एक कानून के पहले शिकार बने लालू यादव, दूसरे के अनंत सिंह

यूएपीए के तहत अनंत सिंह पर दर्ज हुआ पहला केस पटना : भ्रष्टाचार और अपराध को लेकर जब-जब नयी पहल हुई, बिहार के नेता ही पहले शिकार हुए. 2013 में जब तत्कालीन केंद्र की मनमोहन सिंह की सरकार ने सजायाफ्ता राजनेताओं की सदस्यता समाप्त करने के लिए लाये गये आर्डिनेंस का पहला शिकार लालू प्रसाद […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | August 18, 2019 7:42 AM
यूएपीए के तहत अनंत सिंह पर दर्ज हुआ पहला केस
पटना : भ्रष्टाचार और अपराध को लेकर जब-जब नयी पहल हुई, बिहार के नेता ही पहले शिकार हुए. 2013 में जब तत्कालीन केंद्र की मनमोहन सिंह की सरकार ने सजायाफ्ता राजनेताओं की सदस्यता समाप्त करने के लिए लाये गये आर्डिनेंस का पहला शिकार लालू प्रसाद हुए थे. चारा घोटाले में सजा मिलने के बाद उन्हें इसी कानून के तहत लोकसभा की सदस्यता से इस्तीफा देना पड़ा था. मालूम हो कि लालू प्रसाद की पार्टी राजद केंद्र की यूपीए 2 सरकार की प्रमुख अंग थी.
हालांकि, मंत्रिमंडल में राजद का कोई प्रतिनिधित्व नहीं था. सुप्रीम कोर्ट ने अपने ऐतिहासिक निर्णय में 10 जुलाई,2013 को रिप्रजेंटशन ऑफ पीपुल्स एक्ट 1951 का हवाला देते हुए कहा था कि किसी भी सजायाफ्ता राजनेताओं की संसद या विधानमंडल की सदस्यता नहीं रहनी चाहिए.
केंद्र सरकार ने इसे रोकने के लिए आर्डिनेंस लाने की पहल की थी. लेकिन कांग्रेस सांसद राहुल गांधी ने आर्डिनेंस की कॉपी फाड़ कर अपना विरोध जताया था. बाद में उसे संसद में लाया गया. इससे हुआ यह कि चारा घ्लोटाले में सजा मिलने के साथ्स ही उनकी सदस्यता भी समाप्त हो गयी.
अब केंद्र ने आतंकवाद से मुकाबले को नया प्रावधान किया है. दूसरी बार सत्ता में लौटी भाजपा की सरकार ने हाल ही में संसद के दोनों सदनों से गैर कानूनी गतिविधियां रोकथाम अधिनियम यूएपीए को कानून का दर्जा दिया है.
इसके तहत अब किसी व्यक्ति विशेष को भी आतंकवाद के दायरे में लाया जा सकता है. इस कानून के दायरे में कोई व्यक्ति या राजनेता आया है तो वह हैं मोकामा के विधायक अनंत कुमार सिंह. अनंत सिंह के आवास से एके 47 और सेना में इस्तेमाल होने वाले हैंड ग्रेनेड भी बरामद किया गया है. ऐसी स्थिति में राज्य पुलिस ने श्री सिंह के खिलाफ अन ला फुल एक्टिविटी प्रीवेंशन एक्ट यूएपीए के तहत मुकदमा दर्ज किया गया है. पुलिस ने जांच रिपोर्ट मेें श्री सिंह को इस कानून के तहत दोषी पाया तो उन्हें आजीवन कारावास तक की सजा हो सकती है. साथ ही विधायिकी भी खत्म हो सकती है.

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