एनडीए का सवर्ण-पिछड़ा-अतिपिछड़ा कार्ड हुआ हिट

मिथिलेशपटना : पांच साल पहले कांग्रेस के खिलाफ आक्रोश की आयी लहर में एनडीए को मिली सीटों का रिकार्ड इस बार टूट गया. 2014 के लोकसभा चुनाव में मिली जीत से भारी रही इस जीत के पीछे एनडीए के पक्ष में अति पिछड़ी जातियों का आना रहा. एनडीए के मतों में करीब 10 प्रतिशत का […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | May 24, 2019 6:38 AM

मिथिलेश
पटना :
पांच साल पहले कांग्रेस के खिलाफ आक्रोश की आयी लहर में एनडीए को मिली सीटों का रिकार्ड इस बार टूट गया. 2014 के लोकसभा चुनाव में मिली जीत से भारी रही इस जीत के पीछे एनडीए के पक्ष में अति पिछड़ी जातियों का आना रहा. एनडीए के मतों में करीब 10 प्रतिशत का इजाफा होना इस बात को दर्शाता है कि जिस वोट को लालू प्रसाद कभी जिन्न का नाम देते रहे, वह जिन्न इस बार भाजपा और एनडीए की झोली में आ गिरा.

सवर्ण मतदाताओं के झुकाव के साथ ही पिछड़ी और अति पिछड़ी जातियों की एनडीए के पक्ष में गोलबंदी ने पुराने सारे रिकार्ड धवस्त कर दिया. रालोसपा के अलग होने का एनडीए को कोई नुकसान नहीं हुआ, बल्कि जदयू के साथ आने से एनडीए कुनबा और ताकतवर हो गया.
भाजपा के साथ जहां सवर्ण तबका बना रहा, वहीं जदयू के साथ आने से पिछड़ा, अति पिछड़ा वर्ग के वोट भी एनडीए के साथ हो लिये. लोजपा ने दलित वोटरों को बांधे रखा. 2014 में राज्य की 40 सीटों में एनडीए को 32 सीटें मिली थीं.
यह वोटों की ताकत ही रही, जिसके चलते इस बार 40 में 39 सीटों पर एनडीए का परचम लहराया. मालूम हो कि आपातकाल के बाद हुए 1977 के आम चुनाव में कांग्रेस को एक भी सीट नहीं मिली थी. इस बार विपक्ष चारों खाने चित हुआ, एकमात्र किशनगंज की सीट कांग्रेस को मिल पायी.
पिछड़ा-अति पिछड़ी जाति के थे 19 उम्मीदवार,
एनडीए ने सवर्ण तबके के 13 उम्मीदवारों को चुनाव मैदान में उतारा था. इनमें सात राजपूत, दो ब्राह्मण, एक कायस्थ और तीन भूमिहार उम्मीदवार थे. वहीं, अन्य पिछड़ी जाति के 12 उम्मीदवार उतारे गये. इनमें वोट के लिहाज से सशक्त माने जाने वाली यादव जाति के पांच, कुशवाहा से तीन और वैश्य से तीन और कुर्मी जाति से एक को उम्मीदवार बनाया गया.
इसी प्रकार अति पिछड़ी वर्ग की छोटी-छाेटी जातियों को भी मौका दिया गया. इस वर्ग के सात उम्मीदवारों में एक धानुक, एक केवट, एक गंगेय, एक गोसाई, एक निषाद, एक गंगोता और एक चंद्रवशी जाति के उम्मीदवार थे. चुनाव में एनडीए का यह कार्ड हिट रहा.
पड़ोसी राज्य यूपी और झारखंड में भी रहा कारगर
यह समीकरण न सिर्फ बिहार में, बल्कि पड़ोस के यूपी और झारखंड में भी छोटी-छोटी जातियों की समूहों ने भाजपा और एनडीए का साथ दिया. नीतीश कुमार की साफ-सुथरी छवि भी मतदाताओं के लिए आकर्षण का केंद्र बनी रही.
नव सामंतवाद की मार से पीड़ित कहीं पचपनिया तो कही पचफोरना के नाम से प्रचलित इन जातियों के समूहों ने नरेंद्र मोदी के नाम पर वोट किया, जिसके कारण दर्जन भर से अधिक सीटों पर एनडीए के उम्मीदवार दो लाख से अधिक मतों से चुनाव जीतने में सफल रहे.
दरका राजद का माय समीकरण
2014 के चुनाव में जदयू और भाजपा अलग-अलग चुनाव लड़े थे. इस बार दोनों ही दलों के साथ आने से राजद का माय समीकरण दरक गया. रही सही कसर यादव जाति के युवाओं और अल्पसंख्यक मतों में एनडीए की सेंधमारी ने पूरी कर दी. यही कारण रहा कि जहां कांटे की टक्कर की बात कही जा रही थी, उन सीटों पर भी एनडीए के उम्मीदवारों को भारी मतों से जीत मिली.
इस चुनाव में राजद आरक्षण समाप्त करने का भाजपा और एनडीए पर आरोप लगा रहा था, जबकि वोट के तौर पर सशक्त मानी जाने वाली अति पिछड़ी जातियों का मन-मिजाज अलग रास्ते पर जाता दिखा. सवर्ण मतदाताओं का झुकाव पहले ही भाजपा और एनडीए के पक्ष में दिख रहा था. साथ में पिछड़ी और अति पिछड़ी जातियों के वोट आने से जीत भारी जीत में बदल गयी.

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