महागठबंधन की प्रतिष्ठा दांव पर, सातवें चरण की नालंदा व काराकाट सीटों का हाल
पटना : सातवें चरण में नालंदा व काराकाट लोकसभा क्षेत्रों का चुनाव महागठबंधन के लिए प्रतिष्ठा बनी हुई है. पिछले लोकसभा चुनाव में मोदी लहर के बावजूद नालंदा से जदयू के कौशलेंद्र कुमार चुनाव जीत गये थे.जबकि, भाजपा-जदयू अलग-अलग होकर चुनाव लड़े थे. इस बार भाजपा-जदयू एक साथ चुनाव लड़ रहे हैं. दूसरी तरफ काराकाट […]
पटना : सातवें चरण में नालंदा व काराकाट लोकसभा क्षेत्रों का चुनाव महागठबंधन के लिए प्रतिष्ठा बनी हुई है. पिछले लोकसभा चुनाव में मोदी लहर के बावजूद नालंदा से जदयू के कौशलेंद्र कुमार चुनाव जीत गये थे.जबकि, भाजपा-जदयू अलग-अलग होकर चुनाव लड़े थे. इस बार भाजपा-जदयू एक साथ चुनाव लड़ रहे हैं. दूसरी तरफ काराकाट से रालोसपा के उपेंद्र कुशवाहा ने जीत हासिल की थी. पिछले चुनाव में उपेंद्र कुशवाहा एनडीए के साथ थे.
इस बार एनडीए से अलग होकर महागठबंधन के साथ हैं. उनका मुकाबला जदयू के महाबली सिंह से है. काराकाट की सीट पर मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की विशेष नजर है. ऐसे में नालंदा व काराकाट सीट को लेकर महागठबंधन की प्रतिष्ठा दांव पर है.
चुनाव में नहीं शामिल होते बड़े दल : 2009 व 2014 के लोकसभा चुनाव में नालंदा से कोई बड़े दल अपने उम्मीदवार नहीं खड़ा कर रहा है. बड़े दल चुनाव लड़ने से बचती रही है. पिछले चुनाव में भी भाजपा ने जिले में सांगठनिक रूप से कमजोर लोजपा को यह सीट दे दी थी. लोजपा के सत्यानंद शर्मा करीब नौ हजार वोट से हार गये थे. 2009 में भी लोजपा के सतीश कुमार को हार का सामना करना पड़ा था.
इस बार महागठबंधन की ओर से राजद-कांग्रेस ने जिले में सांगठनिक रूप से कमजोर हिंदुस्तानी अवाम मोर्चा के प्रत्याशी अशोक कुमार आजाद को मैदान में उतारा है. चुनाव में पिछड़े वर्ग के वोटर तुरुप के पत्ते साबित हो सकते हैं. चुनाव में माय समीकरण के छिटकने की संभावना कम है. दोनो पार्टियां अतिपिछड़ी जातियों को गोलबंद करने में जुटी हैं.
सीट बचानी चुनौती
2014 के चुनाव में मोदी लहर के बीच चुनाव जीतने वाले उपेंद्र कुशवाहा के लिए इस बार अपनी सीट बचा पानी बड़ी चुनौती है. पिछली बार कुशवाहा के साथ भाजपा व लोजपा का समर्थन था. उन्होंने राजद प्रत्याशी कांति सिंह को हराया था. इस बार उपेंद्र कुशवाहा महागठबंधन के साथ हैं. 2009 में एनडीए से ही जदयू के टिकट पर महाबली सिंह जीते थे.
2014 के चुनाव में भी जदयू के टिकट पर लड़े परन्तु उन्हें लगभग 76 हजार 709 वोट मिले थे. यहां लड़ाई सीधे तौर पर एनडीए व महागठबंधन के बीच सिमटती जा रही है. दोनों ही प्रत्याशियों के लिए अपने-अपने कुनबे के वोटरों को अपने पाले में बनाये रखने की बड़ी चुनौती है.