पटना : ईंट-भट्ठों से पर्यावरण को खतरा, फिर भी दी जा रही ढील

एक साल बढ़ी स्वच्छतर तकनीक की मियाद पटना : प्रदेश में पुरानी तकनीक से चल रहे ईंट-भट्ठों से निकलने वाले धूलकण और धुएं से पर्यावरण के खतरे से निबटने के लिए सरकार ने सभी साढ़े छह हजार ईंट-भट्ठों को स्वच्छतर (जिगजैग) तकनीक अपनाने को कहा है. सरकार ने इसके लिए पूर्व की मियाद एक साल […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | December 28, 2018 9:24 AM
एक साल बढ़ी स्वच्छतर तकनीक की मियाद
पटना : प्रदेश में पुरानी तकनीक से चल रहे ईंट-भट्ठों से निकलने वाले धूलकण और धुएं से पर्यावरण के खतरे से निबटने के लिए सरकार ने सभी साढ़े छह हजार ईंट-भट्ठों को स्वच्छतर (जिगजैग) तकनीक अपनाने को कहा है. सरकार ने इसके लिए पूर्व की मियाद एक साल बढ़ा दी है.
खान एवं भूतत्व विभाग के उपनिदेशक संजय कुमार ने कहा कि इसके लिए पहले निर्धारित समय सीमा 31 अगस्त, 2018 थी, अब इसे एक साल के लिए बढ़ाकर 31 अगस्त 2019 कर दिया गया है. यह निर्णय पटना हाईकोर्ट के चार दिसंबर के आदेश के बाद लिया गया है.
विभाग ने बिहार राज्य प्रदूषण नियंत्रण पर्षद के द्वारा जारी इस अधिसूचना को लागू करने के लिए विभाग के पदाधिकारियों को निर्देश दिया है. ईंट-भट्ठों का संचालन करने के लिए पर्षद की सहमति आवश्यक है. यह निर्देश पटना जिले के पांच प्रखंडों को छोड़कर बिहार में सभी जगह लागू कर दी गयी है. पटना जिला के जिन पांच प्रखंडों को छोड़ा गया है उनमें मनेर, दानापुर, पटना सदर, फतुहा व फुलवारी शरीफ हैं.
पुरानी तकनीक से हैं कई समस्याएं
पुरानी चिमनियों वाले भट्ठों में ईंट पकाने के लिए छल्लियों में सीधी गर्म हवा दी जाती है. इसमें ईंधन का पूरा दहन नहीं हो पाता और भारी मात्रा में कार्बन डाइ ऑक्साइड के रूप में काला धुआं निकलता है जो पर्यावरण के लिए नुकसानदेह है. इससे जो धूलकण निकलते हैं वे श्वांस के साथ फेफड़े में जाकर कई तरह की बीमारियों का कारक बन जाते हैं. वहीं फसलों को भी नुकसान पहुंचाते हैं.
फायदेमंद है जिगजैग
जिगजैग तकनीक से बनी चिमनियों में टेढ़ी-मेढ़ी लाइन बनाकर हवा दी जाती है. इसमें ईंधन कम लगता है और धुआं भी कम निकलता है. इस तकनीक से धूलकण की मात्रा में बहुत कमी आ जाती है जिससे लोगों और फसलों को नुकसान की आशंका कम हो जाती है. जानकारों का कहना है कि जिगजैग तकनीक में ईंट बनाने के खर्च में भी कमी आती है.
पुरानी तकनीक में एक लाख ईंट पकाने में 26 टन कोयला खर्च होता है, वहीं जिगजैग तकनीक में 16 टन कोयला ही खर्च होता है. वहीं इससे राज्य के करीब 6500 ईंट-भट्ठों और उसके आसपास के लोगों और फसलों को फायदा होगा.

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