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विश्व पर्यावरण दिवस पर विशेष: अब भी नहीं चेते तो स्वच्छ हवा-पानी के लिए तरसेंगे

पटना : निरंतर घटता जंगल, भू जल और बरसात ने पटना की पर्यावरणीय दशा को असंतुलित कर दिया है. इसके साथ ही बढ़ता तापमान और शहर में लाखों टन डंप कचरे ने पर्यावरण को और जटिल बना डाला है. यही वजह है कि साठ के दशक में 43 फीसदी वन क्षेत्र वाला पटना जिला अब […]

पटना : निरंतर घटता जंगल, भू जल और बरसात ने पटना की पर्यावरणीय दशा को असंतुलित कर दिया है. इसके साथ ही बढ़ता तापमान और शहर में लाखों टन डंप कचरे ने पर्यावरण को और जटिल बना डाला है.

यही वजह है कि साठ के दशक में 43 फीसदी वन क्षेत्र वाला पटना जिला अब एक फीसदी हरियाली के लिए तरस रहा है. शहर की ‘लाइफ लाइन’ माने जाने वाले बेली रोड इस समय शहर के सबसे गर्म जोन में शुमार हो गया है. पीएम 2.5 और पीएम 10 के अलावा ओजोन ने भी पर्यावरण को सीधे तौर पर प्रभावित किया है. सौर विकिरण भी इन दिनों चरम पर है.

विशेषज्ञ इन पर्यावरणीय जटिलताओं की सबसे प्रमुख वजह शहर की तेजी से बढ़ती आबादी बताते हैं. बिहार में प्रति वर्ग किमी आबादी की सघनता 1106 है, जो राष्ट्रीय सघनता के आंकड़े 382 व्यक्ति प्रति वर्ग किमी से तीन गुना से अधिक है. हालत यह है कि करीब चालीस लाख टन कचरा शहर के अंदर ही डंप हो चुका है.

शहर के जाने माने पर्यावरण विद मेहता नागेंद्र सिंह बताते हैं कि सरकारी मशीनरी को निष्पक्ष रवैया अपनाते हुए प्रदूषण के जिम्मेदार लोगों पर सख्ती करनी होगी. खासतौर पर शहर से पुराने वाहनों को बाहर किये बिना पर्यावरण में सुधार नहीं होगा. बिना नया ग्रीन बेल्ट विकसित किये पुराने ग्रीन बेल्ट उजाड़ने की कवायद शहर को महंगी पड़ेगी.

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