स्मृति शेष : कर्पूरी ठाकुर ने कभी भी अपने आदर्शों और सिद्धांतों से समझौता नहीं किया
रामनाथ ठाकुर ठाकुर जी ने अपनी संतानों को राजनीति में उतारने की कभी कोशिश नहीं की, उनकी विनम्र छवि बहुत सारे लोगों को आकर्षित करती रही ऊर्जा के अनंत स्रोत जननायक कर्पूरी ठाकुर की सादगीपूर्ण उनकी जीवनशैली अनुकरणीय है. उनकी निष्पक्षता, निष्टकपटता, उदारता और सदाशयता की विनम्र छवि बहुत सारे लोगों को आकर्षित करती थी. […]
रामनाथ ठाकुर
ठाकुर जी ने अपनी संतानों को राजनीति में उतारने की कभी कोशिश नहीं की, उनकी विनम्र छवि बहुत सारे लोगों को आकर्षित करती रही
ऊर्जा के अनंत स्रोत जननायक कर्पूरी ठाकुर की सादगीपूर्ण उनकी जीवनशैली अनुकरणीय है. उनकी निष्पक्षता, निष्टकपटता, उदारता और सदाशयता की विनम्र छवि बहुत सारे लोगों को आकर्षित करती थी. ठेठ ग्रामीण पहचान वाकई उन्हें आडंबरविहीन बना देता था.
जननायक कर्पूरी के जयेष्ठ पुत्र होने का गौरव मुझे जरूर प्राप्त है, परंतु मैंने कभी इस पर अभिमान प्रदर्शित करने का प्रयास नहीं किया. बड़े-बड़े लोग अपने परिवारजनों को राजनीति में स्थापित करने के लिए अपने जीवनकाल में ही जोड़-तोड़ और सारे इंतजाम कर देेते हैं. यह निर्विवाद रूप से सत्य है कि ठाकुर जी अपने अनमोल जीवन और परिजनों को उपकृत और लाभ पहुंचाने की अपेक्षा अपने सिद्धांतों, आदर्शों एवं मूल्यों को प्रश्रय देते थे.
परिवारवाद ओर वंशवाद को जनतंत्र के लिए घातक मानते थे. अपनी संतानों को राजनीति में उतारने के लिए कभी भी अपने आदर्शों और सिद्धांतों से समझौता नहीं किया. मेरे ऊपर उनके आभामंडल का प्रभाव इतना प्रबल था कि मैंने अपनी राजनीतिक महत्वाकांक्षा को कभी उभरने नहीं दिया. एक राजनीतिक परिवार में मेरा पालन-पोषण हुआ था.
अत: राजनीति महत्वाकांक्षा अस्वाभाविक नहीं थी. सच बताता हूं, यदि में बालहठ पर उतारू हो जाता तो ठाकुर जी राजनीति से संन्यास ले लेते. वे बड़े ही दृढ़ निश्चयी थे. संसार मुझे कोसता रहता. पुत्रधर्म का निर्वाह करते हुए उनकी निष्कलंक छवि को मैंने धूमिल नहीं होने दिया.
आज जब सामान्य वर्ग के गरीब लोगों को आर्थिक आधार पर सरकारी नौकरियों और शिक्षण संस्थानों में आरक्षण का लाभ दिया जा रहा है तो बिहार राज्य में प्रचलित आरक्षण का ‘कर्पूरी फाॅर्मूला’ के अध्ययन और विश्लेषण की नितांत आवश्यकता है. जाति प्रथा की बुराइयोंं को दूर करने का यथासंभव प्रयास कई युग पुरुषों, चिंतकों एवं समाज सुधारकों ने समय-समय पर किया है.
समाजवादी आंदोलन के जननायक कर्पूरी ठाकुर ने कई सामाजिक आंदोलनों का सफलतापूर्वक नेतृत्व किया. खासकर बिहार में ठाकुर जी के जुझारूपन के कारण सामाजिक क्रांति धारदार और असरदार बन सकी.
उनके समकालीन लोग उन्हें सामाजिक परिवर्तन का अग्रदूत मानते थे. उनका कहना था कि भारतीय सामाजिक संरचना भेदभाव एवं असमानता पर आधारित थी. ठाकुर जी निष्काम कर्मयोगी थे. भारतीय संविधान ओर संसदीय लोकतंत्र में उनकी अटूट आस्था थी. किसी भी देश का संविधान वहां के रीति-रिवाजों, धार्मिक आस्थाओं, सामाजिक एवं राजनीतिक परिस्थितियों से प्रभावित होता है.
जननायक कर्पूरी ठाकुर ने अपने मुख्यमंत्रित्व काल में (1978) संवैधानिक प्रावधानों का अनुपालन करते हुए सामाजिक एवं आर्थिक आधार पर 26 प्रतिशत आरक्षण की व्यवस्था सुनिश्चित की थी. इस व्यवस्था में सामान्य वर्ग (सवर्ण) के गरीब लोगों को आर्थिक आधार पर तीन प्रतिशत आरक्षण का लाभ दिया गया था.
इसमें सभी जातियों की महिलाओं के लिए तीन प्रतिशत आरक्षण की स्वीकृति प्रदान की गयी थी. आज की परिस्थिति में प्रबुद्धजन जरूर स्वीकार करेंगे कि आज से 40 वर्ष पूर्व पिछड़े वर्ग की शिक्षित महिलाओं की संख्या कितनी हुआ करती थी? खासकर उच्च शिक्षा प्राप्त करने वाली पिछड़ी जातियों की महिलाओं की संख्या नगण्य थी.
उच्च वर्ग की महिलाओं की मेधा के समक्ष पिछड़े वर्ग की महिलाएं टिक नहीं सकती थीं, कुछ अपवाद हो सकता है. इस प्रकार गणित साफ है. उच्च वर्ण के पुरुष और महिलाओं को मिलाकर कुल छह प्रतिशत आरक्षण व्यावहारिक रूप से सवर्ण समूहों के पक्ष में था. बिहार राज्य की उस समय की जनसंख्या के लिहाज से आरक्षण का प्रावधान न्यायोचित और तर्कसंगत था. इस प्रकार आर्थिक आधार पर आरक्षण व्यवस्था की नींव ठाकुर जी ने डाली थी.
समन्वय, संतुलन, सद्भाव और सामंजस्य स्थापित करने वाली आरक्षण की व्यवस्था को तब आरक्षण का ‘कर्पूरी फॉर्मूला’ के रूप में प्रचारित किया गया था. उपयुक्त निर्णय में कर्पूरी मंत्रिमंडल में शामिल सभी सवर्ण मंत्रियों एवं नेताओं की सहमति थी. आरक्षण के ‘कर्पूरी फॉर्मूला’ के मसले पर खामोशी है. ठाकुर जी के बाद भी लोग सत्ता में आये, परंतु ठाकुर जी की अहमियत भूलना नामुमकिन है. और अंत में …
‘गुजरे हैं तेरे बाद भी कुछ लोग इधर से,
लेकिन तेरी खुशबू न गयी रहगुजर से.’
(लेखक जननायक कर्पूरी ठाकुर के बड़े पुत्र और राज्यसभा के
सदस्य हैं).