पटना : बासी ताड़ी पीने से लिवर में हो रहा मवाद
आनंद तिवारी आइजीआइएमएस के एक रिसर्च में सामने आया मामला पटना : बासी व पुरानी ताड़ी पीने वाले लोगों के लिवर में इन्फेक्शन व गड़बड़ी की शिकायत मिल रही है. उनके लिवर में मवाद (अमिबिक लिवर एबसेस) बीमारी पायी जा रही है, जो शराब पीने वालों की तुलना में 70% अधिक है. इनमें दो प्रतिशत […]
आनंद तिवारी
आइजीआइएमएस के एक रिसर्च में सामने आया मामला
पटना : बासी व पुरानी ताड़ी पीने वाले लोगों के लिवर में इन्फेक्शन व गड़बड़ी की शिकायत मिल रही है. उनके लिवर में मवाद (अमिबिक लिवर एबसेस) बीमारी पायी जा रही है, जो शराब पीने वालों की तुलना में 70% अधिक है. इनमें दो प्रतिशत की मौत भी हो चुकी है. यह जानकारी इंदिरा गांधी आयुर्विज्ञान संस्थान में गैस्ट्रोएंट्रोलॉजी विभाग के सहायक प्राध्यापक डॉ आशीष झा के नेतृत्व में किये गये एक रिसर्च में सामने आयी है.
198 मरीजों पर शोध : आइजीआइएमएस में लिवर में मवाद बनने से पीड़ित कुल 198 मरीजों पर शोध किया गया. इनमें 70% ऐसे मरीज थे, जो बासी या पुरानी ताड़ी पीने वाले पाये गये. इनमें अधिकांश मरीज कुपोषित हो चुके थे. मरीजों से बातचीत में पता चला कि ये दो दिन पुरानी ताड़ी या फिर सुबह की ताड़ी शाम को पीते थे. वहीं, कुछ मरीजों का कहना था कि ताड़ी बेचने वाले जगह में गंदगी के भरमार थे. जहां, हाइजेनिक से संक्रमण होने का खतरा अधिक पाया जाता है. संस्थान ने इस शोध को स्वास्थ्य विभाग को भेजा है. इसके अलावा अंतरराष्ट्रीय मेडिकल पत्रिका व जनरल ऑफ गैस्ट्रोएंट्रोलॉजी एंड हेपेटोलॉजी पत्रिका में प्रकाशित कराया गया है.
नशे के लिए पीते हैं पुरानी ताड़ी : रिसर्च में यह बात सामने आयी है कि जो लोग बासी ताड़ी पीते हैं, वे इसका इस्तेमाल नशे के लिए करते हैं. इतना ही नहीं कुछ लोगों ने यह भी स्वीकार किया है कि पुरानी ताड़ी में मिलावट कर बेची जाती है, जो तुरंत नशा करने लगता है. इनमें सबसे ज्यादा शिकायत दरभंगा, पश्चिमी चंपारण, पूर्वी चंपारण, मधुबनी, सीतामढ़ी, गोपालगंज व शिवहर जिले से हैं. संबंधित जिलों से अधिक पीड़ित मरीज आइजीआइएमएस में इलाज कराने पहुंच रहे हैं.
क्या कहते हैं डॉक्टर
लिवर में मवाद की बीमारी से पीड़ित मरीजों की संख्या बढ़ रही है. हाल में 198 मरीजों पर रिसर्च कर यह बात सामने आ चुकी है. रिसर्च का उद्देश्य था कि लोग दूषित, खराब या ज्यादा दिन की ताड़ी नहीं पीएं. क्योंकि, इससे इम्यून सिस्टम कमजोर हो जाता है. लिवर में इन्फेक्शन की आशंका बढ़ जाती है. ताड़ी बेचने और पीने वाले हाइजीन मेनटेन नहीं करते हैं. इससे इ-हस्टिोलिटिका परजीवी (पैरासाइट) लिवर को संक्रमित करने लगता है व लिवर में मवाद भर जाता है. समय पर इलाज नहीं होने से मौत भी हो जाती है.
डॉ आशीष झा, सहायक प्राध्यापक, गैस्ट्रोएंट्रोलॉजी, आइजीआइएमएस
सर्जरी नहीं, इंडोस्कोपी और दवा है इलाज
रिसर्च के बाद डॉक्टरों ने बताया कि कई ऐसे मरीज हैं, जो छोटे जिलों में डॉक्टर के पास पहुंच रहे हैं और वे पेट की सर्जरी करा रहे हैं. जबकि, लिवर में मवाद की बीमारी का इलाज ऑपरेशन नहीं बल्कि दवा है. एक महीने तक एंटीबायोटिक व एक और दवा देकर इन्फेक्शन कम किया जाता है. उसके बाद इंडोस्कोपी कर लिवर में मवाद को बाहर निकाला दिया जाता है. ऐसे में डॉक्टरों ने सर्जरी नहीं बल्कि दवा व इंडोस्कोपी के बाद इलाज की सलाह दी है.