विस चुनाव में भाई की हार के बाद विरासत बचाने राजनीति में कूदे थे अनंत, टाल से विधानसभा तक पहुंच गये

मोकामा : मोकामा के वर्तमान विधायक अनंत सिंह अपने भाई दिलीप सिंह की खोई विरासत बचाने राजनीति में कूदे थे. वहीं उन्होंने लगातार चार बार एक ही विधानसभा क्षेत्र का प्रतिनिधित्व कर सूबे की राजनीति में खास पहचान बनायी. इस दौरान एक खास वर्ग के लोगों का उनके प्रति झुकाव भी पैदा हुआ,लेकिन पुरानी रंजिश […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | August 24, 2019 5:14 AM
मोकामा : मोकामा के वर्तमान विधायक अनंत सिंह अपने भाई दिलीप सिंह की खोई विरासत बचाने राजनीति में कूदे थे. वहीं उन्होंने लगातार चार बार एक ही विधानसभा क्षेत्र का प्रतिनिधित्व कर सूबे की राजनीति में खास पहचान बनायी.
इस दौरान एक खास वर्ग के लोगों का उनके प्रति झुकाव भी पैदा हुआ,लेकिन पुरानी रंजिश ने एक बार फिर उन्हें दोराहे पर लाकर खड़ा कर दिया है.
बात 2000 की है. विधानसभा चुनाव में अनंत सिंह के बड़े भाई दिलीप कुमार सिंह (निवर्तमान विधायक) को बाहुबली सूरज भान सिंह ने तकरीबन सत्तर हजार वोटों से शिकस्त दी थी. इस करारी हार के बाद दिलीप सिंह राजनीतिक जीवन से दरकिनार होने लगे. तब कई संगीन मामलों में फरार चल रहे अनंत सिंह ने मोकामा से विधानसभा चुनाव लड़ने की ठान ली. उन्होंने 2004 में बाढ़ कोर्ट में सरेंडर कर दिया.
फिर कोर्ट से जमानत मिलने के बाद उन्होंने राजनीतिक चहलकदमी शुरू कर दी. इस दौरान टाल हो या शहर इलाके में एक खास वर्ग के लोगों की दबंगई चलती थी. जंगल राज से ऊब चुके वर्गों को क्षेत्र में एक धाकड़ नेतृत्व की तलाश थी. इसका भरपूर फायदा अनंत सिंह को मिला. उन्हें 2005 के विस चुनाव में जदयू की टिकट भी हासिल हो गया.
उन्होंने मोकामा विधानसभा क्षेत्र में सूरजभान के करीबी ललन सिंह के खिलाफ जोर आजमाइश की. अनंत सिंह ने कांटे की टक्कर में काफी कम वोटों के अंतर से जीत हासिल कर ली. उन्होंने लगातार तीन बार जदयू के टिकट पर ही विस चुनाव जीता. 2015 में विधानसभा चुनाव के दौरान बाढ़ में पुटुस यादव हत्याकांड में अनंत सिंह घिर गये. उन्हें जेल जाने तक की नौबत आ गयी थी. उन्होंने विवश होकर जदयू से इस्तीफा देकर निर्दलीय चुनाव लड़ने की घोषणा की. इस नीति के बलबूते उन्होंने सफलता की नयी इबारत गढ़ दी. उन्हें एक खास वर्ग का सहानुभूति वोट हासिल हुआ.
इसका फायदा अनंत सिंह आज तक उठा रहे हैं. खास वर्ग के बलबूते ही उन्होंने लोकसभा चुनाव में अपनी पत्नी नीलम देवी को मुंगेर लोकसभा से चुनाव लड़वाया. हालांकि, यह निर्णय उनके लिये कांटे का पथ साबित हुआ. अनंत सिंह के खिलाफ उनके कई धु्र विरोधी एक मंच पर खड़े हो गये. वहीं उनकी पत्नी चुनाव हार गयी. माना जा रहा है कि इसका खामियाजा ही अनंत सिंह को भुगतना पड़ रहा है.
हालांकि, सूबे के दो–तीन दलों के नेता उनके पक्ष में भी खड़े हैं, लेकिन अनंत का विरोधी खेमा उनके खिलाफ मजबूती से सक्रिय है. इसको लेकर अनंत सिंह अपनी ही एक–एक चाल में खुद घिर रहे हैं. बताया जा रहा है कि हत्या की साजिश की ऑडियो वायरल होने के बाद ही पुलिस महकमा उनके खिलाफ कड़ा एक्शन लिया. वो भी ऐसे वक्त में जब एक बार फिर विधानसभा चुनाव की विसात बिछ रही है.
टाल इलाके में बादशाहत
मोकामा : मोकामा के बाहुबली विधायक अनंत सिंह की नब्बे के दशक में टाल इलाके में बादशाहत चलती थी. पैतृक गांव नदांवा में हररोज अनंत के दरबार लगते थे.
इसमें टाल इलाके के दर्जनों गांवों से लोग अपनी फरियाद लेकर पहुंचते थे. तब मोकामा और बाढ़ के इलाके में अपराध चरम पर था. लोगों ने अनंत सिंह को छोटे सरकार का उपनाम भी दिया. अनंत सिंह का अपने ही चचेरे भाई विवेका पहलवान से संपत्ति बंटवारे को लेकर अदावत शुरू हो गयी. बाद में यह खूनी संघर्ष का रूप ले लिया. दोनों ओर से लाशें बिछने लगीं.
इसी बीच बाढ़ इलाके में दो समुदायों के बीच वर्चस्व को लेकर खून- खराबा होने लगा. वहीं अनंत सिंह ने अपने समुदाय के समर्थन में मोर्चा खोला दिया था. इसको लेकर एक खास वर्ग का संरक्षण अनंत सिंह को मिलने लगा. इसका दूरगामी फायदा अनंत सिंह को चुनाव में भी मिला.
अस्सी व नब्बे के दशक में चुनाव के दौरान इस इलाके में अनंत सिंह के आदेश के बिना एक पत्ता भी नहीं हिलता था. इसको लेकर कई राजनेता भी अनंत सिंह के संपर्क में थे. घरेलू रंजिश को लेकर अनंत सिंह के परिवार के कई लोगों की भी हत्या कर दी गयी. वहीं अनंत सिंह पर भी विरोधी गुट ने कई बार हमला किया,लेकिन इसके बावजूद उन्होंने पीछे मुड़कर नहीं देखा. बाद में अापराधिक जीवन को छोड़कर वे राजनीति में सक्रिय हो गए.

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