39 सीटें, छह मंत्री पद, बिहार में बड़ी जीत पर कम हिस्सेदारी

पटना : लोकसभा चुनाव में एनडीए को बिहार में अब तक की सबसे बड़ी जीत हासिल हुई, पर उस अनुपात में केंद्र में भागीदारी नहीं मिली. दूसरी बार प्रधानमंत्री बने नरेंद्र मोदी ने अपने कैबिनेट में बिहार से छह मंत्रियों को जगह देकर सभी वर्गों को साधने की कोशिश की है. लेकिन, जदयू को लोजपा […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | May 31, 2019 4:38 AM

पटना : लोकसभा चुनाव में एनडीए को बिहार में अब तक की सबसे बड़ी जीत हासिल हुई, पर उस अनुपात में केंद्र में भागीदारी नहीं मिली. दूसरी बार प्रधानमंत्री बने नरेंद्र मोदी ने अपने कैबिनेट में बिहार से छह मंत्रियों को जगह देकर सभी वर्गों को साधने की कोशिश की है. लेकिन, जदयू को लोजपा के बराबर सिर्फ एक मंत्री पद का प्रस्ताव बिहार को खटक गया. 40 में से 39 सीटें जीतकर एनडीए को ताकत देने वाले बिहार के हिस्से में छह मंत्री आये.

कट्टर हिंदूवादी चेहरा गिरिराज सिंह को जहां प्रमोशन देकर उन्हें कैबिनेट मंत्री बनाया गया. वहीं, मोदी-1 सरकार में कृषि मंत्री रहे राधामोहन सिंह को कैबिनेट में जगह नहीं मिली. केंद्रीय मंत्रिमंडल में कोसी, चंपारण और मगध की भागीदारी नहीं हुई.
एनडीए में भाजपा के दूसरे सबसे बड़े सहयोगी दल जदयू का कोई मंत्री नहीं बना है. इस बार के चुनाव में जदयू ने 19 सीटें जीती हैं. बिहार में भाजपा की तरह 100% स्ट्राइक रेट यानी छह में छह सीटें जीतने वाली लोजपा के हिस्से में महज एक मंत्री पद आया है. प्रदेश में 17 सीटों पर कब्जा करने वाली भाजपा के पांच मंत्री बनाये गये.
बिहार को उम्मीद थी कि करीब 10 साल बाद बिहार के हिस्से में रेल मंत्रालय आ सकता है. जदयू के खाते में रेल मंत्रालय जाने के कयास लग रहे थे. 2004 में यूपीए-1 सरकार में अंतिम बार लालू प्रसाद रेल मंत्री बने थे. वह 2009 तक इस पद पर रहे. यूपीए-2 सरकार में राजद के एक भी मंत्री नहीं बने.
मोदी की पहली सरकार में बिहार से थे आठ मंत्री
2014 में बनी नरेंद्र मोदी की पहली सरकार में बिहार से रविशंकर प्रसाद, राधामोहन सिंह, गिरिराज जtसिंह, आरके सिंह, रामकृपाल यादव, अश्विनी चौबे, रालोसपा से उपेंद्र कुशवाहा और लोजपा से रामविलास पासवान मंत्री थे.
इस बार एनडीए के तीनों घटक दल भाजपा,जदयू और लोजपा के बीच सीटों के बंटवारे के समय से ही यह प्रतीत हो रहा था कि केंद्र में सरकार बनने की स्थिति में तीनों दलों की मजबूत भागीदारी होगी. यह पहला मौका है, जब जदयू एनडीए का हिस्सा है, केंद्र में एनडीए की सरकार बनी और वह बाहर रहा.
बाबू जगजीवन राम के जमाने से रेल मंत्रालय पर बिहार का रहा है एकाधिकार : 2009 की यूपीए-2 सरकार को छोड़ दिया जाये तो केंद्र की कमोवेश सभी सरकारों में बिहार की दमदार मौजूदगी रही. बाबू जगजीवन राम के जमाने से बिहार से कई रेल मंत्री हुए. बाबू जगजीवन राम के बाद रामसुभग सिंह, जाॅर्ज फर्नांडीस, रामविलास पासवान, नीतीश कुमार और लालू प्रसाद ने रेल मंत्रालय को संभाला.
मोदी -1 का फाॅर्मूला लागू होता तो बिहार से होते 10 मंत्री
मोदी-1 सरकार में सरकार में शामिल होने के लिए चार-एक का फाॅर्मूला पर अमल हुआ था. इसके तहत चार सांसद होने पर उस दल को एक कैबिनेट मंत्री पद दिया गया था. उससे कम सांसदों की संख्या होने पर सहयोगी दलों को एक राज्यमंत्री का पद दिया गया था. बिहारवासियों को उम्मीद थी कि भाजपा इस बार भी इसी फाॅर्मूले पर अमल करेगी.
इससे बिहार को तीनों दलों को मिलाकर कम-से-कम 10 मंत्री मिले होते. जदयू के खाते में भी चार मंत्री पद होते. लोकसभा चुनाव में भाजपा और एनडीए ने केंद्र और राज्य में डबल इंजन की सरकार का नारा दिया था. आम बिहारवासियों को ऐसा प्रतीत हो रहा था कि केंद्र और राज्य में एक ही गठबंधन की सरकार होने से पिछड़ेपन का दंश झेल रहे बिहार को केंद्र की अधिक सहायता मिल पायेगी. अधिक मंत्री पद मिलने से विकास का दायरा भी बढ़ेगा.

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