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पटना : जल संकट से निबटने की तैयारी शुरू, 102 प्रखंडों में ग्राउंड वाटर खत्म, बोरिंग पर लगी रोक

पटना : गर्मी शुरू होते ही राज्य के 19 जिलों के 102 प्रखंडों में ग्राउंड वाटर खत्म हो गया है. इनमें सबसे अधिक नालंदा जिले के 11 प्रखंड हैं. सभी जगह चापाकल बंद हो गये हैं और बोरिंग पर रोक लगा दी गयी है. इससे लोगों के सामने पेयजल और सिंचाई का संकट पैदा हो […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | April 28, 2019 7:45 AM
पटना : गर्मी शुरू होते ही राज्य के 19 जिलों के 102 प्रखंडों में ग्राउंड वाटर खत्म हो गया है. इनमें सबसे अधिक नालंदा जिले के 11 प्रखंड हैं. सभी जगह चापाकल बंद हो गये हैं और बोरिंग पर रोक लगा दी गयी है. इससे लोगों के सामने पेयजल और सिंचाई का संकट पैदा हो गया है.
इसके स्थायी समाधान के लिए शुक्रवार को पीएचइडी और लघु जल संसाधन विभाग के वरीय पदाधिकारियों के बीच दो दिवसीय बैठक शुरू हुई. इस बैठक में ग्राउंड वाटर लेवल की कमी वाले पंचायतों में सर्वे करवाने, उसकी रिपोर्ट के आधार पर वहां तालाब, नहर, कुआं आदि बनवाकर ग्राउंड वाटर के रिचार्ज करवाने संबंधी व्यवस्थाओं पर विचार-विमर्श हुआ.
दोनों दिनों की बैठक के निष्कर्षों को 29 अप्रैल को मुख्य सचिव के सामने रखा जायेगा. उनसे विचार-विमर्श और अनुमति के बाद ग्राउंड वाटर लेवल बढ़ाने के उपायों पर काम शुरू हो सकेगा. सूत्रों का कहना है कि ग्राउंड वाटर लेवल को लेकर राज्य के 19 जिलों के 102 ब्लॉक क्रिटिकल जोन में हैं. इनमें से अधिकतर स्थानों में ग्राउंड वाटर सूख चुका है. जहां कहीं बचा भी है तो बहुत कम मात्रा में बचा है. ऐसे में यदि वहां से पानी निकाला गया तो उसका फिर से रिचार्ज करना मुश्किल होगा. वहीं, राज्य में अब तक ग्राउंड वाटर लेवल मैनेजमेंट की कोई पॉलिसी नहीं रहने के कारण जल संरक्षण और ग्राउंड वाटर रिचार्ज पर काम नहीं हो रहा है.
19 जिले के 102 ब्लॉक हैं क्रिटिकल जोन में
क्रिटिकल जोन वाले 102 प्रखंड जिन 19 जिलों में हैं, उनमें बेगूसराय, भोजपुर, बक्सर, पूर्वी चंपारण, गया, गोपालगंज, जहानाबाद, कटिहार, मधेपुरा, मुजफ्फरपुर, नालंदा, नवादा, पटना, पूर्णिया, समस्तीपुर, सारण, सीतामढ़ी, सीवान और वैशाली जिले शामिल हैं. वहां बाेरिंग करने की मनाही है.
राज्य में 13 वर्षों से 400 से 700 मिमी तक कम हो रही बारिश
मौसम विभाग के आंकड़े बताते हैं कि राज्य में पिछले 13 वर्षों से औसत बारिश 800 मिमी से थोड़ी अधिक हो रही है. वहीं डेढ़ दशक पहले राज्य में 1200 से 1500 मिमी बारिश होती थी. इस तरह बारिश में कमी होने से सिंचाई व पेयजल के लिए ग्राउंड वाटर पर निर्भरता बढ़ी है. साथ ही कम बारिश होने से जमीन के अंदर कम पानी जा रहा है. ऐसे में जमीन के नीचे से जितनी मात्रा में पानी निकाला जा रहा है, उतनी मात्रा में उसकी भरपाई नहीं हो पा रही है.
ग्राउंड वाटर के लिए बने नीति
पर्यावरणविद व तरुमित्रा के निदेशक फादर रॉबर्ट एथिकल कहते हैं कि आम धारणा यह है कि बिहार में जमीन के अंदर पानी की भरमार है. सच यह है कि बारिश की कमी से सिंचाई और पेयजल के लिए ग्राउंड वाटर पर निर्भरता बढ़ी है. उसका दोहन हाे रहा है. इससे ग्राउंड वाटर लेवल में लगातार कमी हो रही है. इस विषय पर राज्य सरकार को नीति बनाकर काम करना चाहिए और लोगों को जागरूक करना चाहिए.
ग्राउंड वाटर मैनेजमेंट के लिए बन रही है नीति
आधिकारिक सूत्रों का कहना है कि राज्य में फिलहाल ग्राउंड वाटर लेवल मैनेजमेंट पॉलिसी नहीं है, लेकिन इसे बनाने की प्रक्रिया शुरू हो गयी है. इसका ड्राफ्ट तैयार हो चुका है और लोकसभा चुनाव बाद विधानसभा और विधान परिषद के सत्र में इससे संबंधी विधेयक पेश किया जायेगा. वहां से पास होकर राज्यपाल से अनुमति के बाद यह राज्य की नीति बन जायेगी. इसके बाद सरकार के निर्देशों और देखरेख में ग्राउंड वाटर लेवल के रिचार्ज की कार्ययोजना पर काम शुरू होगा.
क्या है ड्राफ्ट में
– पेयजल और सिंचाई की बाेरिंग के लिए पीएचइडी विभाग की अनुमति आवश्यक होगी.
– किसी जगह पर बोरिंग से पानी निकालने की मात्रा भी वहां के अनुसार तय होगी.
– तय सीमा से अधिक पानी निकालने पर जुर्माना और सजा का प्रावधान भी रखा गया है.
– ग्राउंड वाटर रिचार्ज के लिए रेन वाटर हार्वेस्टिंग सिस्टम बनाया जायेगा.
– टेलीमेटरी जैसे उपकरण से सरकार के वरीय अधिकारी पूरी व्यवस्था पर निगरानी रखेंगे.

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