पटना : इप्टा के प्लैटिनम जुबली समारोह के दूसरे दिन इप्टा झारखंड की चाईबासा ईकाई ने लघु नाटक प्रस्तुत किया. ‘नपुंसक’ नाटक के जरिये किन्नर के दर्द को उभारा गया. नाटक में ‘नपुंसक’ की भूमिका में देवेंद्र कुमार मिश्रा दर्शकों को किन्नर का दर्द महसूस कराने की कोशिश की. नाटक के जरिये बताया गया कि हमारा समाज एक होनहार लड़के को भी कैसे किन्नर समुदाय में भेजने को विवश हो जाता है. अपने मां-बाप, मित्रों और परिजनों से बिछुड़ने का उसे बेहद दुख है. लेकिन, वह अपने मां-बाप के घर में नहीं रह सकता, क्योंकि वह अपने पुरुषत्व को साबित नहीं कर सकता.
किन्नरों के बीच पहुंच कर धीरे-धीरे वह अपने दुखों को भूलते हुए घुलने-मिलने लगता है, लेकिन उसे कमी खलती है, तो सिर्फ यही कि उसकी प्रेमिका उससे दूर हो जाती है. किन्नरों की टोली में आने के बाद उसका सबसे करीबी सहेली किन्नरों की संरक्षिका ‘चमेली’ बन जाती है. लेकिन, उसके निधन के बाद वह फिर अकेला हो जाता है. ‘नपुंसक’ नाटक के जरिये दिखाया गया है कि हमारे समाज के कैसे इंसानियत मर रही है. समाज की बुराइयों पर व्यंग्यात्मक कटाक्ष भी किया गया है. समाज के बीच मुखौटे में छिपे लोगों के चेहरों को भी बेनकाब करने की कोशिश की गयी है.
समाज की मुख्यधारा में शामिल होने की कोशिश करनेवाले किन्नरों को ‘नपुंसक’ हो चुका हमारा समाज कैसे रोक देता है, नाटक के जरिये कई अनछुए पहलुओं को बताया गया है. साथ ही यह भी बताया गया है कि समाज में उपहास का पात्र बनाये जानेवाले किन्नरों ने कैसे एक नये समाज का निर्माण करने में भूमिका निभायी है. कई बड़े युद्ध भी किन्नरों के कारण ही जीते गये हैं. अब जरूरत है कि किन्नरों को उपहास का पात्र ना समझे और उन्हें एक शक्ति के रूप में प्रस्तुत करे.
‘नपुंसक’ लघु नाटक के लेखक मंजुल भारद्वाज हैं, जबकि निर्देशन दिनकर शर्मा ने किया है. देवेंद्र कुमार मिश्रा के अभियन ने ‘नपुंसक’ के किरदार को बेहतरीन तरीके से प्रस्तुत किया. नाटक में शीतल सुगंधिनी बागे, कैसर परवेज, श्यामल दास, पूजा गोप, अन्नु पुरती, सुशीला, रोशनी मिश्रा, सुमन गोप, पाखी स्निग्धा, तारा चंद्र शर्मा, बासु मछुवा और शिवशंकर राम ने भी विभिन्न पात्रों की भूमिका में अभिनय किया.