रूप धारण करनेवाली दशमहाविद्या अनंत सिद्धियां प्रदान करने में समर्थ हैं. दसवें स्थान पर कमला वैष्णवी शक्ति हैं, जो प्राकृतिक संपत्तियों की अधिष्ठात्री देवी लक्ष्मी हैं. देवता, मानव, दानव सभी इनकी कृपा के बिना पंगु हैं. इसलिए आगम-निगम दोनों में इनकी उपासना समान रूप से वर्णित है. सभी देवता, राक्षस, मनुष्य, गंधर्व इनकी कृपा-प्रसाद के लिए लालायित रहते हैं.

बुरी प्रवृत्तियों पर विजय प्राप्त करने की प्रतिबद्धता की प्रतीक हैं देवी दुर्गा

पहले तीन दिनपूजा के लिए समर्पित

नवरात्रि के पहले तीन दिनदेवी दुर्गा की पूजा करने के लिए समर्पित किये गये हैं. उनकी ऊर्जा और शक्ति की पूजा की जाती है. प्रत्येक दिन दुर्गा के एक अलग रूप को समर्पित है. त्योहार के पहले दिन बालिकाओं की पूजा की जाती है. दूसरे दिन युवती की पूजा की जाती है. तीसरे दिन जो महिला परिपक्वता के चरण में पहुंच गयी है, उसकी पूजा की जाती है. देवी दुर्गा के विनाशकारी पहलु सब बुराई प्रवृत्तियों पर विजय प्राप्त करने के प्रतिबद्धता के प्रतीक है.

चौथे से छठे दिन बुरी प्रवृतियों पर विजय के लिए समर्पित

व्यक्ति जब अहंकार, क्रोध, वासना और अन्य पशु प्रवृत्ति की बुराई प्रवृत्तियों पर विजय प्राप्त कर लेता है, वह एक शून्य का अनुभव करता है. यह शून्य आध्यात्मिक धन से भर जाता है. प्रयोजन के लिए, व्यक्ति सभी भौतिकवादी, आध्यात्मिक धन और समृद्धि प्राप्त करने के लिए देवी लक्ष्मी की पूजा करता है. नवरात्रि के चौथे, पांचवें और छठे दिन लक्ष्मी-समृद्धि और शांति की देवी की पूजा करने के लिए समर्पित है. शायद व्यक्ति बुरी प्रवृत्तियों और धन पर विजय प्राप्त कर लेता है, पर वह अभी सच्चे ज्ञान से वंचित है. ज्ञान एक मानवीय जीवन जीने के लिए आवश्यक है, भले ही वह सत्ता और धन के साथ समृद्ध है. इसलिए, नवरात्रि के पांचवें दिन देवी सरस्वती की पूजा की जाती है. सभी पुस्तकों और अन्य साहित्य सामग्रियों को एक स्थान पर इकट्ठा कर दिया जाता हैं और एक दीया देवी आह्वान और आशीर्वाद लेने के लिए, देवता के सामने जलाया जाता है.

नवरात्रि का सातवां और आठवां दिन

नवरात्र के सातवें दिन कला और ज्ञान की देवी, सरस्वती की पूजा की जाती है. प्रार्थनाएं, आध्यात्मिक ज्ञान की तलाश के उद्देश्य के साथ की जाती हैं. आठवें दिन एक ‘यज्ञ’ किया जाता है. यह एक बलिदान है, जो देवी दुर्गा को सम्मान तथा उनको विदा करता है

नवरात्रि का नौवां दिन

नौवां दिन नवरात्रि समारोह का अंतिम दिन है. यह महानवमी के नाम से भी जाना जाता है. इस दिन कन्या पूजन होता है. उन नौ लड़कियों की पूजा होती है, जो अभी तक यौवन की अवस्था तक नहीं पहुंची है. इन नौ लड़कियों को देवी दुर्गा के नौ रूपों का प्रतीक माना जाता है. लड़कियों का सम्मान तथा स्वागत करने के लिए उनके पैर धोये जाते हैं. पूजा के अंत में लड़कियों को उपहार के रूप में नये कपड़े पेश किये जाते हैं.

चंडी देवी को प्रसन्न करने से हुई राम की रावण पर विजय

लंका युद्ध में ब्रह्माजी ने श्रीराम से रावण वध के लिए चंडी देवी का पूजन कर देवी को प्रसन्न करने को कहा और उनके बताये अनुसार चंडी पूजन और हवन हेतु दुर्लभ एक सौ आठ नीलकमल की व्यवस्था की गयी. वहीं, दूसरी ओर रावण ने भी अमरता के लोभ में विजय कामना से चंडी पाठ प्रारंभ किया. यह बात इंद्र देव ने पवन देव के माध्यम से श्रीराम के पास पहुंचायी और परामर्श दिया कि चंडी पाठ यथासभंव पूर्ण होने दिया जाये. इधर, हवन सामग्री में पूजा स्थल से एक नीलकमल रावण की मायावी शक्ति से गायब हो गया और राम का संकल्प टूटता-सा नजर आने लगा. भय इस बात का था कि देवी मां रुष्ट न हो जाएं. दुर्लभ नीलकमल की व्यवस्था तत्काल असंभव थी, तब भगवान राम को सहज ही स्मरण हुआ कि मुझे लोग ‘कमलनयन नवकंच लोचन’ कहते हैं, तो क्यों न संकल्प पूर्ति हेतु एक नेत्र अर्पित कर दिया जाये और प्रभु राम जैसे ही तूणीर से एक बाण निकालकर अपना नेत्र निकालने के लिए तैयार हुए, तब देवी प्रकट हो, हाथ पकड़कर कहा- राम मैं प्रसन्न हूं और विजयश्री का आशीर्वाद दिया. वहीं, रावण के चंडी पाठ में यज्ञ कर रहे ब्राह्मणों की सेवा में ब्राह्मण बालक का रूप धर कर हनुमानजी सेवा में जुट गये. निःस्वार्थ सेवा देखकर ब्राह्मणों ने हनुमानजी से वर मांगने को कहा. इस पर हनुमान ने विनम्रतापूर्वक कहा- प्रभु, आप प्रसन्न हैं, तो जिस मंत्र से यज्ञ कर रहे हैं, उसका एक अक्षर मेरे कहने से बदल दीजिए. ब्राह्मण इस रहस्य को समझ नहीं सके और तथास्तु कह दिया. मंत्र में जयादेवी… भूर्तिहरिणी में ‘ह’ के स्थान पर ‘क’ उच्चारित करें, यही मेरी इच्छा है. भूर्तिहरिणी यानी कि प्राणियों की पीड़ा हरनेवाली और ‘करिणी’ का अर्थ हो गया प्राणियों को पीड़ित करनेवाली, जिससे देवी रुष्ट हो गयीं और रावण का सर्वनाश करा दिया. हनुमानजी महाराज ने श्लोक में ‘ह’ की जगह ‘क’ करवाकर रावण के यज्ञ की दिशा ही बदल दी.

शुरू हो जाते हैं चौमासे में स्थगित कार्य

चौमासे में जो कार्य स्थगित किये गये होते हैं, उनके आरंभ के लिए साधन इसी दिन से जुटाये जाते हैं. इस दिन ब्राह्मण सरस्वती-पूजन तथा क्षत्रिय शस्त्र-पूजन आरंभ करते हैं. अर्थात्, आश्विन शुक्ल दशमी को सायंकाल तारा उदय होने के समय ‘विजयकाल’ रहता है. यह सभी कार्यों को सिद्ध करता है. आश्विन शुक्ल दशमी पूर्वविद्धा निषिद्ध, परविद्धा शुद्ध और श्रवण नक्षत्रयुक्त सूर्योदय व्यापिनी सर्वश्रेष्ठ होती है. अपराह्न काल, श्रवण नक्षत्र तथा दशमी का प्रारंभ विजय यात्रा का मुहूर्त माना गया है. दुर्गा-विसर्जन, अपराजिता पूजन, विजय-प्रयाग, शमी पूजन तथा नवरात्र-पारण इस पर्व के महान कर्म हैं. इस दिन संध्या के समय नीलकंठ पक्षी का दर्शन शुभ माना जाता है. क्षत्रिय/राजपूतों इस दिन प्रातः स्नानादि नित्य कर्म से निवृत्त होकर संकल्प मंत्र लेते हैं. इसके पश्चात देवताओं, गुरुजन, अस्त्र-शस्त्र, अश्व आदि के यथाविधि पूजन की परंपरा है.

आत्मनिरीक्षण और शुद्धि की अवधि है नवरात्रि

नवरात्रि के दौरान कुछ भक्तों उपवास और प्रार्थना, स्वास्थ्य और समृद्धि के संरक्षण के लिए रखते हैं. भक्त इस व्रत के समय मांस, शराब, अनाज, गेहूं और प्याज नहीं खाते. नवरात्रि और मौसमी परिवर्तन के काल के दौरान अनाज आम तौर पर परहेज कर दिया जाते है. क्योंकि, मानते हैं कि अनाज नकारात्मक ऊर्जा को आकर्षित करता हैं. नवरात्रि आत्मनिरीक्षण और शुद्धि का अवधि है और पारंपरिक रूप से नये उद्यम शुरू करने के लिए एक शुभ और धार्मिक समय है.

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