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पटना : 334 पंचायतों में ढाई महीने में एक से 12 फुट नीचे चला गया ग्राउंड वाटर
सबसे खराब हालत लखीसराय जिले की दो पंचायतों की पटना : राज्य के 28 जिलों के 334 पंचायतें ग्राउंड वाटर लेवल के मामले में क्रिटिकल जोन में शामिल हैं. इन पंचायतों के ग्राउंड वाटर लेवल में पिछले ढाई महीने के दौरान एक 12 फुट तक की कमी आयी है. सरकार ने वहां बोरिंग करने की […]
सबसे खराब हालत लखीसराय जिले की दो पंचायतों की
पटना : राज्य के 28 जिलों के 334 पंचायतें ग्राउंड वाटर लेवल के मामले में क्रिटिकल जोन में शामिल हैं. इन पंचायतों के ग्राउंड वाटर लेवल में पिछले ढाई महीने के दौरान एक 12 फुट तक की कमी आयी है. सरकार ने वहां बोरिंग करने की मनाही की है. यह रिपोर्ट पीएचइडी के टेलीमेटरी (ग्राउंड वाटर लेवल नापने का उपकरण) ने जारी किया है. इसके अनुसार सबसे खराब हालत लखीसराय जिले की दो पंचायतों की है, यहां 15 मार्च से 31 मई के दौरान ग्राउंड वाटर लेवल 12 फुट नीचे चला गया है.
लघु जल संसाधन विभाग के अाधिकारिक सूत्रों ने कहा कि राज्य में भू-जलस्तर की गिरावट रोकने संबंधी उपाय करने की नीति अभी नहीं है. इसे बनाये जाने की प्रक्रिया शुरू है. विभाग के आधिकारिक सूत्रों ने बताया कि राज्य सरकार ने सभी 534 प्रखंडों में भूजलस्तर की निगरानी के लिए टेलीमेटरी लगाने का निर्देश दिया था. कुछ जिला मुख्यालय में भी यह उपकरण लगना था.
कुल मिलाकर 571 उपकरण लगने थे. लेकिन, अब तक 486 लगे हैं. इससे लघु जल संसाधन विभाग और पीएचइडी को लगातार आंकड़े मिल रहे हैं. इन आंकड़ों पर लगातार विचार-विमर्श हो रहा है. किसी प्रखंड से अधिक गिरावट की रिपोर्ट मिलने पर वहां विशेष निगरानी और व्यवस्था के लिए स्थानीय प्रशासन को सचेत किया जाता है.
जल संरक्षण की नीति के ड्राफ्ट में ये हैं शामिल
पेयजल और सिंचाई की बाेरिंग के लिए पीएचइडी की अनुमति आवश्यक होगी.
किसी जगह पर बोरिंग से पानी निकालने की मात्रा भी वहां के अनुसार तय होगी.
तय सीमा से अधिक पानी निकालने पर जुर्माना और सजा का प्रावधान भी रखा गया है.
ग्राउंड वाटर रिचार्ज के लिए रेन वाटर हार्वेस्टिंग सिस्टम बनाया जायेगा.
टेलीमेटरी जैसे उपकरण से सरकार के वरीय अधिकारी पूरी व्यवस्था पर निगरानी रखेंगे.
पांच सालों की बारिश का आंकड़ा
वर्ष बारिश की मात्रा सामान्य से कम
2014 849.3 मिमी 17%
2015 744.7 मिमी 27%
2016 971.6 मिमी 05%
2017 936.8 मिमी 9%
2018 771.3 मिमी 25%
पेयजल संकट और सूखे जैसे हालात
विशेषज्ञों का कहना है कि बारिश और कई हिस्सों में ग्राउंड वाटर लेवल में कमी होने से खेती व पेयजल के लिए गंभीर संकट व फिर सूखे जैसे हालात पैदा होने की आशंका है. पिछले साल भी कम बारिश होने से राज्य के ज्यादे हिस्से सूखाग्रस्त घोषित किये गये थे. यहां 534 में से 280 प्रखंडों में सूखे के हालात थे.
ग्राउंड वाटर को बने नीति : पर्यावरणविद व तरुमित्रा के निदेशक फादर रॉबर्ट एथिकल कहते हैं कि आम धारणा यह है कि बिहार में जमीन के अंदर पानी की भरमार है. सच यह है कि बारिश की कमी से सिंचाई और पेयजल के लिए ग्राउंड वाटर पर निर्भरता बढ़ी है.
उसका दोहन हाे रहा है. इससे ग्राउंड वाटर लेवल में लगातार कमी हो रही है. इस विषय पर राज्य सरकार को नीति बनाकर काम करना चाहिए और लोगों को जागरूक करना चाहिए.
अन्य जिलों की हालत
सूत्रों का कहना है कि दूसरे नंबर पर गया जिले में क्रिटिकल जोन में शामिल 33 पंचायत हैं. यहां 15 मार्च से 31 मई के दौरान ग्राउंड वाटर लेवल नौ फुट नीचे चला गया.
वहीं सीतामढ़ी जिले के 10 पंचायतों में छह फुट, जमुई जिले के आठ पंचायतों में पांच फुट नौ इंच, औरंगाबाद जिले में 17 पंचायतों में पांच फीट, पटना पश्चिम जिले में पांच फुट, बांका जिले के दो पंचायतों में चार फुट, मुजफ्फरपुर जिले के 17 पंचायतों में चार फुट, समस्तीपुर जिले के 11 पंचायतों में चार फुट, दरभंगा जिले के 11 पंचायतों के ग्राउंड वाटर लेवल में चार फुट की कमी आयी है.
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