बेटे के शव को देख पथरायीं पिता की आंखें
पटना: गंगा नदी का बालू घाट. कड़ी धूप में पसीने से बदन तरबतर हो रहा है. कपड़े गीले हो चुके हैं. हल्की हवा के साथ रेत उड़ रही है, अपने यूनिफॉर्म में मौजूद एनडीआरएफ व एसडीआरएफ की टीम रोहित और अंकित उर्फ बमबम की लाश ढूंढ़ने में जुटी हुई है. दिन के दो बज चुके […]
पटना: गंगा नदी का बालू घाट. कड़ी धूप में पसीने से बदन तरबतर हो रहा है. कपड़े गीले हो चुके हैं. हल्की हवा के साथ रेत उड़ रही है, अपने यूनिफॉर्म में मौजूद एनडीआरएफ व एसडीआरएफ की टीम रोहित और अंकित उर्फ बमबम की लाश ढूंढ़ने में जुटी हुई है.
दिन के दो बज चुके हैं. ऑपरेशन में मौजूद टीम के चेहरे पर थकान साफ झलक रही है. इस बीच गुलबी घाट से अंकित उर्फ बमबम की लाश मिलने की सूचना मिलती है. बालूघाट पर मौजूद लोग गुलबी घाट की तरफ बढ़ जाते हैं. लेकिन बमबम के पिता अरुण कुमार सिंह अपनी जगह पर खड़े रहते हैं- एक दीवार का सहारा लिये. उनकी आंखों से आंसू लगातार बह रहे हैं. वे बेसुध हो चुके हैं.
जुबां खामोश हो चुकी हैं. आंखों से अफसोस और बदनसीबी के आंसू टपक रहे हैं, हाथ की मुट्ठियां खुली हैं. आधा घंटा बाद लाश बाहर निकाली जाती है. नजर पड़ते वे फिर अपने आप को रोक नहीं पाते हैं. कभी माथा तो कभी छाती पीटते हैं. हो भी क्यों नहीं, उनका ख्वाब टूट गया है, बुढ़ापे की लाठी टूट गयी है. उम्मीदें धराशायी हो चुकी हैं, मुकद्दर ने दगा किया है. पुलिस के शव उठाते ही एक बार फिर वे फफक कर रो पड़ते हैं. गांव पूर्वी गौतम बुद्ध नगर, गोड़ना जिला आरा से अन्य लोग आये हैं. गमछे से आंसू पोंछते हुए दिलासा दिला रहे हैं. सुबह करीब 10 बजे रोहित की लाश बांसघाट से मिली चुकी है.
उनके पिता मुनचुन सिंह गोताखोरों की टीम के साथ गुमसुम बैठे हैं. उन्होंने भी अपना इकलौता चिराग खोया है. कभी बिल्कुल चुप रहते हैं, तो कभी बेटे को याद कर रो पड़ते हैं. बेटे को इंजीनियर बनाने का सपना संजोया था. ऐसा हो जायेगा, पता नहीं था. अचानक आये इस झंझावात ने उन्हें अंदर से झकझोर दिया है. बेटे का साथ छूट गया है. दिल पर दुखों का पहाड़ टूट पड़ा है, मन की पीड़ा आंसुओं के रूप में निकल रही है. कभी खुद चुप हो जाते हैं, तो कभी लोग सहारा दे रहे हैं.