काला हिरन, चौसिंगा, चिंकारा भी हो जायेंगे आंखों से ओझल!
आबादी के बढ़ते बोझ से वन्य प्राणियों पर संकट बिहार में प्रति वर्ग किलोमीटर आबादी की सघनता राष्ट्रीय औसत से तीन गुनी अधिक पटना : बिहार में वन्य प्राणियों को बचाने के लिए कोई ठोस कार्य योजना व वैज्ञानिक अध्ययन नहीं है. यही वजह है कि प्रदेश के कुछ इलाकों में थोड़े बहुत बचे काला […]
आबादी के बढ़ते बोझ से वन्य प्राणियों पर संकट
बिहार में प्रति वर्ग किलोमीटर आबादी की सघनता राष्ट्रीय औसत से तीन गुनी अधिक
पटना : बिहार में वन्य प्राणियों को बचाने के लिए कोई ठोस कार्य योजना व वैज्ञानिक अध्ययन नहीं है. यही वजह है कि प्रदेश के कुछ इलाकों में थोड़े बहुत बचे काला हिरन, चौसिंगा, पाइथन सांप, चिंकारा, उदबिलाव जैसे अद्भुत जीव भी तेजी से संकटग्रस्त हो चले हैं.
इन जीवों के संकटग्रस्त होने की वजह पर्यावरणीय नहीं है. इसकी इकलौती वजह केवल आबादी की बढ़ती सघनता है. बिहार में प्रति वर्ग किलोमीटर आबादी की सघनता 1106 है, जो राष्ट्रीय सघनता के आंकड़े 382 व्यक्ति प्रति वर्ग किलोमीटर से तीन गुना से अधिक है.
आदमी ने सीधे जंगली जीवों के प्ले ग्राउंड पर अपने चूल्हे पहुंचा दिये हैं, ऐसे में जीव को धरती छोड़ने के अलावा कोई विकल्प नहीं बचता है.
रहवासों में आयी है कमी : आधिकारिक जानकारी के मुताबिक जंगल और रेवेन्यू फॉरेस्ट में आम आदमी का दखल तेजी से बढ़ा है. यही वजह है कि बक्सर, कैमूर, सासाराम, आरा और शाहाबाद में इन जीवों की संख्या काफी अधिक थी, पर अब ये केवल कुछ ही बचे हैं. इनकी संख्या में कमी की वजह शिकार नहीं है, बल्कि इनके रहवासों में कमी आना है.
दो दशक पहले तक काला हिरण पटना तक देखा जाता था. चौसिंगा जो कैमूर, बेतिया, बक्सर और पटना तक देखा जाता था, अब केवल बेतिया में इसके होने के प्रमाण मिले हैं. इन्हें कैमरा ट्रैपिंग में देखा गया. राज्य पक्षी गौरैया, डॉल्फिन,घड़ियाल और कटहवा कछुआ (सॉफ्ट शेल टर्टर) वरुण पक्षी सहित सभी बड़े जंगली जानवर, बाघ से लेकर तेंदुआ तक बिहार के संदर्भ में विलुप्तप्राय की श्रेणी में आ चुके हैं. हालांकि डॉल्फिन और टाइगर और कुछ अन्य जीवों की संरक्षण योजना से इन्हें किसी तरह बचाया जा सका है. हालांकि ये प्रजातियां संकटग्रस्त मानी गयी हैं.
इस तरह बढ़ रहा संकट
– बिहार में पटना सहित सभी नदियों से अब भी लगातार कछुओं का अवैध कारोबार हो रहा है.
– सांपों की भी स्मगलिंग की जा रही है.
– घड़ियाल और डॉल्फिन पर अवैध खनन से खतरा है, लेकिन सरकारी एजेंसियां चुप्पी साधे हुए हैं.
अंधेरे में रोशनी की उम्मीद
डॉल्फिन विलुप्तप्राय जलीय जीव है, लेकिन बिहार की नदियों में इनकी संख्या समूचे भारत की आधी है. पूरे देश में करीब तीन हजार से अधिक डॉल्फिन हैं. इसमें गंगा और सहायक नदियों में 1548 डॉल्फिन पायी गयी हैं. इस बिहार के जलीय जीव वैज्ञानिक बड़ी सफलता मान रहे हैं.
आबादी के बढ़ते बोझ से जंगली जीव संकट ग्रस्त होते जा रहे हैं. बिहार की वाइल्ड लाइफ बेहद समृद्ध रही है, लेकिन आम आदमी के बढ़ते दखल ने तेजी से परिदृश्य बदला है. अगर हम नहीं चेते, तो वाइल्ड लाइफ को देखने के लिए तरस जायेंगे.
चंद्रशेखर, वाइल्ड लाइफ एक्सपर्ट
इसमें कोई शक नहीं है कि कुछ जंगली जीवों पर संकट है. हालांकि इनके संरक्षण की दिशा में वैज्ञानिक अध्ययन किया जा रहा है. सरकार इस दिशा में गंभीर है. जल्द ही बिहार में गैंडा की खास प्रजाति यहां के जंगलों में छोड़ी जायेगी. ये वल्नरेबल (विलुप्त प्राय से पहले की स्टेज) जंगली जीव हैं. इनकी संख्या 2030 तक पांच फीसदी बढ़ाने का लक्ष्य है.
एके पांडेय, चीफ वाइल्ड लाइफ वार्डन, बिहार