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प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों में रूई से लेकर सूई तक की किल्लत, कैसे हो इलाज

पटना सिटी : जिला अस्पताल का दर्जा पाये श्री गुरु गोबिंद सिंह अस्पताल हो या फिर एनएमसीएच. यहां इंडोर व आउटडोर में दवा तो उपलब्ध है. इसे पाने के लिए घंटों कतार में खड़े होकर मशक्कत करनी पड़ती है.एनएमसीएच के इंडोर में भर्ती मरीजों के लिए 70 तरह की दवाएं उपलब्ध हैं. आउटडोर के मरीजों […]

पटना सिटी : जिला अस्पताल का दर्जा पाये श्री गुरु गोबिंद सिंह अस्पताल हो या फिर एनएमसीएच. यहां इंडोर व आउटडोर में दवा तो उपलब्ध है. इसे पाने के लिए घंटों कतार में खड़े होकर मशक्कत करनी पड़ती है.एनएमसीएच के इंडोर में भर्ती मरीजों के लिए 70 तरह की दवाएं उपलब्ध हैं. आउटडोर के मरीजों के लिए 65 तरह की दवाएं उपलब्ध हैं.

हालांकि कर्मियों की मानें तो ग्लब्स की कमी है. कुछ इसी तरह की स्थिति गुरु गोबिंद सिंह अस्पताल की है. इंडोर में 91 तरह की दवाएं उपलब्ध हैं. नियमानुसार 112 तरह की दवाएं मरीजों को मिलनी चाहिए.
आउटडोर के मामले में स्थिति यह है कि मरीजों के लिए 33 तरह दवाएं होनी चाहिए, जबकि मरीजों में 40 तरह की दवाएं हैं. एनएमसीएच के उपाधीक्षक डॉ गोपाल कृष्ण का कहना है कि बेहतर चिकित्सा व्यवस्था की वजह से अस्पताल में मरीजों की संख्या बढ़ी है.
दवाओं के लिए अतिरिक्त काउंटर बढ़ाने की दिशा में कार्य चल रहा है. गुरु गोबिंद सिंह अस्पताल के प्रबंधक साबिर अली बताते है कि दवाओं की कमी नहीं हो, इसके लिए बीएमसीआइएल व सिविल सर्जन के स्तर पर दवाओं की उपलब्धता करायी गयी है. पालीगंज. एक ओर अस्पताल में मरीजों की संख्या लगातार बढ़ रही है.
वहीं, दूसरी ओर अस्पताल में दवाओं का टोटा लगा हुआ है. अनुमंडलीय अस्पताल पालीगंज में रूई, बैंडेज, सीरिंज तो है, लेकिन नहीं है तो बुखार खांसी की दवा व सिरप. अस्पताल प्रबंधक परमजीत कुमार ने बताया कि लगभग एक वर्ष से खांसी की दवा व सीरप नहीं आ रहा है. बुखार की दवा भी जिले से छह महीने से नहीं मिल रही है.
बिहटा. आम लोगों की जिंदगी को लेकर सरकार कितनी गंभीर है, इसकी बानगी बिहटा के रेफरल अस्पताल में देखने को मिली. अस्पताल में जीवनरक्षक सहित कई जरूरी दवा महीनों से नहीं है. जख्मी मरीजों के लिए रूई, बैंडेज, सीरिंज बाजार से खरीद कर काम चलाना पड़ता है. मरीजों को भोजन भी दो सालों से नहीं मिल रहा है.
अस्पताल में बारह की जगह मात्र छह चिकित्सक ही कार्यरत हैं. चार स्पेसलिस्ट सहित दो अन्य चिकित्सक के पद रिक्त हैं.
पटना जिले के अधिकतर प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों में दवाओं की बड़ी किल्लत है. रूई और सूई जैसी छोटी-छोटी चीजों के लिए भी मरीज के परिजनों को अस्पताल से बाहर दवा दुकानों की दौड़ लगानी पड़ रही है. प्रभात खबर की पड़ताल में सामने आया कि बिहटा, पंडारक व फतुहा पीएचसी में रूई, बैंडेज व सीरिंज भी बाहर से खरीदनी पड़ रही है. एनएमसीएच में ग्लब्स नहीं है
. इसके साथ ही पालीगंज, मनेर, बिक्रम व फतुहा पीएचसी में बुखार, खांसी, दर्द व कैल्शियम जैसी दवाएं भी नहीं मिलतीं. मसौढ़ी में दवा की किल्लत नहीं दिखी.यह स्थिति तब है जब जिला प्रशासन सभी अस्पतालों में पर्याप्त दवाओं की आपूर्ति का दावा कर रहा है.
सिविल सर्जन राजकिशोर चौधरी का कहना है कि रूई और सूई जैसी इमरजेंसी दवाएं निश्चित रूप से अस्पतालों में होती हैं. अनुपलब्धता की वजह स्थानीय समस्या हो सकती है. उन्होंने बताया कि इंडेंट के आधार पर मांग के अनुरूप सभी प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों को दवा की आपूर्ति की जाती है.
इसके साथ ही अस्पतालों की अपनी आकस्मिक निधि भी होती है, जिसके माध्यम से उनके द्वारा आवश्यक दवाओं की खरीदारी की जा सकती है.
फुलवारीशरीफ : डॉक्टरों की कमी, दवा के िलए होती जद्दोजहद
फुलवारीशरीफ . पीएचसी फुलवारी शरीफ में रुई, बैंडेज, सिरिंज , बुखार खांसी व कुत्ता काटने की एंटी रैबीज दवाएं तो आसानी से उपलब्ध हैं, लेकिन यहां पीएचसी प्रभारी सहित एक पुरुष और एक महिला चिकित्सक ही कार्यरत है. यहां दवा के िलए घंटों लाेगों की भीड़ जुटी रहती है. खगौल. प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र खगौल में पड़ताल की तो ओपीडी में दवा केंद्र पर कुछ छोड़ 42 दवा उपलब्ध थी.
इनमें सर्दी, बुखार व खासी की दवा चिकित्सक के सुझाव के अनुसार मिल रही थी. वहीं रोगियों के लिए काटन, बैंडेज व डिस्पो वैन ही उपलब्ध थी. ड्यूटी में डॉ प्रीति व एएनएम अनीता कुमारी मौजूद थी. चिकित्सा प्रभारी डॉ स्नेह लता ने बताया कि केंद्र पर 42 प्रकार की दवा उवलब्ध है.
दवाओं का टोटा है
मनेर. मनेर प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र के दवा वितरण काउंटर पर जरूरतमंद दवाओं का टोटा है. डॉक्टर द्वारा लिखी गयी दवा बाहर से खरीदनी पड़ रही है. दवा वितरण काउंटर पर वितरक से पूछा गया तो बुखार, खांसी, विटामिन सहित सिरप व अन्य जरूरत की दवा नहीं होने की बात बतायी. चिकित्सा प्रभारी डॉ डीके चौधरी ने बताया कि विभाग से कई जरूरत की दवाइयां नहीं दी जा रही है.
इसके बारे में विभाग को कई बार पत्र लिखकर अवगत कराया गया है. दानापुर. अनुमंडलीय अस्पताल में रूई, बैंडेज ड्रेसिंग रूम में था. साथ ही बुखार की दवा काउंटर पर रोगियों को मिल रही थी, जबकि ओपीडी में मरीजों को सीरिंज नहीं मिल रही थी. साथ ही खांसी का सिरप भी अस्पताल में नहीं है. पंडारक. पंडारक पीएचसी महज 21 दवा उपलब्ध है.
रूई व बैंडेज का अभाव है. केवल आपात स्थिति में रूई व बैंडेज उपयोग में लाये जाते हैं. जीवनरक्षक दवाओं का अभाव है. रैबीज की सूई, दर्द निवारक दवा, डायरिया का टैबलेट, कफ सिरप, एएनएस आदि प्रमुख दवाओं का टोटा है. स्टीज लगाने की सूई व धागा भी उपलब्ध नहीं है. आपात स्थिति के लिये डायलोना इंजेक्शन नहीं है.
खुसरूपुर और मसौढ़ी में उपलब्ध हैं दवाएं
खुसरूपुर. पीएचसी पड़ताल में रूई, कॉटन, बैंडेज, सीरिंज, सर्दी-खांसी, बुखार व अन्य तमाम दवाइयां उपलब्ध मिलीं. साथ ही जानवरों के काटने पर जो सूई व दवा मिलनी चाहिए वह भी उपलब्ध थी. मसौढ़ी अनुमंडल हॉस्पिटल समेत अनुमंडल के तीनों प्रखंडों में स्थित प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों में काटन ,बैंडेज एवं सिरिंज की अमूमन कोई किल्लत नहीं है .अभी तक इन अस्पतालों मे इसे लेकर किसी मरीज द्वारा शिकायत भी नहीं की गयी है .
बताया जाता है कि आपातकालीन सेवा में कोई भी जख्मी मरीज अस्पताल में इलाज के लिए लाया जाता है तो उस वक्त अत्यधिक काटन- बैंडेज लगने की स्थिति मे अस्पतालकर्मी जख्मी मरीज के परिजनों से काटन एवं बैंडेज बाहर से लाने को अवश्य कहते हैं .
हालांकि, अस्पतालकर्मी इससे इन्कार करते हैं . इन अस्पतालों में कमी है तो बुखार व खांसी के सिरप की . इस संबंध में अस्पताल के प्रभारी चिकित्सकों ने बताया कि बुखार के लिए पेरासिटामोल कंबीनेशन की दवा बीते पांच-छह माह से जिला से आपूर्ति नहीं की जा रही है.
दवा उपलब्ध
दुल्हिनबाजार. पीएचसी प्रभारी चिकित्सा पदाधिकारी शिवलाल चौधरी ने बताया कि यहां रुई, बैंडेज, सिरिंज व खांसी की दवा उपलब्ध है. डाॅ अमानुल्लाह जमाली व डाॅ शिवचंद्र जायसवाल मरीजों का इलाज कर रहे थे. मरीज भी दवा वितरण काउंटर से दवा ले रहे थे.
पीएचसी में सीरिंज, गलब्स और सिरफ महिनों से नहीं : फतुहा. स्थानीय पीएचसी का हाल बहुत बदतर है. यहां सीरिंज, गलब्स और खासी की दवा महीनों से नहीं है.वही एलजी, दर्द की दवा,कैशियम सहित कर्ई दवाइया नहीं हैं.प्रसव कराने आने वाले मरीजों को खुद सीरिंज, गलब्स आदि खरीद कर लाना पड़ता है.
छह महीनों से नहीं है दर्द व बुखार की दवा : बिक्रम. अस्पताल में बुखार व दर्दनाशक दवाइयां पिछले छह माह से नहीं है. मरीजों को बाजार से दर्द व बुखार के पैरासीटामोल की दवा बाजार से निर्भर रहना पड़ रहा है. (इनपुट : अिमताभ श्रीवास्तव, िसकंदर,अजीत, संजय पांडेय,सुयेब, संजय, सत्यशरण, वेदप्रकाश, सतीश केसरी, रवि)

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