पटना : नेशनल यूनिवर्सिटी रैंकिंग में राज्य का एक भी विश्वविद्यालय शामिल नहीं
अमित कुमार पटना : नेशनल यूनिवर्सिटी रैंकिंग में राज्य का एक भी विश्वविद्यालय नहीं है. पटना विश्वविद्यालय में जब प्रधानमंत्री आये थे, तो उन्होंने रैंकिंग में आने का चैलेंज सभी विश्वविद्यालयों को दिया था. रैंकिंग में टॉप टेन में आने पर उन्होंने बड़े अनुदान का वादा भी किया था. लेकिन, विश्वविद्यालयों की वर्तमान स्थिति को […]
अमित कुमार
पटना : नेशनल यूनिवर्सिटी रैंकिंग में राज्य का एक भी विश्वविद्यालय नहीं है. पटना विश्वविद्यालय में जब प्रधानमंत्री आये थे, तो उन्होंने रैंकिंग में आने का चैलेंज सभी विश्वविद्यालयों को दिया था.
रैंकिंग में टॉप टेन में आने पर उन्होंने बड़े अनुदान का वादा भी किया था. लेकिन, विश्वविद्यालयों की वर्तमान स्थिति को देखते हुए यही लग रहा है कि दूर-दूर तक रैंकिंग के कोई आसार नहीं है. पटना विश्वविद्यालय समेत अन्य विश्वविद्यालय नैक के लिए ही संघर्ष कर रहे हैं, तो नेशनल रैंकिंग की क्या बात की जाये.
शिक्षक, कर्मचारियों की भारी कमी : विश्वविद्यालयों को रैंकिंग में आने की बात कहीं जा रही है. लेकिन, विश्वविद्यालयों को पर्याप्त सुविधा ही सरकार की ओर से नहीं दी जा रही है और ऐसे में विश्वविद्यालय अपने आप को उस स्तर पर लाने के लिए सिर्फ संघर्ष ही कर सकते हैं. सबसे बड़ी जो समस्या विश्वविद्यालयों में हैं वह शिक्षकों की है.
शिक्षकों के करीब आधे से अधिक पद हैं खाली, विश्वविद्यालयों व कॉलेजों को अपना खर्च तक चलाना मुश्किल
विश्वविद्यालयों में शिक्षकों के करीब आधे से अधिक पद खाली हैं. शिक्षक के अलावा लैब टेक्नीशियन, लाइब्रेरियन तथा अन्य कर्मचारियों की भी भारी कमी है. इस कारण से विश्वविद्यालयों में रेगुलर क्लास मुश्किल है. गेस्ट फैकल्टी को इतनी कम राशि मिलती है कि क्वालिटी सुधार पाना मुश्किल है. कर्मी भी संविदा पर ही रखे जा रहे हैं. इसके बावजूद हर जगह शिक्षकों व कर्मचारियों की भारी कमी है. प्रोफेसर के तो पद कई दशकों से नहीं भरे गये हैं.
अनुदान 2005 से बंद : विश्वविद्यालयों में वेतन मद छोड़ दें तो आम खर्चों जैसे लैब, लाइब्रेरी, दिनचर्या की अन्य सामग्री आदि के लिये दिये जाने वाले अनुदान को बंद कर दिया गया है. इससे विश्वविद्यालयों व कॉलेजों को अपना खर्च तक चलाना मुश्किल हो रहा है.
वर्तमान में पटना विश्वविद्यालय ने अपने बजट अभिभाषण में भी इसका उल्लेख किया है कि वार्षिक परिनियत अनुदान जो प्रत्येक पांच वर्ष पर दिया जाना है, वह 2005-06 से ही नहीं दिया गया है. वांछित बढ़ोतरी तो नहीं ही की गयी. ऐसे में छात्राओं के फीस भी माफ कर दिये गये और वह राशि भी कॉलेजों को नहीं दी जा रही है. इन सबने विश्वविद्यालयों का आर्थिक रूप से कमर तोड़ कर रख दिया है. अगर ध्यान दिया जाये, तो विवि निश्चित ही डेवलप करेंगे और इसका फायदा रैंकिंग में होगा.
खास-खास
1. अभी पीयू के पीजी लैब राज्य के अन्य किसी भी लैब से न सिर्फ बड़े हैं बल्कि कई जगहों से अच्छे हैं. लेकिन वहां भी कई मशीन सड़ रहे हैं और कई इक्यूमेंट्स खराब हो रहे हैं. क्योंकि लैब टेक्नीशियन नहीं है और फंड नहीं है.
2. अब भी पीयू का सेंट्रल लाइब्रेरी राज्य भर के किसी भी विश्वविद्यालय की लाइब्रेरी से बड़ा है, लेकिन वहां की स्थिति दिन प्रतिदिन खराब होती जा रही है.
3. भवनों की मरम्मती पर कुछ काम विवि में जरूर हो रहे हैं, हालांकि उनकी रफ्तार काफी धीमी है. पैसा कब का स्वीकृत हो जाता है और काम कब शुरू होगा.
जिनके पास नैक है उन्हें पैसे की कमी नहीं
सबसे पहले तो नैक जरूरी है तभी हम रैंकिंग के लिए भी अप्लाई कर पायेंगे. नैक के लिए पूर्व में जो काम होने चाहिए थे वे नहीं हुए. वर्तमान में तेजी से इस पर काम हो रहा है. बेहतर ग्रेड मिले इसको लेकर प्रयास किये जा रहे हैं. अभी हमारे पास पैसे की कमी है. जिनके पास नैक है उन्हें पैसे की कमी नहीं है. यूजीसी के द्वारा ऐसे कॉलेजों व विश्वविद्यालयों को काफी फंड दिये जा रहे हैं. जबकि हमारे फंड यूजीसी के द्वारा बंद किये हुए हैं.
रूसा का फंड भी बंद है. सरकार से अनुदान भी काफी कम है. सरकार के द्वारा भी काफी सहयोग किया जा रहा है. कुछ स्तर पर परेशानियां हैं, लेकिन पहले काम की धीमी रफ्तार की वजह से है. अभी विवि में काफी तेजी से काम हो रहे हैं. एक बार सारे कॉलेज व विवि नैक हो जायेंगे तो फिर हम आगे रैंकिंग के लिए प्रयास तेज करेंगे.
मनोज मिश्र, रजिस्ट्रार, पीयू