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सुदर्शन के नाम से था रिजर्वेशन, पटना स्टेशन पर लुंगी और लाल गमछे में पहुंचे थे जॉर्ज फर्नांडिस

सुरेंद्र किशोर सन 1977 में मुजफ्फरपुर से सांसद बनने से पहले से ही जाॅर्ज फर्नांडिस का बिहार से विशेष लगाव था. इसके कई कारण थे. वे सोशलिस्ट पार्टी के साथ -साथ आॅल इंडिया रेलवे मेंस फेडरेशन के भी अध्यक्ष थे. बिहार और उत्तर प्रदेश में समाजवादियों का पहले से ही जनाधार रहा. इस कारण भी […]

सुरेंद्र किशोर
सन 1977 में मुजफ्फरपुर से सांसद बनने से पहले से ही जाॅर्ज फर्नांडिस का बिहार से विशेष लगाव था. इसके कई कारण थे. वे सोशलिस्ट पार्टी के साथ -साथ आॅल इंडिया रेलवे मेंस फेडरेशन के भी अध्यक्ष थे. बिहार और उत्तर प्रदेश में समाजवादियों का पहले से ही जनाधार रहा. इस कारण भी जार्ज की यहां सक्रियता थी. जार्ज फर्नांडिस नई दिल्ली से प्रकाशित चर्चित साप्ताहिक पत्रिका ‘प्रतिपक्ष’ के प्रधान संपादक थे जो बिहार में भी खूब पढ़ा जाता था.
प्रतिपक्ष को आप ‘दिनमान’ और ‘ब्लिट्ज’ का मिश्रण कह सकते हैं. वह पार्टी का पत्र नहीं था भले जार्ज उसके प्रधान संपादक थे. वह पत्रिका गैर समाजवादी बुद्धिजीवियों में भी प्रचलित थी.उस पत्रिका के सिलसिले में जार्ज फर्नांडिस से मेरी मुलाकात 1972 में राजनीति प्रसाद ने करायी थी. राजनीति ने उनसे कहा कि सुरेंदर अच्छा लिखता है,आप इसे संवाददाता रख लीजिये. उन्होंने रख लिया. तब से 1977 तक मैंने जार्ज के बिहार से लगाव को करीब से देखा. बाद में तो मैं मुख्य धारा की पत्रकारिता में आ गया और जार्ज से भी वैसा ही संबंध रह गया जैसा एक पत्रकार का एक नेता से रहता है.
खैर, आपातकाल के भूमिगत आंदोलन में जार्ज के निदेश पर बिहार में बहुत जोरदार काम हुए थे. डा.विनयन और उनके साथियों ने उसे अंजाम दिया था. 1977 में जब लोक सभा चुनाव की घोषणा हुई तो उस समय जार्ज तिहाड़ जेल में थे.
उनके दो दर्जन साथियों के साथ उन पर बड़ौदा डायनामाइट षड्यंत्र केस के सिलसिले में देशद्रोह का मुकदमा चल रहा था.उन्होंने जेल से ही नामांकन पत्र भरा और वे भारी मतों से जीते. 1980 तथा बाद में भी बिहार से सांसद बनते रहे. जब 25 जून, 1975 को जब देश में आपातकाल लगा तो उस समय जाॅर्ज फर्नांडीस ओडिशा में थे. अपनी पोशाक बदल कर 5 जुलाई में जार्ज पटना आये और तत्कालीन समाजवादी विधान पार्षद रेवतीकांत सिंहा के पटना के आर.ब्लाक स्थित सरकारी आवास में टिके. बिहार के कई समाजवादी नेता उनसे मिले.उनके पटना छोड़ते समय की कहानी सनसनीखेज किंतु रोचक है. याद रहे कि पुलिस उन्हें बेचैनी से खोज रही थी और वे भूमिगत हो गये थे.
उससे पहले जार्ज देशव्यापी रेलवे हड़ताल के जरिए केंद्र सरकार की नींद उड़ा चुके थे,इसलिए भी जार्ज पर सरकार की विशेष नजर थी. उसे लगता था कि जार्ज कोई गड़बड़ न कर दे. शाम की गाड़ी से जार्ज को पटना से इलाहाबाद जाना था. रेलवे यूनियन के स्थानीय नेता गण उनकी मदद में तैनात थे. सुदर्शन नाम से ऊपरी बर्थ पर रिजर्वेशन हुआ.
मैंने जार्ज को पटना स्टेशन जंक्शन पहुंचाया.जार्ज लुंगी और खादी का कुर्ता पहने थे और लाल गमछा लिए हुए थे. हाथ में जूट का थैला था जिसमें कागज थे. स्टेशन पहुंच कर जार्ज प्लेटफाॅर्म की फर्श पर बैठ गये. बेंच पर नहीं बैठे. वे दिखाना चाहते थे कि वे कोर्ट- कचहरी के काम से पटना आये किसान थे.स्टेशन में जब गाड़ी प्रवेश कर रही थी तब अचानक पूरे स्टेशन की बिजली काट दी गयी. अंधेरे में ही जार्ज ट्रेन में सवार हुए. ऊपर की अपनी सीट पर जाकर लेट गये.
उन्होंने मुझसे कहा कि ‘मुझे उतरने की जरूरत नहीं पड़ेगी क्योंकि मैं छह -सात घंटे तक पेशाब रोक सकता हूं. उतरने पर पहचान लिए जाने का खतरा जो था. जब गाड़ी खुलकर आगे बढ़ गई तभी स्टेशन की बिजली आॅन की गयी. बाद में रेलवे यूनियन के एक नेता ने बताया कि यह पहले से तय था. खैर जार्ज जनता पार्टी से होते हुए जनता पार्टी एस ,जनता दल और समता पार्टी में रहे.
समता पार्टी के प्रारंभिक दिनों में इसे खड़ा करने में नीतीश कुमार के साथ -साथ जार्ज की भी महत्वपूर्ण भूमिका थी.जार्ज ने केंद्रीय मंत्री रहते हुए अन्य स्थानों के साथ- साथ अपने चुनाव क्षेत्रों में भी महत्वपूर्ण कार्य करवाये.
जार्ज तो राष्ट्रीय नेता थे,पर बिहार में भी उन्होंने अपने समर्थकों और साथियों को एक बड़ा समूह तैयार किया था. उनमें सबसे बड़ी खूबी यह थी कि वे अपने समर्थकों की बातें ध्यान से सुनते थे. इससे कार्यकर्ताओं को संतोष मिलता था.

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