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फ्लैश बैक : …..जब सभा में भाषण के बाद चादर तान चंदा मांग लेते थे जॉर्ज

सुभाष बैद्य बांका : बांका के चुनावी इतिहास में दो समाजवादी नेताओं का नाम सादगी की पहचान के रूप में लिया जाता रहा है- एक मधु लिमये व दूसरे जॉर्ज फर्नांडिस. मधु लिमये जब बांका में 1973 में सोशलिस्ट पार्टी से लोकसभा चुनाव लड़ने आये थे. चुनाव भी जीते. इसी दौरान उनके मुख्य प्रचारक बनकर […]

सुभाष बैद्य
बांका : बांका के चुनावी इतिहास में दो समाजवादी नेताओं का नाम सादगी की पहचान के रूप में लिया जाता रहा है- एक मधु लिमये व दूसरे जॉर्ज फर्नांडिस. मधु लिमये जब बांका में 1973 में सोशलिस्ट पार्टी से लोकसभा चुनाव लड़ने आये थे. चुनाव भी जीते. इसी दौरान उनके मुख्य प्रचारक बनकर जॉर्ज पहली बार बांका आये. मधु लिमये 1973 व 1977 में यहां से दो बार सांसद रहे. वे 1980 के मध्यावधि चुनाव में कांग्रेस के चंद्रशेखर सिंह से हार गये. इसी बीच जयप्रकाश नारायण के 18 मार्च, 1974 में छात्र-जन आंदोलन में दोनों समाजवादी नेता ने महती भूमिका निभायी. हालांकि 25 जून, 1975 की आधी रात में लगी आपातकाल के दौरान मधु लिमिये व जाॅर्ज जेल में बंद कर दिये गये.
जाॅर्ज पर बड़ौदा डायनामाइट राष्ट्रद्रोह का आरोप लगा और जेल में बंद कर दिया गया. 1977 में आपातकाल की समाप्ति के बाद जाॅर्ज जेल में ही रहे, लेकिन मधु लिमिये रिहा होकर जनता दल के चक्र हलधर निशान पर बांका से लोकसभा का चुनाव लड़े और कांग्रेस प्रत्याशी चंद्रशेखर सिंह को पराजित किया. जॉर्ज फर्नांडिस 1984 व 1986 में दो बार चुनाव बांका लोकसभा से लड़े, परंतु हार का मुंह देखना पड़ा. वे अंतिम बार मनोरमा सिंह से 1986 में हार गये थे.
जीना है तो लड़ना सीखो, कदम कदम पर मरना सीखो
पूर्व सांसद जनार्दन यादव बताते हैं कि ये दोनों नेता चरित्रवान व सादगी पसंद थे. क्षेत्र में खूब घूमना दोनों नेताओं की पहचान थी. सादा भोजन, सादा रहन-सहन के साथ सबकुछ सादगी से लवरेज था. 1977 में अक्सर जाॅर्ज उनके घर आकर रुकते थे. लोग कहते हैं कि जाॅर्ज हर चुनावी सभा में चादर फैलाकर जनता से आर्थिक मदद मांगते थे. उन्हीं चंदे के पैसे से वह चुनावी खर्च वहन करते थे. वह जो कपड़ा पहनते थे, उसे तकिया के नीचे रखकर दूसरे दिन फिर पहन लेते थे.
उनकी चुनावी सभा में खूब भीड़ जुटती थी. महिलाएं भी दूर-दूर से इनकी सभा में आते थे. जार्ज चुनाव के दौरान ढाका मोड़ स्थित हरिशंकर सहाय के मकान में रहते थे. चुनाव प्रचार के दौरान लोगों के साथ बैठकर उनके घर का बना सादा भोजन करते थे. अक्सर चुनावी सभा में वह जीना है तो लड़ना सीखो, कदम कदम पर मरना सीखो का नारा बुलंद किया करते थे.
जॉर्ज फर्नांडिस 1984 व 1986 में बांका लोकसभा से चुनाव लड़े, परंतु उन्हें हार का मुंह देखना पड़ा. वे अंतिम बार मनोरमा सिंह से 1986 में चुनाव हार गये थे.

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