किंग महेंद्र अजीबोगरीब कानूनी विवाद में फंसे
नयी दिल्ली: जनता दल (यू) के सांसद महेंद्र प्रसाद एक अजीबोगरीब कानूनी पचड़े में फंस गये हैं क्योंकि एक महिला ने उनकी कानूनी ब्याहता होने का दावा करते हुए अदालत का दरवाजा खटखटाया है और सांसद के साथ रहने की अनुमति मांगी है. महेंद्र प्रसाद को किंग महेंद्र के तौर पर भी जाना जाता है. […]
नयी दिल्ली: जनता दल (यू) के सांसद महेंद्र प्रसाद एक अजीबोगरीब कानूनी पचड़े में फंस गये हैं क्योंकि एक महिला ने उनकी कानूनी ब्याहता होने का दावा करते हुए अदालत का दरवाजा खटखटाया है और सांसद के साथ रहने की अनुमति मांगी है. महेंद्र प्रसाद को किंग महेंद्र के तौर पर भी जाना जाता है. बिहार से सात बार के सांसद तथा 79 वर्षीय किंग महेंद्र के साथ पिछले 45 साल से रह रही महिला ने दिल्ली उच्च न्यायालय के उस आदेश को चुनौती दी है जिसमें उन्हें सबसे धनी सांसदों में शुमार जदयू नेता से चार हफ्ते के लिए अलग रहने का आदेश दिया गया है.
किंग महेंद्र के ‘परित्यक्त’ पुत्र ने उच्च न्यायालय का रुख करते हुए दावा किया था कि उनके पिता ने अपने साथ रह रही महिला के साथ मिल कर उनकी मां को अवैध तरीके से बंधक बना लिया है जो उनकी वास्तविक पत्नी है. उच्च न्यायालय ने महिला को प्रसाद से आरोपों की जांच पूरी होने तक अलग रहने का आदेश दिया था. महिला पर प्रसाद की कानूनी तौर पर ब्याहता को अवैध तरीके से बंधक बनाने का आरोप है. सांसद की कई फर्मास्युटिकल कंपनियां हैं और अन्य व्यवसाय हैं.
यह मामला सुनवाई के लिए शीर्ष अदालत के समक्ष मंगलवार को आया और मामले की सुनवाई न्यायमूर्ति आर भानुमति की अगुवाई वाली पीठ ने की. अदालत में महिला का पक्ष रखने वाले वरिष्ठ अधिवक्ता मुकुल रोहतगी ने कहा कि उच्च न्यायालय ने इस मामले में ‘‘पूरी तरह से अवैध प्रक्रिया” का पालन किया है और यहां तक कि सांसद भी महिला के साथ रहना चाहते हैं. महिला को प्रसाद का ‘‘कानूनी ब्याहता” करार देते हुए रोहतगी ने कहा, ‘‘पति और पत्नी को अलग क्यों रहना चाहिए. देश में लोकतंत्र है.”
इसे ‘‘अजीबोगरीब मामला” बताते हुए उन्होंने मामले की जांच पर सवाल उठाया और कहा कि उस उच्च न्यायालय को इस तरह का आदेश पारित नहीं करना चाहिए था क्योंकि वह सांसद के बेटे की ओर से दायर बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका पर सुनवाई कर रहा था.” पीठ ने रोहतगी से कहा, ‘‘आप (याचिकाकर्ता) निश्चित तौर पर लंबे समय से पति और पत्नी के रूप में रहे हैं, लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि आप पति और पत्नी हैं.”
इस पीठ में आर भानुमति के अलावा न्यायमूर्ति एएस बोपन्ना और न्यायमूर्ति हृषिकेश राय भी शामिल थे. पीठ ने इस स्तर पर मामले में हस्तक्षेप करने से इंकार कर दिया और कहा कि महिला किसी भी आवश्यकता या स्पष्टीकरण की स्थिति में उच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटा सकती है. वरिष्ठ अधिवक्ता ने पीठ से कहा कि उच्च न्यायालय के फैसले का सारांश यह है कि ‘‘पति और पत्नी को अलग अलग रहना चाहिए.”
हालांकि, पीठ ने कहा, ‘‘यह (उच्च न्यायालय में दायर पुलिस की स्थिति रिपोर्ट) कहती है कि दूसरी महिला (अस्वीकृत बेटे की मां) सांसद की कानूनी रूप से पत्नी है और हमारे सामने याचिकाकर्ता का बयान भी दर्ज है.” उच्च न्यायालय के फैसले पर सवाल उठाते हुए रोहतगी ने कहा कि बिना किसी प्राथमिकी के अनुसंधान कैसे हो सकता है. उन्होंने दावा किया कि प्रसाद ने बेटे को ‘‘परित्याग” कर दिया है. उसने उच्च न्यायालय में यह याचिका दायर की थी और सांसद की हजारों करोड़ की संपत्ति हथियाने की उसकी साजिश थी. उन्होंने कहा कि प्रसाद का स्वास्थ्य ठीक नहीं हैं और यह आवश्यक है कि याचिका दायर कर शीर्ष अदालत पहुंची याचिकाकर्ता को उनके साथ रहना चाहिए.
पीठ ने जब यह कहा कि उच्च न्यायालय ने याचिकाकर्ता को प्रसाद से चार सप्ताह अलग रहने के लिये कहा है तो रोहतगी ने कहा, ‘‘क्यों? किस आधार पर? क्या इस महिला ने कोई अपराध किया है?” उन्होंने कहा कि उच्च न्यायालय ने अपने आदेश में इस तथ्य का भी जिक्र किया कि प्रसाद, जो अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान के चिकित्सा बोर्ड की रिपोर्ट के अनुसार स्मृतिलोप से पीड़ित हैं, शीर्ष अदालत के समक्ष आयी याचिकाकर्ता के अलावा अपने परिवार के किसी अन्य सदस्य का नाम याद नहीं कर सके. रोहतगी ने कहा कि सांसद पिछले 45 साल से दोनों महिलाओं के साथ परिवार की तरह रह रहे हैं.
पीठ ने जब यह कहा कि सभी पक्षों की सहमति के बाद उच्च न्यायालय ने यह आदेश दिया तो वरिष्ठ अधिवक्ता ने कहा कि इस मुद्दे पर कोई सहमति नहीं थी कि किसे सांसद के साथ नहीं रहना चाहिए. अधिवक्ता ने कहा कि न्याय का हित यह है कि पति और पत्नी (याचिकाकर्ता) दोनों को एक साथ रहना चाहिए. उन्होंने कहा कि महिला के पास भी राजनयिक पासपोर्ट है जिसमें यह स्पष्ट उल्लेख है कि महिला, सांसद की पत्नी है.
रोहतगी ने कहा, ‘‘मान लीजिये कि वे पति पत्नी नहीं हैं, लेकिन एक साथ रहना चाहते हैं तो पुलिस या अदालत इससे इन्कार कैसे कर सकती है.” पीठ ने कहा, ‘‘बेहतर होगा कि आप उच्च न्यायालय वापस जायें. निश्चित ही उच्च न्यायालय ने कुछ दस्तावेज देखे होंगे जो न्यायाधीशों के दिमाग में होंगे.” सुनवाई के अंतिम क्षणों में रोहतगी ने कहा कि अब इस महिला को कहां जाना चाहिए क्योंकि उसके पास रहने के लिये कोई जगह नहीं है. उन्होंने कहा कि क्या उसे किसी होटल में रहने जाना चाहिए.