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पटना : फर्जी बिल लगा रिफंड वाले पड़ सकते हैं संकट में

इनकम टैक्स रिटर्न l पकड़े जाने पर कानूनी कार्रवाई के साथ फाइन भी भरना पड़ सकता है पटना : इनकम टैक्स में अधिक छूट पाने के लिए रिटर्न में फर्जी बिल लगाना महंगा पड़ सकता है. जांच के दौरान पकड़े जाने पर कानूनी कार्रवाई के साथ फाइन भी भरनी पड़ सकती है. फर्जी बिल मामले […]

इनकम टैक्स रिटर्न l पकड़े जाने पर कानूनी कार्रवाई के साथ फाइन भी भरना पड़ सकता है
पटना : इनकम टैक्स में अधिक छूट पाने के लिए रिटर्न में फर्जी बिल लगाना महंगा पड़ सकता है. जांच के दौरान पकड़े जाने पर कानूनी कार्रवाई के साथ फाइन भी भरनी पड़ सकती है. फर्जी बिल मामले में इनकम टैक्स अधिनियम की धारा 270 (1) के तहत कानूनी कार्रवाई हो सकती है.
चार्टर्ड एकाउंटेंट आशीष कुमार अग्रवाल के अनुसार इनकम टैक्स रिटर्न में कई खर्च दिखा कर नियोक्ता से इनकम टैक्स में छूट का दावा किया जा सकता है. इनमें सबसे ज्यादा चलन मेडिकल बिल, लीव ट्रेवल अलाउंस (एलटीए) के लिए टूर और होटल के बिल, वाहन में ईंधन भरने के बिल उस अवधि के ही होने चाहिए, जिसके लिए आप इनकम टैक्स में छूट का दावा कर रहे हैं. इसके अलावा मकान के किराये की रसीद प्रस्तुत करने के मामले में विशेष ध्यान रखने की जरूरत है. किराया वार्षिक एक लाख से अधिक होने पर मकान मालिक का पैन नंबर देना अनिवार्य होता है. ऐसा न करने पर छूट रद्द होने के साथ ही इनकम टैक्स विभाग की ओर से कानूनी कार्रवाई भी हो सकती है. बिल में गड़बड़ी के अलावा इनकम टैक्स रिटर्न फाइल में दिखाये इनकम को लेकर भी सचेत रहने की जरूरत है. क्योंकि, इनकम कम दिखाने या छुपाने पर भी फाइन भरना पड़ सकता है.
धारा 80 डी से 80 यू के तहत कटौती
सेक्शन 80 सी के तहत कर-बचत निवेश और व्यय के अलावा कुछ निश्चित खर्च हैं जिन पर आप आयकर अधिनियम के विभिन्न वर्गों के तहत कटौती का दावा कर सकते हैं. जैसे वित्तीय वर्ष 2017-18 में भुगतान किया गया स्वास्थ्य बीमा प्रीमियम अधिनियम की धारा 80 डी के तहत कटौती के लिए पात्र है, जो एक वर्ष में अधिकतम 25,000 रुपये तक है.
अगर आयकरदाता अपने माता-पिता के स्वास्थ्य बीमा प्रीमियम के लिए भुगतान किया है, तो आप अपने माता-पिता की उम्र के आधार पर 25,000 या 30,000 रुपये की अतिरिक्त कटौती का दावा कर सकते हैं. अाशीष अग्रवाल के अनुसार इसी तरह अगर आयकरदाता ने शिक्षा ऋण पर कोई ब्याज दिया है, तो आप धारा 80 इ के तहत कटौती का दावा कर सकते हैं. संपत्ति व म्यूचुअल फंड की बिक्री से कुछ पूंजीगत लाभ अर्जित किये हैं, तो आपको अपने आइटीआर में इन लाभों की रिपोर्ट करने की आवश्यकता होगी.
सेक्शन 80 सी के तहत सबसे आम उपलब्ध टैक्स ब्रेक है
कर्मचारी भविष्य निधि (इपीएफ)
सार्वजनिक भविष्य निधि (पीपीएफ)
म्यूचुअल फंड की इएलएसएस योजनाओं में निवेश
जीवन बीमा प्रीमियम का भुगतान
राष्ट्रीय पेंशन प्रणाली (एनपीएस) आदि
कर बचत निवेश प्रमाण : सेक्शन 80सी, 80 सीसीसी और 80 सीसीडी (1) के तहत आपके द्वारा किये गये सभी कर-बचत निवेश व व्यय आपको आपकी कर देनदारी कम करने में मदद कर सकते हैं. इन तीन वर्गों के तहत आप अधिकतम कर तोड़ का दावा कर सकते हैं, जो एक वित्तीय वर्ष में 1.5 लाख से अधिक नहीं हो सकता है.

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