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पटना : दस सालों में कोई राज्यपाल पूरा नहीं कर पाये अपना टर्म, जानें फागू चौहान के बारे में

मिथिलेश फागू चौहान बिहार के राज्यपाल, लालजी गये मध्य प्रदेश नयी दिल्ली : चार राज्यों में शनिवार को नये राज्यपाल नियुक्त किये गये, जबकि दो का तबादला किया गया. राष्ट्रपति भवन के अनुसार फागू चौहान बिहार के नये राज्यपाल होंगे़ वहीं, प्रख्यात वकील व पूर्व सांसद जगदीप धनखड़ को पश्चिम बंगाल का राज्यपाल नियुक्त किया […]

मिथिलेश
फागू चौहान बिहार के राज्यपाल, लालजी गये मध्य प्रदेश
नयी दिल्ली : चार राज्यों में शनिवार को नये राज्यपाल नियुक्त किये गये, जबकि दो का तबादला किया गया. राष्ट्रपति भवन के अनुसार फागू चौहान बिहार के नये राज्यपाल होंगे़ वहीं, प्रख्यात वकील व पूर्व सांसद जगदीप धनखड़ को पश्चिम बंगाल का राज्यपाल नियुक्त किया गया है़ रमेश बैस को त्रिपुरा और आरएन रवि को नगालैंड का राज्यपाल बनाया गया है़
बिहार के वर्तमान राज्यपाल लालजी टंडन का स्थानांतरण मध्य प्रदेश किया गया है़ मध्यप्रदेश की राज्यपाल आनंदी बेन पटेल को उत्तर प्रदेश की जिम्मेवारी मिली है़ मालूम हो कि उत्तर प्रदेश के वर्तमान राज्यपाल राम नाईक, पश्चिम बंगाल के गवर्नर केसरीनाथ त्रिपाठी, ित्रपुरा के राज्यपाल कप्तान िसंह साेलंकी और नगालैंड के राज्यपाल पद्मनाभ आचार्य का कार्यकाल समाप्त हो रहा है.
बिहार के नये राज्यपाल फागु चौहान उत्तर प्रदेश पिछड़ा वर्ग आयोग के चेयरमैन और छह बार विधायक रह चुके हैं. चौहान का जन्म आजमगढ़ जिले में एक जनवरी, 1948 को हुआ था. वह पहली बार 1985 में विधायक बने थे.
पटना : राज्य के हाल के दस वर्षों में नियुक्त एक भी राज्यपाल अपना निर्धारित कार्यकाल पूरा नहीं कर पाये. 2003 से देखा जाये तो इन सोलह सालों में 14 राज्यपाल बदल दिये गये. फागू चौहान पंद्रहवें राज्यपाल होंगे.
एकमात्र देवानंद कुंअर और वीसी पांडे ऐसे राज्यपाल हुए, जिन्होंने अपना निर्धारित कार्यकाल पूरा किया. महात्मा गांधी के परपोते गोपाल कृष्ण गांधी से मौजूदा राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद भी राज्यपाल के कार्यकाल की पूरी अवधि यहां नहीं बीता पाये.
हालांकि, पिछले पंद्रह सालों में एक भी मौका ऐसा नहीं आया जब राजभवन और सरकार आमने-सामने खड़ी रही हो. बावजूद राज्यपालों ने बिहार में अपना कार्यकाल पूरा नहीं किया. 2014 के बाद से केंद्र की भाजपा सरकार ने बिहार में पांच राज्यपालों की नियुक्ति की, वे सब यूपी के मूल निवासी रहे. खास यह कि 2004 से 2014 में नयी सरकार बनने तक तत्कालीन कांग्रेसी सरकार ने बिहार में सात राज्यपाल नियुक्त किये.
जबकि, 2014 के बाद से अब तक पांच सालों में बिहार ने छह राज्यपालों को देखा, जिसमें केसरीनाथ त्रिपाठी को दोबारा तीन महीने से अधिक समय तक एक्टिंग राज्यपाल के रूप में भी कार्य करना पड़ा. पूर्व पीएम अटल बिहारी बाजपेयी के करीबी रहे लालजी टंडन को 23 अगस्त, 2018 को प्रदेश का राज्यपाल बनाया गया था.
इनके ठीक पहले यूपी से आने वाले पूर्व केंद्रीय मंत्री सतपाल मलिक को चार सितंबर,2017 को प्रदेश का राज्यपाल मनोनीत किया गया था. करीब 12 महीने बाद ही उन्हें यहां से हटा कर जम्मू और कश्मीर का राज्यपाल बना दिया गया. इनके पहले आये केसरी नाथ त्रिपाठी, जिन्हें दो बार प्रदेश के राज्यपाल रहने का अवसर मिला. कुल मिला कर करीब 13 महीने उनका कार्यकाल रहा. सबसे महत्वपूर्ण कार्यकाल वर्तमान राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद का रहा.
कोविंद 16 अगस्त, 2015 को बिहार के राज्यपाल बनाये गये. राष्ट्रपति पद के लिए चुन लिये जाने के कारण उन्होंने 21 जून, 2017 को अपना इस्तीफा सौंप दिया. उनके पहले जून 2009 में डीवाइ पाटिल प्रदेश के राज्यपाल बनाये गये. यह केंद्र के कांग्रेसी शासन का अंतिम समय था. पाटिल यहां करीब 20 महीना रहे और 26 नवंबर, 2014 तक प्रदेश के राज्यपाल रहे. कांग्रेसी शासनकाल में ही असम के देवानंद कुंअर भी राज्यपाल बनाये गये. उनका कार्यकाल साढ़े तीन साल से भी अधिक रहा. पंजाबी मूल के रघुनंदन लाल भाटिया को 10 जुलाई,2008 को बिहार का राज्यपाल बनाया गया. वे करीब 11 महीने यहां राज्यपाल रहे और 28 जून, 2009 को उनका तबादला हो गया.
गवई रहे पचीस महीने
महाराष्ट्र के चर्चित नेता आरएस गवई को पचीस महीने बिहार के राज्यपाल रहने का अवसर मिला. उनकी नियुक्ति 22 जून,2006 को हुई और नौ जुलाई,2008 को बदल दिये गये. गोपाल कृष्ण गांधी को 31 जनवरी, 2006 को बिहार का राज्यपाल बनाया गया था, लेकिन छह माह बाद ही उन्हें 21 जून को यहां से मुक्त कर दिया गया.
पूर्व केंद्रीय गृह मंत्री रहे बूटा सिंह 14 महीने, वेद प्रकाश मारवाह महज पांच दिन एक्टिंग राज्यपाल रहे. वहीं, एमआर जोएस 16 महीने और वीसी पांडे साढ़े तीन साल से अधिक दिनों तक प्रदेश के राज्यपाल रहे.
न किसी विवाद में रहा और न कोई विवाद छोड़ कर जा रहा : टंडन
राज्यपाल लालजी टंडन ने कहा कि बिहार के राज्यपाल के रूप में उनका कार्यकाल यादगार रहा. तबादले की अधिसूचना के बाद मीडिया के सवालों का जवाब देते हुए कहा कि वे यहां किसी भी विवाद में नहीं पड़े और कोई विवाद छोड़ कर भी नहीं जा रहे.
राज्यपाल के रूप में हमने समाज के सभी वर्गों को राजभवन से जोड़ने का काम किया. उच्च शिक्षा में सुधार के उपाय किये गये. एकेडमिक कैलेंडर में सुधार, बीएड नामांकन प्रक्रिया और डिजिटाइजेशन के लिए कई कार्य किये गये. उन्होंने कहा कि देश एक है, जहां भी रहें, समाज के सभी वर्गों के लिए काम करते रहेंगे.
कौन हैं फागू चौहान
पिछड़े वर्ग के नेता की छवि रखनेवाले फागू चौहान बिहार के 40वें राज्यपाल होंगे. उनका जन्म पहली जनवरी 1948 को हुआ था. वे मूलत: यूपी के आजमगढ़ के शेखपुरा गांव के रहनेवाले हैं. उन्होंने चौधरी चरण सिंह की पार्टी दलित मजदूर किसान पार्टी(दमकिपा) से राजनीति में शुरुआत की.
दमकिपा के टिकट पर पहली बार 1985 में चुनाव लड़ मऊ के घोसी विधानसभा क्षेत्र से विधायक बने. इसके बाद उन्होंने 1991 में जनता दल को घोसी में जीत दिलायी.
1996 उप चुनाव में उन्होंने भाजपा को पहली बार जीत दिलायी. 2002 में भाजपा से जीतने के बाद 2006 में बहुजन समाज पार्टी का दामन थाम लिया. 2007 में बसपा के टिकट पर चुनाव लड़ कर अपनी जीत को बरकरार रखा. लगातार जीत हासिल करनेवाले फागू चौहान को 2012 में समाजवादी पार्टी के उम्मीदवार सुधाकर सिंह से हार का सामना करना पड़ा. 2014 में पुन: वे भाजपा में वापस आये.
2017 में भाजपा के टिकट पर चुनाव लड़ जीत हासिल की. दिग्गज नेता फागू चौहान ने कई बार मंत्री पद की भी जिम्मेदारी निभायी. पिछड़े वर्ग में उनकी लोकप्रियता और पकड़ को देखते हुए यूपी में राज्य पिछड़ा वर्ग आयोग का अध्यक्ष बनाया गया. इनके लंबे राजनीतिक अनुभव व भाजपा में वरिष्ठता को देखते हुए राष्ट्रपति ने उन्हें बिहार का राज्यपाल बनाया है.

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