अति पिछड़े जिताने में हैं आगे, उम्मीदवारी में पीछे

मिथिलेश, पटना : राज्य की आबादी में करीब 35% हिस्सेदारी वाला अति पिछड़ा समुदाय अगले साल नवंबर में होने वाले विधानसभा चुनाव में बड़ी भूमिका अदा करेगा. इसलिए सभी पार्टियां अति पिछड़ी जातियों को गोलबंद करने में जुट गयी हैं. अति पिछड़ा समुदाय को मजबूत बनाने और विकास योजनाओं में प्राथमिकता देने का मामला जदयू […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | September 9, 2019 7:56 AM

मिथिलेश, पटना : राज्य की आबादी में करीब 35% हिस्सेदारी वाला अति पिछड़ा समुदाय अगले साल नवंबर में होने वाले विधानसभा चुनाव में बड़ी भूमिका अदा करेगा. इसलिए सभी पार्टियां अति पिछड़ी जातियों को गोलबंद करने में जुट गयी हैं. अति पिछड़ा समुदाय को मजबूत बनाने और विकास योजनाओं में प्राथमिकता देने का मामला जदयू का हथियार होगा तो भाजपा उन्हें राजनीतिक तौर पर स्पेस देने की उदारता को रणनीतिक रूप से सामने ला रही है.

पिछले तीन चुनाव-2010 व 2015 के विधानसभा और इस साल हुए लोकसभा चुनाव में अति पिछड़ों ने वोट की ताकत दिखायी है. उनके वोटों से ही सरकारें बनीं. पर, यह भी सच है कि लोकसभा चुनाव हो या विधानसभा चुनाव, अति पिछड़ी जातियों के नेता टिकट पाने में पिछड़ जा रहे हैं. उनके हिस्से सवर्णों से भी कम सीटें मिल रही हैं.

यह तब हो रहा है कि चुनाव जीतने का उनका स्ट्राइक रेट सबसे अधिक है़ 1995 के विधानसभा चुनाव के बाद अति पिछड़ों को सरकार और उच्च सदन में अच्छा-खासा प्रतिनिधित्व मिला़ बाद के दिनों में राजद से अति पिछड़े अलग होते गये और उनका झुकाव जदयू की ओर होने लगा़ छोटे-छोटे समूहों में बटी इन जातियों ने लोकसभा चुनाव में भी अपनी ताकत दिखायी है़

2010 में 17 विधायक अति पिछड़े थे
2010 के विधानसभा चुनाव एनडीए के लिए यादगार रहा था़ राजद जहां 22 सीटों पर सिमट गया था, वहीं जदयू-भाजपा गठबंधन को 200 से अधिक सीटें मिली थी़ं इस चुनाव में पिछली बार से अधिक संख्या में अति पिछड़े विधायक निर्वाचित हुए थे. फिर भी उनकी संख्या 17 से आगे नहीं बढ़ी. इनमें भाजपा के सात और जदयू के 10 विधायक थे़
2015 विधानसभा चुनाव में सवर्णों से भी कम मिले टिकट
2015 के विधानसभा चुनाव में महागठबंधन ने 243 सीटों में 26 सीटों पर अति पिछड़ी जाति के उम्मीदवार उतारे थे, जबकि सवर्ण तबके के 39 उम्मीदवार बनाये गये थे. 105 सीटों पर पिछड़ी जाति के नेताओं को उम्मीदवार बनाया गया. इसी प्रकार एनडीए ने 67 सीटों पर पिछड़ाें और 19 सीटों पर अति पिछड़ों को टिकट दिया था, जबकि 85 सवर्णों को टिकट बांटे गये थे. मालूम हो कि उस समय में महागठबंधन में जदयू, राजद और कांग्रेस और एनडीए में भाजपा, लोजपा, हम व रालोसपा शामिल थी.
जदयू ने दिये सबसे अधिक टिकट
2015 के विधानसभा चुनाव में महागठबंधन का हिस्सा रहे जदयू ने अति पिछड़ों को सबसे अधिक टिकट दिया था. इस साल हुए लोकसभा चुनाव में भी अति पिछड़ों को सबसे अधिक जदयू ने उम्मीदवार बनाया था. एनडीए में अपने कोटे की 17 सीटों में से जदयू ने छह पर अति पिछड़े उम्मीदवार उतारे थे और सभी ने जीत हासिल की. भाजपा ने दो सीटों पर अति पिछड़ों को उम्मीदवार बनाया था और दोनों निर्वाचित हुए. महागठबंधन में राजद ने एकमात्र भागलपुर सीट से अति पिछड़े को उम्मीदवार बनाया था, जबकि हम और वीआइपी ने अपने-अपने कोटे की तीन-तीन सीटों में से दो-दाे सीटों पर अति पिछड़ा को उतारा था.
राज्यसभा में बिहार से सिर्फ दो अति पिछड़े : राज्यसभा में बिहार से 16 सदस्य हैं, जिनमें सिर्फ दो अति पिछड़े हैं और दोनों ही जदयू के सदस्य हैं. इनमें एक रामनाथ ठाकुर और दूसरी कहकशां परवीन हैं.

Next Article

Exit mobile version