लोकसभा चुनाव 2019: मतदान में जितना अधिक वक्त, उतना बढ़ेगा बोझ, प्रत्याशियों पर होगा पैसे का दबाव
पटना : लोकसभा चुनाव में सबसे अधिक पैसे का दबाव प्रत्याशियों के ऊपर होगा, जिनके लोकसभा क्षेत्र में मतदान अंतिम चरण में है. प्रत्याशियों के नामों की घोषणा के साथ ही उनका प्रचार-प्रसार शुरू हो जाता है. प्रचार-प्रसार व कार्यकर्ताओं को गतिशील बनाये रखने को प्रतिदिन पैसे की आवश्यकता होती है. कार्यकर्ताओं को भी चुनावी […]
पटना : लोकसभा चुनाव में सबसे अधिक पैसे का दबाव प्रत्याशियों के ऊपर होगा, जिनके लोकसभा क्षेत्र में मतदान अंतिम चरण में है. प्रत्याशियों के नामों की घोषणा के साथ ही उनका प्रचार-प्रसार शुरू हो जाता है. प्रचार-प्रसार व कार्यकर्ताओं को गतिशील बनाये रखने को प्रतिदिन पैसे की आवश्यकता होती है. कार्यकर्ताओं को भी चुनावी मौसम में पार्टी की ओर से काम दिया जाता है.
लोकसभा में हर प्रत्याशी को अपने चुनावी खर्च को 70 लाख के अंदर ही रखना होता है. ऐसे में पहले चरण में प्रत्याशियों का चुनावी खर्च कुछ दिनों के लिए ही करना होगा. जबकि, सातवें चरण के प्रत्याशी को 60 दिनों का चुनावी खर्च उठाना होगा.
सात चरणों में होने हैं लोस चुनाव : बिहार में लोकसभा चुनाव सात चरणों में होने हैं. प्रत्याशियों पर बड़ा बोझ गठबंधन के घटक दलों का भी है. हर प्रत्याशी को गठबंधन दलों के लिए पार्टी कार्यालय खोलने से लेकर घटक दलों के नेताओं को प्रचार के लिए खर्च देना पड़ता है.
जिस गठबंधन में जितने दल, उनका हर पंचायत, प्रखंड और जिला में दफ्तर होगा. कार्यकर्ताओं को चुनाव प्रचार की जिम्मेदारी दी जायेगी. पहले चरण में औरंगाबाद, गया, नवादा व जमुई लोकसभा क्षेत्र में मतदान 11 अप्रैल को होगा. इन चार लोकसभा क्षेत्रों के प्रत्याशियों के नामांकन की प्रक्रिया 18 मार्च से शुरू हो रही है.
यहां के प्रत्याशियों का खर्च सिर्फ 23 दिनों तक ही करना होगा. जबकि, प्रत्याशी घोषित होने के बाद सातवें चरण में बिहार के आठ लोकसभा क्षेत्रों के प्रत्याशियों को 19 मई तक पार्टी कार्यालय चलाने और कार्यकर्ताओं को प्रचार में भेजने के लिए खर्च करनी होगी. अंतिम चरण के लोकसभा प्रत्याशियों को 60 दिनों का खर्च वहन करना होगा. इस तरह उनका खर्च भी बढ़ता चला जायेगा.