पटना : सुरक्षा बल की कमी से अधिक फेज में हो रहा चुनाव

दो माह से अधिक समय तक विभिन्न लोकसभा क्षेत्रों में संपन्न होंगे लोकसभा चुनाव पटना : चुनावी हिंसा के लिए कभी बदनाम रहे बिहार में अब शांतिपूर्ण तरीके से मतदान हाेता है. चुनाव आयोग अभी भी मतदाता व मतदानकर्मियों की सुरक्षा पर कोई समझौता नहीं करना चाहता. यही कारण है कि बिहार में लोकसभा का […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | March 12, 2019 6:44 AM
दो माह से अधिक समय तक विभिन्न लोकसभा क्षेत्रों में संपन्न होंगे लोकसभा चुनाव
पटना : चुनावी हिंसा के लिए कभी बदनाम रहे बिहार में अब शांतिपूर्ण तरीके से मतदान हाेता है. चुनाव आयोग अभी भी मतदाता व मतदानकर्मियों की सुरक्षा पर कोई समझौता नहीं करना चाहता. यही कारण है कि बिहार में लोकसभा का चुनाव इस बार सात चरण में कराएं जायेंगे.
आयोग के इस फैसले को सुरक्षा मानकों से देखा जा रहा है. चुनाव के दौरान बड़े पैमाने पर सुरक्षा बलों की तैनाती होती है. एक से दूसरे जगह इन्हें ले जाने में प्रशासन को पर्याप्त समय की जरूरत होगी. इसको ध्यान में रख कर हर चरण के बाद करीब एक सप्ताह का अंतराल दिया गया है. 18 मार्च से शुरू होनेवाला लोकसभा आम चुनाव 27 मई को समाप्त होगा.
चुनाव आयोग अभी भी मतदाता व मतदानकर्मियों की सुरक्षा पर नहीं करना चाहता कोई समझौता
2005 बिहार विधानसभा चुनाव के ऑब्जर्वर रहे केजे राव का मानना है कि सात चरणों में चुनाव की कोई आवश्यकता नहीं थी. हर चरण के मतदान के बाद लंबा गैप दे दिया गया है. इसको कम करना चाहिए था. फोर्स की अधिक आवश्यकता के कारण ऐसा किया गया होगा. उन्होंने बताया कि निर्वाचन आयोग ने जो निर्णय लिया है, उसके अनुसार सब ठीक होना चाहिए.
केजे राव, पूर्व ऑब्जर्वर, निर्वाचन आयोग
बिहार-झारखंड के पूर्व मुख्य सचिव वीएस दूबे का मानना है कि यह कोई नयी बात नहीं है. पिछले लोकसभा चुनाव में तो कुछ राज्यों में 10 चरणों में चुनाव कराया गया था. मतदान के बाद सुरक्षा बलों को एक से दूसरे स्थान तक भेजने में चार-पांच दिन का समय लगता है.
साथ ही उनको एक दिन पहले बूथ तक पहुंच कर व्यवस्थित होना पड़ता है. सात चरणों के चुनाव के अलावा आयोग के पास और कोई रास्ता भी नहीं है. निष्पक्ष व भयमुक्त चुनाव के लिए यह आवश्यक है. उन्होंने बताया कि अधिक चरणों में चुनाव होने से गुंडों का भी ट्रांसफर होता है पर सुरक्षा बलों के कारण अब चुनावी हिंसा और हत्या में कमी आयी है.
वीएस दूबे, पूर्व मुख्य सचिव, बिहार-झारखंड
समाजशास्त्री प्रो डीएम दिवाकर का मानना है कि अधिक चरणों में चुनाव होना यह संकेत देता है कि सुरक्षा की दृष्टि से जितने सुरक्षा बल चाहिए उतनी बल उपलब्ध नहीं है. उन्होंने कहा कि सामाजिक प्रगति की हालत ठीक रहती, तो भी अधिक चरण में चुनाव की आवश्यकता नहीं होती. बिहार में पहले जैसी स्थिति अभी भी बनी हुई है. बंगाल व उत्तर प्रदेश जैसे राज्यों में सात चरणों में चुनाव कराया जा रहा है.
प्रो डीएम दिवाकर, समाजशास्त्री

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