पटना : लंबी अवधि वाली स्वास्थ्य योजनाओं से सूबे में सुधरेगी चिकित्सा व्यवस्था : प्रधान सचिव
आद्री, सीईपीपीएफ व आईजीसी की काॅन्फ्रेंस में प्रधान सचिव ने कहा पटना : लंबी अवधि वाली स्वास्थ्य योजनाओं से सूबे में चिकित्सा व्यवस्था सुधरेगी. सरकारी योजनाओं की शुरुआत तो होती है, लेकिन इसके लागू होने और लोगों तक लाभ पहुंचने में समय लगता है. साथ इन योजनाओं को चलाने वाले पदाधिकारियों का कार्यकाल भी तीन […]
आद्री, सीईपीपीएफ व आईजीसी की काॅन्फ्रेंस में प्रधान सचिव ने कहा
पटना : लंबी अवधि वाली स्वास्थ्य योजनाओं से सूबे में चिकित्सा व्यवस्था सुधरेगी. सरकारी योजनाओं की शुरुआत तो होती है, लेकिन इसके लागू होने और लोगों तक लाभ पहुंचने में समय लगता है. साथ इन योजनाओं को चलाने वाले पदाधिकारियों का कार्यकाल भी तीन साल जैसी छोटी अवधि का होता है.
यह बातें प्रदेश में स्वास्थ्य विभाग के प्रधान सचिव संजय कुमार ने कहीं. वे शनिवार को आद्री, सीईपीपीएफ और आईजीसी की ओर से आयोजित पब्लिक फाइनांस : थ्योरी, प्रैक्टिस एंड चैलेंजेस विषय पर अंतरराष्ट्रीय काॅन्फ्रेंस के दौरान बोल रहे थे. प्रधान सचिव ने कहा कि अधिकारियों का ट्रांसफर होने का असर भी योजनाओं के क्रियान्वयन पर पड़ता है. ऐसे में जनोपयोगी योजनाओं के बेहतर क्रियान्वयन उनकी सफलता के लिए इन बिंदुओं पर विचार करने की आवश्यकता है. देश के राष्ट्रीय आय के मुकाबले बिहार का आय एक तिहाई है. यहां प्रति व्यक्ति की स्वास्थ्य सुविधा पर 50 रुपये खर्च किया जा रहा है.
बिहार में आयुष्मान भारत की हालत
उन्होंने कहा कि मुख्यमंत्री के निर्देश पर टीकाकरण अभियान अच्छी तरह चलाया गया. इसलिए किसी भी योजना की सफलता के लिए बेहतर नेतृत्व की भी आवश्यकता है. बिहार में आयुष्मान भारत की योजना के बारे में प्रधान सचिव ने कहा कि इसके तहत स्वास्थ्य सुविधाओं का विकास किया जा रहा है. सरकारी अस्पताल इससे जोड़े गये हैं, लेकिन बड़े निजी अस्पतालों को इससे नहीं जोड़ा गया है. बिहार में प्राइमरी और सेकेंडरी स्वास्थ्य सुविधाओं के विकास पर काम हो रहा है.
बिहार में एक साल में 38 बच्चों की मौत हो जाती है, लेकिन इनमें से 25 नवजातों की मौत पहले महीने में ही हो जाती है. इसलिए किसी भी योजना पर शुरुआती दौर से ध्यान देने की जरूरत है.
– जलवायु परिवर्तन, कृषि
सहित अन्य मुद्दों पर हुई चर्चा
इस अंतरराष्ट्रीय कांफ्रेंस में बिहार के जलवायु परिवर्तन, कृषि सहित अन्य मुद्दों पर भी चर्चा हुई. इसमें देश-विदेश के एक्सपर्ट शरीक हुए. इस दौरान जलवायु परिवर्तन से बिहार में आने वाली बाढ़, सुखाड़ जैसी आपदाओं से संरक्षण में आर्थिक प्रबंधन पर विश्लेषकों ने अपनी राय दी.
उन्होंने कहा कि ऐसी हालत से निबटने के लिए पैसे की कमी बाधा नहीं है बल्कि बेहतर क्रियान्वयन की आवश्यकता है.
– ये रहे मौजूद
इस कार्यक्रम के दौरान मुख्य रूप से आद्री के संस्थापक सदस्य सचिव व अर्थशास्त्री शैबाल गुप्ता, वर्ल्ड बैंक के वरिष्ठ अर्थशास्त्री स्तूती खेमानी, आईआईईडी यूके वरिष्ठ अर्थशास्त्री पॉल स्टील, सीएसएसएससी की प्रोफेसर सुजाता मरजीत, गोवा इंस्टीट्यूट ऑफ मैनेजमेंट के प्रोफेसर अरिंदम दास गुप्ता, मौलाना आजाद कॉलेज कोलकाता के प्रोफेसर सांतनु घोष, श्रम संसाधन विभाग के प्रधान सचिव दीपक कुमार सिंह सहित अन्य बुद्धिजीवी मौजूद रहे.