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बंसवारी-बगीचे में सरगना, खेतों में गुर्गे, दिन भर जारी है ठगी का ऑनलाइन धंधा
ऑनलाइन शॉपिंग व इ-भुगतान के बढ़ते प्रचलन के साथ साइबर अपराधियों के ठगी के तरीके भी तकनीकों से लैस होते जा रहे हैं. साइबर अपराधियों के गैंग के सदस्य किसी कंपनी की वेबसाइट को हैक कर फर्जी वेबसाइट बना लोगों को फोन कर निजी नेटवर्किंग का टॉवर लगवाने से लेकर अन्य तरह के प्रलोभन देकर […]
ऑनलाइन शॉपिंग व इ-भुगतान के बढ़ते प्रचलन के साथ साइबर अपराधियों के ठगी के तरीके भी तकनीकों से लैस होते जा रहे हैं. साइबर अपराधियों के गैंग के सदस्य किसी कंपनी की वेबसाइट को हैक कर फर्जी वेबसाइट बना लोगों को फोन कर निजी नेटवर्किंग का टॉवर लगवाने से लेकर अन्य तरह के प्रलोभन देकर पैसे वसूल लेते हैं.
इसके अलावा भी ये शातिर ठग तरह-तरह के हथकंडे अपनाते हैं. बैंक के उपभोक्ताओं को कॉल कर झांसा देते हुए उनकी एटीएम की सारी जानकारी हासिल कर लेते हैं और चंद मिनट में उनके खाते में जमा रुपये से ऑनलाइन शॉपिंग कर लेते हैं. इसकी जानकारी उपभोक्ताओं को तब होती है, जब वे बैंक में राशि निकासी करने या पासबुक अपडेट करवाने जाते हैं.
विजय सिंह
पटना : साइबर क्राइम के अड्डों में शुमार हो चुके नवादा जिले के बरहीबिघा गांव में जब प्रभात खबर ने पड़ताल की तो कुछ लाइव दृश्य देखने को मिला. गांव में पूरब दिशा से प्रवेश करते हैं. गांव में एक देवी मंदिर है. मंदिर से नार्थ-वेस्ट कोने पर एक बागीचा है. इसमें इलेक्ट्रॉनिक उपकरण के साथ बागीचे में डेरा जमाया जाता है. पड़ताल में सब कुछ सही पाया गया. सुबह के करीब 10 बजे थे. गैंग के सदस्य एक-एक करके बागीचे की तरफ बढ़ रहे थे. करीब आधे घंटे बाद बागीचे में बैठे गैंग के सरगना उन्हें एक कागज दे रहे थे, जिस पर कुछ नाम और नंबर थे.
गैंग सदस्य इस पर फोन करके एक निजी नेटवर्किंग कंपनी का टॉवर लगवाने के संबंध में झांसा दे रहे थे. फिर बड़े अधिकारी से बात कराने के नाम पर कॉल ट्रांसफर किया जाता है सरगना के पास. फिर बताया जाता है कि आपका डिटेल ले लिया गया है, टॉवर के लिए आपका नाम फाइनल हो गया है. फिर एकाउंट नंबर देकर पैसा मंगाया जाता है. ठगी के इस खेल के बीच गांव के पश्चिम इलाके में भी कुछ हलचल दिखी. फिर पता चला कि मिस्त्री टोला है और इसके पीछे घनी बंसवारी है. इसमें भी दूसरा गैंग सक्रिय है.
फिर गौर से देखने पर पता चला कि कुछ लड़के बंसवारी से सरगना का डायरेक्शन लेकर खेत में निकल रहे हैं और फोन पर बात करे रहे. धंधे के दौरान महिलाएं, बच्चे व परिवार के अन्य सदस्य अनजान लोगों पर नजर रखते हैं. यह सिलसिला शाम के चार बजे तक चलता रहा. फिर लैपटॉप, करीब एक झोला साधारण मोबाइल फोन, ढेर सारा चार्जर और करीब दो बोरी डाक्यूमेंट, डायरी को अलग-अलग मकान में छुपाया गया.
छोटी रकम से शुरू करते हैं वसूली, फिर बना देते हैं कंगाल
एक बार जो इनके जाल में फंस गया, उससे मोटी रकम वसूलते हैं. पहले टोकन मनी के नाम पर 10 हजार रुपये लेते हैं, फिर फाइनल अलॉटमेंट के लिए मोटी रकम लेते हैं.
जब काम नहीं होता है तो लोग खुद फोन करते हैं, फिर बताया जाता है कि कुछ और पैसा देना होगा. ऐसा करके दो से ढ़ाई लाख रुपये एक लोगों से वसूल लिया जाता है. जब लोग लाख दो लाख देते हैं तो उनसे कहा जाता है कि और पैसा दीजिए नहीं तो पहले दिया हुआ पैसा भी डूब जायेगा. फिर कंगाल हो चुके लोग जब पैसा देने से मना करते हैं तो फिर धमकी देकर फोन रखवा दिया जाता है.
यहां बता दें कि साइबर क्रिमिनल के इन अड्डों पर तीन टीमें काम करती हैं. इसमें डाटा कलेक्टर्स को 30%, बात करके फंसाने वाले को 50% और पैसा निकालने वाली टीम को 20% कमीशन मिलता है. गैंग के सदस्य बैंक खाते में पैसा आते ही उसे विड्रॉल करा लेते हैं.
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