रोजेदारों के लिए खास इंतजाम
पटना: रमजान में यहां की चहल पहल देखने लायक होती है. बच्चे बूढ़े सब इबादत की डोर से बंधे हुए दिखते हैं. शाम में बड़े अच्छे तरीके से यहां के इंतजामात होते हैं. यहां पूरे महीने में कुरआन पाक की तिलावत के अलावा तीस दिन मजलिस होती है. इफ्तार में खास इंतजाम भी होती है. […]
पटना: रमजान में यहां की चहल पहल देखने लायक होती है. बच्चे बूढ़े सब इबादत की डोर से बंधे हुए दिखते हैं. शाम में बड़े अच्छे तरीके से यहां के इंतजामात होते हैं. यहां पूरे महीने में कुरआन पाक की तिलावत के अलावा तीस दिन मजलिस होती है. इफ्तार में खास इंतजाम भी होती है.
शाम के 6 बजते ही प्रभात खबर की टीम संगी मसजिद पहुंच गयी. इसे पत्थर की मसजिद के नाम से भी लोग जानते हैं. शाम में यहां का माहौल तो बस देखने लायक होता है. यहां के लोगों की सोच होती है कि इस जगह पर तिलावत करने से खासा फायदा होता है. मसजिद के पास के मो. रिजवान कहते हैं इस मसजिद में नमाज पढ़ने से लोगों को काफी सुकून मिलता है. इतने गुफ्तगू के बाद इफ्तार का वक्त हो चला था. यहां के कुछ स्थानीय लोगों ने मसजिद में दस्तर खान लगाना शुरू कर दिया और इसमें इफ्तार की कई व्यंजनों को भी लगाने लगे. कोई रुहअफजा बनाने में जुटे थे, तो कोई केला काटने में.
आलू के दही बाड़े का खास इंतजाम : इफ्तार में यहां खास आलू के दही बाड़े को पैकेट में पैक करके पड़ोसा जा रहा था. इफ्तार करने आये मो. फकरूद्दीन ने कहा यहां हर साल ऐसे ही आलू के दही बाड़े को अच्छे तरीके से पैक करके नमाजियों को दिया जाता है. ताकि वो दिन भर के रोजे के बाद कुछ अच्छे जायके का स्वाद ले सकें. इस जगह में इफ्तार करने में जायके का स्वाद भी काफी आ रहा था. ये मसजिद रोड पर था इसके वजह से आस-पास के दुकानवाले भी यहीं आ गये थे. यहां इफ्तार करने के बाद लोगों ने नमाज अता की. नमाज के बाद कुछ लोग मसजिद में ही रुक गये. पूछने पर पता चला कि सभी कुरान पाक की तिलावत करने को ठहरे हुए हैं.
खुद ही पूरे कुरान पाक की तिलावत: इस मसजिद में लोग रोज नमाज के बाद कुरान पाक की तिलावत करते हैं. मसजिद के आजम मुहम्मद कहते हैं यहां पर कई रोजेदार रमजान के तीस दिनों में एक से दो बार खत्म कुरान कर लेते हैं. यहां पर तिलावत करने के लिए अलग-अलग कुरान पाक रखे हुए हैं.
उन्होंने बताया यहां इसके अलावा मजलिस का भी इंतजाम होता है. इन बातों की जानकारी लेते-लेते रात के 8 बज चुके थे. मसजिद के बाद रुख मजलिस के तरफ का हुआ तो पता चला कि यहां नमाज के बाद मजलिस में लोग नबी-करीम और उनके नवासे के जिक्र को सुन रहे थे.