भोला बाबू ने चंदे के अनाज से पैसा जुटा लड़ा था चुनाव

गुलशन कश्यप, जमुई : सत्तर के दशक में जहां देशभर में सोशलिस्ट नेताओं का दौर ऐसा था कि हर कोई समाजवाद की विचारधारा से प्रभावित होकर राजनीति कर रहा था. उस दौर में अपने ही धुन में गरीब और पिछड़ों की लड़ाई लड़कर भोला मांझी ने सदन तक का सफर पूरा किया. 1950 के दशक […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | March 23, 2019 4:50 AM

गुलशन कश्यप, जमुई : सत्तर के दशक में जहां देशभर में सोशलिस्ट नेताओं का दौर ऐसा था कि हर कोई समाजवाद की विचारधारा से प्रभावित होकर राजनीति कर रहा था. उस दौर में अपने ही धुन में गरीब और पिछड़ों की लड़ाई लड़कर भोला मांझी ने सदन तक का सफर पूरा किया. 1950 के दशक की शुरुआत के वर्षों में भोला मांझी एक स्कूल में शिक्षक के तौर पर बच्चों को पढ़ाते थे.

जिसके बाद उन्होंने सीपीआई के टिकट पर सर्वप्रथम 1957 में विधानसभा का चुनाव लड़ा. इस चुनाव में उन्हें 17378 वोट मिले और उन्होंने अपने सबसे निकटतम प्रतिद्वंद्वी को 3345 वोट से हरा कर विधानसभा का सफर तय किया.
इसके उपरांत उनके जुझारूपन और वंचितों की लड़ाई में जमुई के लोगों ने भी उनका खूब साथ दिया और वर्ष 1971 में उन्होंने लोकसभा के चुनाव में 162266 वोट मिले और जमुई के सांसद निर्वाचित हुए.
सांसद भोला मांझी के करीबी रहे कैलाश सिंह बताते हैं साठ के दशक के अंतिम दिनों में और 70 के शुरुआती दशक में भोला मांझी के जुझारूपन से प्रभावित होकर जिला प्रशासन ने उन्हें जमीन देने का फैसला किया और तत्कालीन डीसीएलआर ने उन्हें बुलाकर 5 एकड़ जमीन का पर्चा दिया भी था.
पर उन्होंने वह पर्चा यह कह कर फाड़ कर फेंक दिया था कि जब तक सभी भूमिहीन और बेघर लोगों को जमीन नहीं मिल जाती तब तक मैं भी सरकारी जमीन का लाभ नहीं लूंगा. इसके बाद वह जितने दिन सांसद रहे, अपने खपरैल के मकान में ही रहे तथा उनके घर जाने वाले लोगों को बैठने के लिए एक ही खाट की व्यवस्था थी जिस पर बैठकर लोग देर तक चर्चा किया करते थे.
सत्तर के दशक की शुरुआत में सरकार ने की थी पांच एकड़ जमीन की पेशकश
फाड़ कर फेंक दिया था जमीन का पर्चा
किसानों से अनाज इकट्ठा कर किया था चुनाव प्रचार
वर्ष 1971 के आम चुनाव में भोला मांझी के साथी रहे लोग बताते हैं कि उस दौर में भोला बाबु ने किसानों से अनाज चंदा कर चुनाव लड़ा था. वह स्वयं किसानों के पास जाते थे और किसानों से मिलकर उनसे चंदा स्वरूप धान, गेहूं, चावल आदि इकठ्ठा कर उससे जो पैसे मिलते थे उसे ही चुनाव प्रचार पर खर्च किया जाता था.
इसके अलावे भोला मांझी अपने चुनाव प्रचार के लिए टमटम और साइकिल का सहारा लिया करते थे. जब भी उन्हें कहीं जाना होता था तब वह कार्यकर्ताओं के साथ साइकिल पर सवार होकर निकल जाते थे.
इसके अलावा चुनाव प्रचार में लगे कार्यकर्ता अक्सर चूड़ा, गुड़ और चना खाया करते थे, अन्यथा चंदे से इकट्ठा चावल को ही भोजन के तौर पर भी इस्तेमाल किया जाता था.

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